अकबर के शासनकाल से होती है पूजा, जानें और क्या है महाशय ड्योढ़ी दुर्गा मंदिर की विशेषताएं
महाशय परिवार के वंशजों द्वारा पौराणिक परंपराओं के साथ पूजा का आयोजन आज भी बरकरार है। यहां बंगाली विधि से पूजा अर्चना होती है। मंदिर का रंग-रोगन कर आकर्षक ढंग से सजाया जाता है।
भागलपुर (जेएनएन)। चंपानगर महाशय ड्योढ़ी मां दुर्गा की महिमा अपरंपार है। जनश्रुति के अनुसार यहां शक्ति की देवी मां दुर्गा की प्रतिमा अकबर के शासन काल से ही स्थापित होते आ रही है। जब से महाशय ड्योढ़ी निवासी श्रीराम घोष अकबर के कानून गो बने थे तब से मां की पूजा और भव्य तरीके से होने लगी। पहले यहां सुबह-शाम शहनाई वादन होता था जो अब अतीत के पन्नों में सिमट गया।
आस्था : कोलकता की काली एवं महाशय की दुर्गा विश्व प्रसिद्ध है। देश के कोने-कोने से यहां श्रद्धालु मन्नतें मांगने आते हैं और खुश होकर जाते हैं। भक्त देवाशीष बनर्जी की माने तो रानी कृष्णा सुंदरी शक्ति स्वरुपा मां दुर्गा से साक्षात्कार करती थी।। उन्हें स्वप्न आया था कि भैरव तालाब में भैरव जी की प्रतिमा है। जिसे वहां से निकाल कर महाशय ड्योढी मंदिर में स्थापित किया गया है।
आयोजन : महाशय परिवार के वंशजों द्वारा पौराणिक परंपराओं के साथ पूजा का आयोजन आज भी बरकरार है। यहां बंगाली विधि से पूजा अर्चना होती है। मंदिर का रंग-रोगन कर आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। सात दिन पहले बोधन कलश की स्थापना होती है। चार एवं सात पूजा को कौड़ी उछाला जाता है। जो यह कौड़ी पाते हैं वे अपने को धन्य समझते हैं। कंधे पर प्रतिमा विसर्जन की परंपरा आज भी जीवंत बनी हुई है। यहां एक माह तक मेला लगता है। लकड़ी सहित अन्य धातुओं से बनी चीजों की खूब बिक्री होती है।