कभी नहीं भूल पाएंगे कोसी के लोग छह जून 1981

खगड़िया। छह जून 1981 कोसी क्षेत्रवासियों के मानस पटल पर सदा के लिए अंकित है। वह दिन भारतीय रेल के इतिहास में भी सदा-सदा के लिए दर्ज हो गया है। छह जून 1981 की शाम ही मानसी-सहरसा रेल खंड पर बदला घाट-धमारा घाट स्टेशन के बीच बागमती नदी पर बने पुल संख्या-51 पर मानसी से सहरसा को जा रही पैसेंजर ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी। ट्रेन उफनती बागमती में जा गिरी थी और तीन सौ लोग काल के गाल में समा गए थे।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 08:21 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 08:21 PM (IST)
कभी नहीं भूल पाएंगे कोसी के लोग छह जून 1981
कभी नहीं भूल पाएंगे कोसी के लोग छह जून 1981

खगड़िया। छह जून 1981 कोसी क्षेत्रवासियों के मानस पटल पर सदा के लिए अंकित है। वह दिन भारतीय रेल के इतिहास में भी सदा-सदा के लिए दर्ज हो गया है। छह जून 1981 की शाम ही मानसी-सहरसा रेल खंड पर बदला घाट-धमारा घाट स्टेशन के बीच बागमती नदी पर बने पुल संख्या-51 पर मानसी से सहरसा को जा रही पैसेंजर ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी। ट्रेन उफनती बागमती में जा गिरी थी और तीन सौ लोग काल के गाल में समा गए थे।

बारिश का महीना था और ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी कि तभी अचानक ट्रेन के ड्राइवर ने ब्रेक लगा दिया। जिसके बाद पैसेंजर ट्रेन की सात बोगी पुल से बागमती नदी में जा गिरी। ट्रेन बागमती नदी पर बनाए गए पुल संख्या 51 को पार कर रही थी। कई लोगों का शव कई दिनों तक ट्रेन की बोगियों में फंसा रहा। इस हादसे में मरने वालों की सरकारी आंकड़े के अनुसार संख्या 300 थी। लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार हादसे में 800 के करीब लोग मारे गए थे। इस हादसे को देश के सबके बड़े रेल हादसे के रूप में याद किया जाता है।

हालांकि ड्राइवर ने ब्रेक क्यों लगाई थी, इसका खुलासा नहीं हो पाया है। कुछ लोग कहते हैं कि जब ट्रेन बागमती नदी को पार कर रही थी तभी ट्रैक पर गाय व भैंस का झुंड सामने आ गई थी जिसे बचाने के चक्कर में ड्राइवर ने ब्रेक मारी थी। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि बारिश तेज थी, आंधी भी थी, जिसके कारण लोगों ने ट्रेन की सभी खिड़कियों को बंद कर दिया और तेज तूफान होने की वजह से पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और बोगियां नदी में समा गई। लेकिन कारण जो भी आज भी कोसी-बागमती के कपाल पर यह रेल दुर्घटना एक स्याह अध्याय के रूप में अंकित है।

मिथिलेश प्रसाद सिंह उस समय 27 वर्ष के थे। वे दुर्घटना स्थल से लगभग तीन किलोमीटर दूर मालपा गांव में भाकपा की एक बैठक में शामिल थे। वे कहते हैं- साढ़े चार बजे के आसपास आंधी और बारिश हो रही थी। तभी बहुत ही जोरदार आवाज हुई। बाद में पता चला कि बागमती नदी में ट्रेन गिर गई है। कई लोग मारे गए हैं। मैं और बद्री नारायण सिंह (अब स्वर्गीय, प्रसिद्ध भाकपा नेता) पैदल ही धमारा घाट की ओर दौड़ पड़े। बागमती नदी के पास उस दिन जो दारुण दृश्य देखा उसे कभी नहीं भूल पाएंगे। लग रहा था, बागमती भी जार-बेजार होकर रो रही है।

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