पहाड़ा तक नहीं जानते बच्चे

प्राथमिक शिक्षा के बेपटरी हो जाने से प्रारंभिक स्तर पर जो शिक्षा ब'चों को मिलनी चाहिए नहीं मिल पा रही है। केवल कागजी खानापूर्ति करते रहने से पूरी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लग गया है।

By Edited By: Publish:Sat, 27 Aug 2016 12:38 AM (IST) Updated:Sat, 27 Aug 2016 12:38 AM (IST)
पहाड़ा तक नहीं जानते बच्चे

मधुबनी । प्राथमिक शिक्षा के बेपटरी हो जाने से प्रारंभिक स्तर पर जो शिक्षा बच्चों को मिलनी चाहिए नहीं मिल पा रही है। केवल कागजी खानापूर्ति करते रहने से पूरी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लग गया है।

नामांकन 76 उपस्थित 6

यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जिस विद्यालय में नामांकित छात्रों की संख्या 76 है उसमें उपस्थिति आधे दर्जन हो। जी हां आपरेशन ब्लैक बोर्ड अभियान के तहत जब शुक्रवार को नगर के शंकर व तिलक चौक के मध्य स्थपित हरिजन प्राथमिक विद्यालय में दैनिक जागरण की टीम पहुंची तो एक कमरे में छह बच्चों को लेकर एक शिक्षक बैठे हुए थे। प्रधानाध्यापिका अपने कक्ष में बैठी हुई थी। टीम के आगमन की सूचना पर कुर्सी से उठकर जहां बच्चे पढ़ रहे थे में आई और कहा कि आज कम बच्चे आए हैं। पूजा के दिनों में यही हालत रहती है। हमने उपस्थित बच्चों से पहाड़ा बताने को कहा तो नहीं बता सके। शिक्षक ने कहा कि बच्चे विद्यालय में स्थिर नहीं रहते। अभिभावक पर दवाब देते हैं लेकिन वह भी ध्यान नहीं देते। यहां जो कुछ भी पढ़ाया जाता है, उसका घर पर अभ्यास नहीं करते। घर के कामकाज में लग जाते हैं। इस कारण हम कोशिश के बाद भी सफल नहीं हो पा रहे हैं। देखा कि दो कमरे के इस भवन में एक कमरे में पढ़ाई व दूसरे कमरे में एमडीएम का सामान, चूल्हा व कार्यालय है। एक कमरे में जब छात्र शत प्रतिशत उपस्थित रहते हैं तो बैठने को भी जगह नहीं मिलती होगी। नगर में स्थापित इस विद्यालय पर अधिकारियों का भी ध्यान नहीं है। जिस कारण यहां बच्चे नहीं आ रहे हैं। हां एमडीएम पकाने वाले चुल्हा की जो स्थिति देखा उससे जान पड़ा कि कई दिनों से भोजन पका ही नहीं है। हां चूल्हे के पास जलावन रखे देखा।

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'यहां नामांकित बच्चे स्कूल तो आते हैं लेकिन आज पर्व रहने के कारण बच्चों की उपस्थिति कम है। हमने दो बच्चों व एक रसोइया को बच्चों को लाने भेजे हैं। जो भी संसाधन उपलब्ध है उसमें हम बच्चों को ब हतर शिक्षा देने का प्रयास कर रहे हैं। एक बात यह भी है कि पांच माह सत्र का बीतने के बाद भी बच्चों को पुस्तक नहीं दे पाए हैं। इससे भी अध्ययन पर असर पड़ रहा है।'

आशा कुमारी

प्रधानाध्यापिका

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