पूर्वी चंपारण में केले के धागे से हो रही कमाई, रोजगार बनी चटाई

Bihar News अंबिकानगर निवासी पवन कुमार केले के थंब से निकले धागे से बना रहे आसनी और चटाई। नवरात्र दीपावली और छठ को लेकर आ रही मांग करीब एक दर्जन महिलाओं को मिला काम। स्थानीय स्तर पर ईकोफ्रेंडली उत्पाद की है अचछी खासी मांग।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Sat, 20 Aug 2022 01:51 PM (IST) Updated:Sat, 20 Aug 2022 01:51 PM (IST)
पूर्वी चंपारण में केले के धागे से हो रही कमाई, रोजगार बनी चटाई
केले के फाइबर धागा से तैयार चटाई व आसनी को अंतिम रूप देते पवन कुमार श्रीवास्तव। फोटो- जागरण

मोतिहारी (पूचं), [शशि भूषण कुमार]। इस बार दुर्गापूजा और दीपावली में केले का फल के रूप में सेवन तो कर ही सकेंगे, इसके थंब से बने धागों से निर्मित आसनी पर बैठ पूजा-अर्चना भी करेंगे। पूर्वी चंपारण के अंबिकानगर निवासी पवन कुमार श्रीवास्तव इससे चटाई और आसनी बना रहे हैं। करीब दो माह पहले शुरू हुए उनके इस ईकोफ्रेंडली उत्पाद की स्थानीय स्तर पर काफी मांग है।

आने वाले त्‍योहारों में कारोबार बढऩे की उम्मीद

अब तक आसनी के लिए 150 व योगाभ्यास के लिए तीन दुकानों से 75 पीस चटाई के आर्डर मिल चुके हैं। नवरात्र, दीपावली और छठ में कारोबार बढऩे की उम्मीद है। प्रति आसनी 25 रुपये व चटाई से लगभग 85 से 100 रुपये का मुनाफा होता है। आसनी डेढ़ गुणे दो फीट तो चटाई ढाई गुणे चार और तीन गुणे छह फीट की बनाई जा रही है।

आसनी पर मजदूरी लेकर करीब 250 रुपये खर्च हो रहे, जिसे 300 रुपये में बेचा जा रहा है। वहीं योगाभ्यास की चटाई पर लागत 425 रुपये आ रही, जो बाजार में 475 से 525 रुपये में उपलब्ध होगी। तीन गुणे छह फीट की चटाई बाजार में 800 रुपये में उपलब्ध है।

महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

पवन ने इस काम से करीब एक दर्जन महिलाओं को जोड़ा है। इन्हें प्रति आसनी 100, छोटी चटाई के लिए 150 व बड़ी चटाई के लिए 300 रुपये मिलते हैं। महिलाएं एक दिन में तीन से चार आसनी व लगभग दो चटाई तैयार कर लेती हैं। उत्पाद को विदेश तक पहुंचाने के लिए राजस्थान के कपड़ा कारोबारी नवीन तिवारी से बातचीत चल रही है।

महाराष्ट्र से मिली प्रेरणा

पवन कहते हैं वर्ष 2018 में महाराष्ट्र के जलगांव स्थित तांती वैली बनाना प्रोसेसिंग एंड प्रोड्क्टस को-आपरेटिव सोसायटी लिमिटेड गया था। वहां केले के थंब से धागा निकालने के प्रोजेक्ट को देखा। वहीं से मशीन मंगवाकर यूनिट स्थापित की। एक मशीन पर 81 हजार रुपये खर्च आता है। अलग-अलग गांव में दो मशीन लगा रखी हैं। पवन ने स्वयं दो एकड़ में केला लगा रखा है।

इसके अलावा सदर प्रखंड के बसवरिया, गोढ़वा, रूलही, पतौरा मठिया में केले की खेती करने वाले किसानों से फसल कटने के बाद 10 रुपये प्रति पौधा खरीद धागा निकालते हैं। एक थंब से दो से तीन सौ ग्राम धागा तैयार हो जाता है।

chat bot
आपका साथी