संरक्षण के अभाव में सड़ रहे सात पुश्तों वाले अभिलेख, पंजीकारों की संख्या लगातार हो रही कम

सात सौ वर्ष पुराने पंजी के आधार पर होता वैवाहिक संबंध का निर्धारण, इन अभिलेखों को बचाने की कोई पहल नहीं हो रही।

By Ajit KumarEdited By:
Updated: Fri, 01 Feb 2019 03:01 PM (IST)
संरक्षण के अभाव में सड़ रहे सात पुश्तों वाले अभिलेख, पंजीकारों की संख्या लगातार हो रही कम
संरक्षण के अभाव में सड़ रहे सात पुश्तों वाले अभिलेख, पंजीकारों की संख्या लगातार हो रही कम

मधुबनी, (सुनील कुमार मिश्र)। ऐसा अभिलेख जिसमें सात पुश्तों या फिर उससे अधिक की जानकारी एक मिनट में आपके सामने। मिथिला में प्रचलित ऐसे महत्वपूर्ण पंजी अभिलेख उपेक्षा के चलते नष्ट होने की ओर हैं। तकरीबन 700 साल पुराने इन अभिलेखों को बचाने की कोई पहल नहीं हो रही। इसके रखरखाव और इसमें वंशावली दर्ज करने वाले पंजीकार भी गिनती के बचे हैं।

    मैथिल ब्राह्मणों की पंजी प्रथा या इसका अभिलेख चौदहवीं शताब्दी के तीसरे दशक से मौजूद हैं। लगभग सात सौ वर्ष से मैथिल ब्राह्मण और कायस्थ इसी पंजी के आधार पर वैवाहिक संबंध निर्धारित करते हैं। एक तरह से यह शादी का निबंधन है। यह वैज्ञानिक कसौटी पर कसा हुआ है।

हर‍िस‍िंह देव के समय में पंजी प्रबंध की शुरुआत

14वीं सदी के दूसरे दशक तक पंजी प्रथा का प्रचलन नहीं था। लोग छिटपुट रूप से वंश परिचय रखते थे। इसके चलते वैवाहिक निर्णय स्मरण या पूर्वजों के नाम, गोत्र के आधार पर होता था। राजा हर‍िस‍िंह देव के समय पंजी प्रबंध बना। पंजीकार वंश परिचय का नियमानुसार अभिलेख रखने लगे। उन्हें सौराठ सभा सहित पूर्णिया, मंगरौनी, भराम, भगवतीपुर, जरैल, कछुआ चकौती और कोइलख सहित अन्य स्थानों पर राजाश्रय मिला। कालांतर में सौराठ इसका प्रमुख केंद्र रह गया।

पहले 10 साल करनी पड़ती थी पढ़ाई

पंजीकार विश्वमोहन चंद्र मिश्र और प्रमोद मिश्र कहते हैं, पंजीकार बनने के लिए पहले महाराज दरभंगा के राजाश्रय में 10 वर्ष की पढ़ाई का कोर्स था। इसके बाद धौत परीक्षा ली जाती थी। इसमें सफल होने पर पंजीकार का दर्जा दिया जाता था। इस कारण यह विधा दरभंगा राज में जीवित रही। बाद में इसके शिक्षण की व्यवस्था समाप्त हो गई। इस कारण वंशानुगत आधार पर यह पेशा किसी तरह बढ़ता रहा।

    इन लोगों का कहना है कि हमने भी वंशानुगत इसे अपनाया। इनके पास चार सौ वर्ष पुराने अभिलेख हैं। जिन पंजीकारों की संख्या पहले तकरीबन 100 थी, अब वे गिने-चुने बचे हैं। विशेष प्रकार के हस्तनिर्मित कागज पर लिखित अभिलेखों का रखरखाव एक समस्या है। ये मिथिलाक्षर भाषा में हैं। 

एक ही गोत्र में शादी रोकना उद्देश्य

इन्हें बनाने का उद्देश्य सात पीढ़ी तक एक ही गोत्र में शादी को रोकना और वंश की जानकारी आसानी से हो जाना था। पंजी में नाम दर्ज कराने और बताने के लिए पंजीकारों का कोई निर्धारित शुल्क नहीं है। लोग स्वेच्छा 51 या उससे अधिक रुपये दे देते हैं। पंजी में पहले लड़की और महिला का नाम दर्ज नहीं होता था। सौराठ सभा में निर्णय के बाद पांच साल से दर्ज हो रहा।

पंजी को डिजिटल रूप देना जरूरी

सौराठ विकास समिति के अध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्र कहते हैं, पंजी अभिलेख को डिजिटल रूप देना जरूरी है। इसे कंप्यूटरीकृत करना होगा। इससे यह प्राचीन अभिलेख संरक्षित हो सकेगा। इसका अधिकार पंजीकारों के पास ही रहे, ताकि सही तरीके से इसमें आने वाली पीढ़ी के सदस्यों को जोड़ा जा सके। इसके लिए समिति के सदस्य विचार कर रहे हैं। सौराठ सभा गाछी में एक पंजी भवन मौजूद है। उसमें कंप्यूटर सहित अन्य संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है। इसके लिए प्रयास चल रहा है।