Patna News: जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाना कितना मुश्किल? पटना हाईकोर्ट ने कर दिया सब क्लियर

Patna News Todayबिहार में जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाना आसान है या मुश्किल इसपर पटना हाईकोर्ट ने नियम को अच्छी तरह से समझा दिया है। पटना हाईकोर्ट ने 52 याचिकाकर्ताओं की एलपीए पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया। अदालत ने 52 याचिकाकर्ताओं की एलपीए याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय सुनाया। निर्णय के बाद अब नियम भी स्पष्ट हो गया है।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Sanjeev Kumar Publish:Fri, 17 May 2024 01:12 PM (IST) Updated:Fri, 17 May 2024 01:12 PM (IST)
Patna News: जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाना कितना मुश्किल? पटना हाईकोर्ट ने कर दिया सब क्लियर
जिला परिषद में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पटना हाईकोर्ट का निर्णय

HighLights

  • जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाने को लेकर पटना हाईकोर्ट ने नियम स्पष्ट कर दिया है।
  • पटना हाईकोर्ट ने 52 याचिकाकर्ताओं की एलपीए पर सुनवाई करते हुए एक निर्णायक फैसला सुनाया।

राज्य ब्यूरो, पटना। Patna News: बिहार में जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाना आसान है या मुश्किल, इसपर पटना हाईकोर्ट ने नियम को अच्छी तरह से समझा दिया है। पटना हाईकोर्ट ने 52 याचिकाकर्ताओं की एलपीए पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया।

पटना हाईकोर्ट ने क्या कहा

पटना हाई कोर्ट (Patna High Court)  ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय से यह तय किया है कि बिहार पंचायत राज अधिनियम-2006 के तहत जिला परिषद के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत की आवश्यकता है, नहीं कि जिला परिषद के कुल निर्वाचित सदस्यों के बहुमत की।

मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन, न्यायाधीश आशुतोष कुमार एवं न्यायाधीश हरीश कुमार की पूर्ण पीठ ने संगीता देवी उवं अन्य 52 याचिकाकर्ताओं की एलपीए याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय सुनाया।

इस मामले में राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को तर्क दिया था कि यदि कोरम की आवश्यकता नहीं है, तो शायद बैठक का परिणाम पूरे निकाय की मंशा या इच्छा को प्रतिबिंबित नहीं करेगा। न केवल कानून पर, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांत पर भी धोखाधड़ी की संभावना हो सकती है।

उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी स्थिति हो सकती है, जहां अध्यक्ष या उपाध्यक्ष ने सदन का विश्वास नहीं खोया होगा और फिर भी कुछ लोगों की चालों से प्रस्ताव पारित हो जाएगा। कोर्ट ने उनके तर्कों को अस्वीकृत करते हुए कहा कि चरम सीमाओं या अपवादों को ध्यान में रखकर न तो कानून को समझा जाना चाहिए और न ही उसकी व्याख्या की जानी चाहिए।

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