Amrita Pritam की अधूरी मोहब्बत का वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना था मुमकिन

Amrita Pritam अमृता प्रीतम को जानना और समझना हो तो उनका उपन्यास रसीदी टिकट एक जरिया है लेकिन यह रचना पाठक की पढ़ने की प्यास बढ़ा देती है। फिर आप जितना पढ़ेंगे उतना ही आपकी प्यास बढ़ेगी।

By Jp YadavEdited By: Publish:Wed, 31 Aug 2022 09:47 AM (IST) Updated:Wed, 31 Aug 2022 01:57 PM (IST)
Amrita Pritam की अधूरी मोहब्बत का वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना था मुमकिन
Amrita Pritam की अधूरी मोहब्बत का वह अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना था मुमिकन

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। Amrita Pritam: देश-दुनिया की चर्चित लेखिका अमृता प्रीतम का व्यक्तित्व ही रहस्य से भरा हुआ है। रीति-रिवाज से एक विधिवत शादी फिर अलगाव, एक शायर से एकतरफा प्यार और बिना शादी एक शख्स के साथ जीवन गुजारना, इतना उतार-चढ़ाव कम ही लोगों की जिंदगी में आता है। अमृता प्रीतम इन्हीं उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी जीने वाली शख्सियत थीं, जिनके लेखन ने साहित्य जगत को नया आयाम दिया। कुलमिलाकर पाठक अमृता प्रीतम के बारे में पाठक जितना पढ़ेगा उतना ही रहस्य गहराता जाएगा। 

बंटवारे पर लिखे गए उपन्यासों में उम्दा रचना है 'पिंजर'

पाकिस्तान के गुजरांवाला में 31 अगस्त, 1919 को जन्मीं अमृता प्रीतम ने हर विषय पर कलम चलाई है। बंटवारे के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच खिंची तलवारों ने कितने जिस्म छलनी किए और कितनी रूहों को प्यासा रख छोड़ा, यह जानने के लिए अमृता प्रीतम का उपन्यास 'पिंजर' ही काफी है।

'पिंजर' उपन्यास पर बनी फिल्म

देश के बंटवारे पर यशपाल के 'झूठा-सच' और भीष्म साहनी के 'तमस' के अलावा कोई उपन्यास मन पर गहरी छाप छोड़ता है तो वह है अमृता प्रीतम की रचना 'पिंजर'। इसी उपन्यास से प्रभावित होकर फिल्म निर्माता-निर्देशक चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने 'पिंजर' नाम से एक बेहतरीन फिल्म बनाई है।

नफ़रत में जन्मी मासूम प्रेम कहानी को मुकाम देती हैं अमृता

लेखक हमेशा अपने साहित्य में पाठकों को इंसानियत के दर्द, उसकी तकलीफों और खुशियों से रूबरू कराता है और उसका अंजाम भी प्रस्तुत करता है। 'पिंजर' उपन्यास में अमृता प्रीतम के लेखन से ऐसा लगता है, जैसे सारी घटनाएं उनकी आंखों के सामने गुजरी हैं। इसमें वह अंत में इंसानियत और रिश्ते की मर्यादा का भी चित्रण करती हैं,  जिसमें एक खलनायक के प्रति भी पाठकों के मन में कोई खटास नहीं रहती है।

पूरो/हमीदा और रशीद के नफरत से शुरू हुई जिंदगी को मोहब्बत के अंजाम तक पहुंचाने की कूबत शायद अमृता प्रीतम के पास थी। पूरो भी रशीद में बदलाव को शिद्दत से महसूस करती है और हकीकत को स्वीकार करती है।

'रसीदी टिकट' बन गया कालजयी उपन्यास

साहित्यिक अभिरुचि का वह छात्र वास्तव में बेहद बदनसीब होगा, जिसने अमृता प्रीतम का कालजयी उपन्यास 'रसीदी टिकट' नहीं पढ़ा होगा। अमृता प्रीतम की लेखनी पाठकों को चुंबक की तरह खींचती है और वह इस महान लेखिका की रचनाओं का आदी हो जाता है।

अमृता को जानने का जरिया हो सकता है 'रसीदी टिकट'

अमृता प्रीतम का उपन्यास 'रसीदी टिकट' पढ़ते पाठक कई अनुभवों से गुजरता है। कभी वह साहिर बनकर अमृता प्रीतम को चाहने वाला बन जाता है तो कभी इमरोज जैसा आशिक।

इमरोज वह शख्स है जो आम पाठक की तरह ही जानने और समझने की कोशिश में जीवन गुजार रहा है कि अमृता आखिर क्या बला थी। 'मुझे अमृता चाहिए' नाटक का मंचन जब भी होता है तो बुलावे पर वही तड़प लेकर इमरोज आते हैं। वह नाटक देखते और सराहते हैं।

साहिर-अमृता की ये कैसी मोहब्बत

अपने शानदार गीतों के जरिये मिलन-जुदाई को खूबसूरती से बयां करने वाले मशहूर शायर साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम की मोहब्बत को समझना आज भी नामुमकिन सा है। 20वीं सदी में ऐसे नाकाम रिश्ते की कल्पना से भी मन सिहर जाता होगा। दरअसल, साहिर और अमृता के बीच जिस्मानी रिश्ता कभी रहा नहीं और रुहानी रिश्ता आम आदमी की समझ से परे है। यही वजह है कि दोनों के बीच रिश्ते और मोहब्बत, पाठक के लिए पहेली हैं तो आम आदमी के लिए समझ से परे।

प्रीतम सिंह से प्रीतम लिया और फिर अमृता ने छुड़ा लिया दामन

31 अक्टूबर, 2005 को जिंदगी को अलविदा कहने से पहले अमृता प्रीतम ने उपन्यासों, कविताओं और खतों में वह लिख डाला, जो किसी आम भारतीय महिला के लिए 21 वीं सदी के अंत में भी संभव न होगा।

महज 16 वर्ष में यानी 1935 में अमृता की शादी लाहौर के कारोबारी प्रीतम सिंह से हुई। अमृता प्रीतम ने कभी स्वीकार नहीं किया कि प्रीतम से मोहब्बत भी हुई, लेकिन अमृता ने प्रीतम नाम जरूर ले लिया। प्रीतम सिंह और अमृता प्रीतम के 2 बच्चे भी हुए, लेकिन दोनों के बीच क्या था? यह तो अमृता के मन में था या प्रीतम के जेहन में.. आखिरकार अमृता प्रीतम ने ही 1960 में पति प्रीतम सिंह को छोड़ दिया।

अजम प्रेम की गज़ब कहानी

अमृता और साहिर में बहुत सी चीजें समान थीं। साहित्यिक अभिरुचि तो थी ही, लेकिन एक तन्हाई दोनों में थी जिससे वह करीब आए। यह सच है और जिसे दुनिया के साथ लेखिक अमृता प्रीतम भी मानती हैं कि उन्हें मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी से प्रेम हुआ।

कहा जाता है कि साहिर की जिंदगी में एक महिला के आने से दोनों एक दूजे के नहीं हो सके।

कयास लगाए जाते रहे कि वह महिला एक गायिका थी और धर्म जुदा होने से साहिर शादी न कर सके या कहें हो ना सकी। '...मैं जानता हूं कि तु गैर है मगर यू हीं... कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है।'

अमिताभ बच्चन, राखी अभिनीत 'कभी-कभी' फिल्म का गीत सुनकर बहुत कुछ अंदाजा लग जाता है कि वह अमृता प्रीतम तो नहीं हैं क्योंकि वह तो साहिर पर फिदा थीं।

हैरत की बात है कि साहिर से अमृता प्रीतम जहनी प्यार करती थीं। खैर साहिर न तो करीब आ सके और न दूरी बना सके, ऐसे में चित्रकार व लेखक इमरोज आए जिन्हें अमृता से प्रेम हुआ। यह भी कहा जाता है कि अमृता प्रीतम इमरोज की पीठ पर साहिर का नाम अपनी अगुंलियों से लिखती थीं।

यह भी  हैरत है कि अपनी पीठ पर अमृता साहिर का नाम लिख रही हैं, यह जानकर भी इमरोज खामोश रहते थे। अमृता, साहिर और इमरोज के रिश्ते पर लेखिका अक्सर कहती थीं 'साहिर मेरी जिंदगी के लिए आसमान हैं और इमरोज मेरे घर की छत'।

जो लिव इन आज भारतीय युवाओं के फैशन बन गया है। वह अमृता के लिए जीने का अंदाज था। वह आजादी का एक अंदरूनी अहसास थ, जिसे उन्होंने दिल खोल और बेपरवाह हो कर जिया। अमृता तकरीबन 4 दशक तक इमरोज के साथ बिना शादी के लिए रहीं। यह भी जान लें कि अमृता और इमरोज के बीच उम्र में सात साल का फासला था।

दुनिया को विदा कहने से पहले यानी 31 अक्टूबर, 2005 से कुछ समय पहले अमृता ने अंतिम नज्म लिखी ‘मैं तुम्हें फिर मिलूंगी’, जो सिर्फ इमरोज के लिए थी। कहा जाता है कि शायद साहिर से अलगाव के बाद अमृता ने इमराेज के साथ 40 साल बिना शादी किए साथ बिताए।

अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ की भूमिका में अमृता लिखती हैं-‘मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी, क्या उपन्यास, सब एक नाजायज बच्चे की तरह हैं। मेरी दुनिया की हकीकत ने मेरे मन के सपने से इश्क किया और उसके वर्जित मेल से ये रचनाएं पैदा हुईं।’

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