झूठ की राजनीति के मजबूत होते पैर: आज के युग में संसद में दिए गए किसी के भाषण के अंश हटाकर नहीं किया जा सकता झूठ का प्रतिकार

भाजपा नेता इससे खुश हो सकते हैं कि राहुल गांधी के भाषण के कई अंश लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिए गए लेकिन यह व्यर्थ की खुशफहमी है। आज के युग में इस तरह से झूठ का प्रतिकार नहीं किया जा सकता। भले ही राहुल गांधी के संबोधन के कई अंश लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिए गए हों लेकिन वे डिजिटल मीडिया में उपस्थित हैं।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Tue, 02 Jul 2024 11:45 PM (IST) Updated:Tue, 02 Jul 2024 11:45 PM (IST)
झूठ की राजनीति के मजबूत होते पैर: आज के युग में संसद में दिए गए किसी के भाषण के अंश हटाकर नहीं किया जा सकता  झूठ का प्रतिकार
झूठ की राजनीति के मजबूत होते पैर। (File Photo)

राजीव सचान। कहावत तो यह है कि झूठ के पैर नहीं होते, लेकिन राजनीति में झूठ के पैर भी होते हैं और वह तेज गति से चलते भी हैं। यही नहीं, कभी-कभी वे लंबी दूरी भी तय करते हैं और समाज एवं देश को क्षति भी पहुंचाते हैं। राजनीति में झूठ का सहारा लेना अथवा किसी के कथन को तोड़-मरोड़ कर पेश करना या फिर उसकी मनमानी व्याख्या करना कोई नई-अनोखी बात नहीं। यह काम लंबे समय से होता चला आ रहा है। अब यह कहीं अधिक सुनियोजित तरीके से होने लगा है।

लोकसभा चुनाव के दौरान आरक्षण पर अमित शाह का ‘बयान’ इसी सुनियोजित शरारत का प्रमाण था। डिजिटल मीडिया के इस युग में जब सोशल नेटवर्क साइट्स का प्रभाव बढ़ता चला जा रहा है और नैरेटिव बनाने में उनकी भूमिका बढ़ गई है, तब झूठ को गढ़ने और उसे प्रचारित-प्रसारित करने का पूरा एक तंत्र खड़ा हो चुका है। इस तंत्र में कुछ फर्जी फैक्टचेकर भी शामिल हैं। इस तंत्र के चलते अब अपने मनमाफिक नैरेटिव खड़ा करना कहीं अधिक आसान हो चुका है। इधर से आलू डालो-उधर से सोना निकालो और हर किसी के खाते में 15-15 लाख रुपये पहुंचेंगे, इसी तंत्र का कमाल था।

लोकसभा चुनाव के समय झूठ के पैर लगाने और उसे दौड़ने वाला तंत्र कहीं अधिक सक्रिय दिखा। नेता भी इस तंत्र का हिस्सा बने और इसका एक प्रमाण तब देखने को मिला, जब कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के नेताओं ने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि यदि भाजपा चार सौ सीटों के साथ सत्ता में आ गई तो संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म कर देगी। भाजपा ने इस नैरेटिव की काट के लिए तमाम जतन किए, लेकिन नाकाम रही और उसे उसका राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ा।

हालांकि भाजपा ने भी राजनीतिक लाभ के लिए यह नैरेटिव चलाने का प्रयास किया कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों की संपत्ति का सर्वे करके उन्हें अपने वोट बैंक के बीच बांटने का काम करेगी, लेकिन इसमें उसे नाकामी ही मिली और वह भी तब, जब यह प्रचार खुद प्रधानमंत्री मोदी ने किया। चूंकि कांग्रेस को संविधान खतरे में है का हौवा खड़ा करने में सफलता मिली, इसलिए वह अभी भी यह थोथा नैरेटिव चलाने में लगी हुई है कि हमने संविधान बचाने का काम किया। राहुल गांधी ने नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अपने पहले संबोधन में यही दावा किया।

यह वही राहुल गांधी हैं, जिन्हें उस आपातकाल की आलोचना रास नहीं आई, जिसके जरिये संविधान की प्रस्तावना को बदलने के साथ ऐसे संशोधन लाकर यह भी प्रविधान कर दिया गया था कि संसद से पारित कानूनों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। यह नग्न तानशाही थी, फिर भी कांग्रेस इस पर जोर देने में लगी हुई है कि आपातकाल की आलोचना नहीं की जानी चाहिए। यह चोरी और सीनाजोरी का सटीक उदाहरण था कि राहुल गांधी को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को यह नसीहत देने में कोई संकोच नहीं हुआ कि सदन में आपातकाल के खिलाफ प्रस्ताव नहीं लाया जाना चाहिए।

नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी ने कई झूठ सच की तरह स्थापित करने की कोशिश की। उन्होंने डंके की चोट पर कहा, जो अपने को हिंदू कहते हैं, वह 24 घंटे हिंसा और नफरत...। बाद में वह यह भी डंके की चोट पर कहते नजर आए कि उन्होंने किसी का अपमान नहीं किया। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस नेता न केवल राहुल गांधी के बचाव में उतर आए, बल्कि इस पर भी जोर देने लगे कि उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा। यही वह तंत्र करने में लग गया, जिसका काम ही झूठ को सच की शक्ल देना होता है।

भाजपा नेता इससे खुश हो सकते हैं कि राहुल गांधी के भाषण के कई अंश लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिए गए, लेकिन यह व्यर्थ की खुशफहमी है। आज के युग में इस तरह से झूठ का प्रतिकार नहीं किया जा सकता। भले ही राहुल गांधी के संबोधन के कई अंश लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिए गए हों, लेकिन वे डिजिटल मीडिया में उपस्थित हैं। इसीलिए राहुल गांधी ठसक के साथ कहने में लगे हुए हैं कि हटा दो, मुझे जो कहना था, कह दिया। जब संसद में इतनी आसानी से झूठ कहा जा सकता है, तब इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है कि बाहर कितना बेफिक्र होकर कहा जा सकता है।

राहुल गांधी ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने पहले संबोधन में झूठ की अच्छी-खासी दीवार खड़ी की। उन्होंने अग्निपथ योजना को लेकर कहा कि किसी अग्निवीर की जान जाने पर सरकार उसके परिवार के लोगों को कोई मुआवजा नहीं देती। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को तत्काल खड़े होकर कहना पड़ा कि सरकार एक करोड़ रुपये की धनराशि देती है और राहुल को सदन को गुमराह नहीं करना चाहिए, लेकिन उनका तो उद्देश्य ही यही था और इसीलिए उन्होंने यह भी कहा कि सरकार किसानों को एमएसपी नहीं देती। उनके इस झूठ का खंडन कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को करना पड़ा।

इसके भरे-पूरे आसार हैं कि आने वाले समय में नेता झूठ का सहारा लेने में कोई संकोच नहीं करेंगे। इसके नतीजे में राजनीति में झूठ का बोलबाला और बढ़ेगा। इसके आसार इसलिए अधिक हैं, क्योंकि राहुल गांधी के संसद में सड़क सरीखे भाषण को उनके दल के नेता ऐतिहासिक भाषण की संज्ञा दे रहे हैं, जबकि अपने इस भाषण के जरिये राहुल गांधी कोई छाप नहीं छोड़ सके। उन्होंने अपने भाषण में यह तो कहा कि आइए मिलकर काम करें, लेकिन फिर खुद ही यह सुनिश्चित कर दिया कि इसकी सूरत न बने।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)

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