गुणवत्ता पर सवाल: मसालों के आयात पर लग रही पाबंदियों को लेकर सरकार के साथ उद्यमियों को भी चेतना होगा

यह निराशाजनक है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण न तो भारतीय कंपनियों के उत्पादों की गुणवत्ता की सही तरह छानबीन कर पाता है और न ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों की। अब जब भारतीय उत्पादों का निर्यात बढ़ रहा है तब सरकार को यह सुनिश्चित करना ही होगा कि न केवल देश में बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता सही हो बल्कि निर्यात होने वाले उत्पादों की भी।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya
Updated: Mon, 20 May 2024 10:00 PM (IST)
गुणवत्ता पर सवाल: मसालों के आयात पर लग रही पाबंदियों को लेकर सरकार के साथ उद्यमियों को भी चेतना होगा
मसालों के आयात पर लग रही पाबंदियों को लेकर सरकार के साथ उद्यमियों को भी चेतना होगा. (फाइल फोटो)

सिंगापुर, हांगकांग के बाद नेपाल ने जिस तरह कुछ भारतीय कंपनियों के मसालों के आयात पर पाबंदी लगाई, वह चिंताजनक है। इसलिए और भी अधिक, क्योंकि इस बीच न्यूजीलैंड, अमेरिका आदि ने भी यह कहा है कि वे भारत से आयात होने वाले मसालों की गुणवत्ता की जांच करेंगे।

यह ठीक है कि एक के बाद एक देशों की ओर से भारतीय मसालों की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जाने पर सरकार ने यह कहा है कि वह नए मानक तैयार करने के साथ ही यह भी देखेगी कि भारतीय मसाला कंपनियों के खिलाफ विभिन्न देश जो कदम उठा रहे हैं, उसके पीछे कहीं कोई साजिश तो नहीं है, लेकिन अच्छा होता कि सरकार तभी चेत जाती, जब सिंगापुर और हांगकांग ने एमडीएच एवं एवरेस्ट कंपनियों के मसालों में हानिकारक पदार्थ पाए जाने की शिकायत करते हुए उनके आयात पर पाबंदी लगा दी थी।

चूंकि भारत मसालों का सबसे बड़ा निर्यातक है और उनके निर्यात से देश को अच्छी-खासी विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है, इसलिए भारतीय मसाला बोर्ड के साथ-साथ सरकार को समय रहते सजगता दिखानी चाहिए थी। मसालों की गुणवत्ता को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। कई बार यह सामने आ चुका है कि देश में बिकने वाले विभिन्न कंपनियों के मसालों की गुणवत्ता ठीक नहीं होती। उनमें अखाद्य वस्तुएं वस्तुएं तक मिलाई जाती हैं।

बात केवल मसालों की ही नहीं है। अन्य अनेक खाद्य एवं पेय पदार्थों के साथ-साथ दवाओं की गुणवत्ता की भी है। यह किसी से छिपा नहीं कि किस तरह कुछ देशों ने भारत से आयात होने वाली खांसी की दवा को विषाक्त बताते हुए उस पर पाबंदी लगाई थी। इसके बाद भारत सरकार को कार्रवाई करने के लिए विवश होना पड़ा था। प्रश्न यह है कि आखिर भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता पर दूसरे देशों में सवाल उठने के बाद ही सरकार और उसकी एजेंसियां क्यों चेतती हैं?

भारत में खाद्य एवं पेय पदार्थों के साथ दवाओं की गुणवत्ता के साथ समझौता होता ही रहता है। यह इसीलिए होता है, क्योंकि जिन पर भी यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि मानकों से कोई समझौता न होने पाए, वे लापरवाही का परिचय देते हैं। यह कहने में संकोच नहीं कि इसका कारण संबंधित अधिकारियों का भ्रष्टाचार है।

यह निराशाजनक है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण न तो भारतीय कंपनियों के उत्पादों की गुणवत्ता की सही तरह छानबीन कर पाता है और न ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों की। अब जब भारतीय उत्पादों का निर्यात बढ़ रहा है, तब सरकार को यह सुनिश्चित करना ही होगा कि न केवल देश में बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता सही हो, बल्कि निर्यात होने वाले उत्पादों की भी। सरकार के साथ ही उद्यमियों को भी चेतना होगा। उन्हें अपने उत्पादों की गुणवत्ता को विश्वस्तरीय और विश्वसनीय बनाने के लिए अतिरिक्त प्रयत्न करने होंगे।