सुधारों के विरोध की आदत, यह कांग्रेस की भूल या नई तरह की राजनीति

यह आदत अंध विरोध का ही परिचायक है। इस आदत के चलते वह यह मान बैठी है कि मोदी सरकार कुछ नया कर रही है तो गलत ही कर रही होगी। इसी कारण उसने संसद के नए भवन का विरोध किया फिर उसके उद्घाटन समारोह का भी। इसके अतिरिक्त कृषि कानूनों का भी जबकि खुद उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ऐसे ही कानून बनाने का वादा किया था।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Sat, 20 Jan 2024 11:30 PM (IST) Updated:Sat, 20 Jan 2024 11:30 PM (IST)
सुधारों के विरोध की आदत, यह कांग्रेस की भूल या नई तरह की राजनीति
एक देश, एक चुनाव पर कांग्रेस की भूल या नई तरह की राजनीति (File Photo)

कांग्रेस की ओर से एक देश-एक चुनाव पर विचार-विमर्श कर रही पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली समिति को पत्र लिखकर यह जो कहा गया कि संसदीय प्रणाली में एक साथ चुनाव के लिए कोई जगह नहीं, वह इसलिए केवल विरोध के लिए विरोध है, क्योंकि 1967 तक लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव होते थे।

क्या कांग्रेस यह कहना चाहती है कि तब नेहरू और इंदिरा गांधी की ओर से लोकतंत्र को क्षति पहुंचाई जा रही थी? सब जानते हैं कि 1967 तक जब एक साथ चुनाव हो रहे थे, तब उनसे किसी को कोई समस्या नहीं थी और सब कुछ सुगम तरीके से हो रहा था। कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी ने भी एक साथ चुनाव के विचार का विरोध किया है।

इससे यही पता चलता है कि वह यह भूल गई कि उसने नई तरह की राजनीति का वादा किया था। राजनीति और लोकतंत्र के हित के साथ देश के समय और संसाधनों की बचत की दृष्टि से यही उचित है कि एक साथ चुनाव हों। यह ठीक है कि इसके लिए संविधान में कुछ संशोधन करने होंगे, लेकिन यह कोई ऐसा काम नहीं, जिसे किया जाना निषेध हो। ये संशोधन आसानी से हो सकते हैं।

होना तो यह चाहिए था कि कांग्रेस समेत अन्य अनेक दल इस बारे में अपने सार्थक सुझाव देते कि एक साथ चुनाव कराने के लिए क्या किया जाना चाहिए? इसके स्थान पर वे ऐसा दर्शा रहे हैं, जैसे कोविन्द समिति ऐसा कुछ करने जा रही है, जिसे संविधान अनुमति न देता हो। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से कोविन्द समिति को लिखी गई चिट्ठी यही बता रही है कि कांग्रेस को सुधार की किसी भी पहल का बिना सोचे-समझे विरोध करने की आदत पड़ गई है।

यह आदत अंध विरोध का ही परिचायक है। इस आदत के चलते वह यह मान बैठी है कि मोदी सरकार कुछ नया कर रही है तो गलत ही कर रही होगी। इसी कारण उसने संसद के नए भवन का विरोध किया, फिर उसके उद्घाटन समारोह का भी। इसके अतिरिक्त कृषि कानूनों का भी, जबकि खुद उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ऐसे ही कानून बनाने का वादा किया था।

इसी तरह उसने एक समय नागरिकता संशोधन कानून में वैसे ही परिवर्तन करने की मांग की थी, जैसे कि किए गए और फिर जिनका वह विरोध करने लगी। एक साथ चुनाव का विरोध करने वाले बड़ी आसानी से इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि अभी भी ओडिशा और आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही हो रहे हैं। आखिर जो काम ओडिशा और आंध्र प्रदेश में हो सकता है, वह शेष देश में क्यों नहीं हो सकता? ओडिशा और आंध्र का उदाहरण तो यही बता रहा है कि एक साथ चुनाव के विरोध में जो तर्क दिए जा रहे हैं, वे नितांत खोखले हैं।

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