'जिंदगी में रोशनी कम और अंधेरा ज्यादा...', कॉमेडियन Sunil Grover ने कही दिल की बात, पिता से खाते हैं खौफ

अपने सेंस ऑफ ह्यूमर से लोगों को हंसाने वाले सुनील ग्रोवर (Sunil Grover) विलेन अवतार से लोगों को डराना भी जानते हैं। Blackout में विलेन बने सुनील ने बताया कि सबसे मुश्किल काम लोगों को हंसाना ही है। दैनिक जागरण के साथ बातचीत में सुनील ग्रोवर ने अपनी प्रोफेशनल से लेकर पर्सनल लाइफ तक के बारे में बात की है।

By Jagran NewsEdited By: Rinki Tiwari Publish:Fri, 14 Jun 2024 09:11 AM (IST) Updated:Fri, 14 Jun 2024 09:11 AM (IST)
'जिंदगी में रोशनी कम और अंधेरा ज्यादा...', कॉमेडियन Sunil Grover ने कही दिल की बात, पिता से खाते हैं खौफ
जवान के बाद फिर से एटली संग काम करने पर बोले सुनील ग्रोवर। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम

HighLights

  • सुनील ग्रोवर को इस किरदार में आता है सबसे ज्यादा मजा
  • आज भी पिता से डरते हैं सुनील ग्रोवर
  • सुनील ग्रोवर ने एटली संग काम करने पर तोड़ी चुप्पी

प्रियंका सिंह, मुंबई। अभिनेता और कामेडियन सुनील ग्रोवर (Sunil Grover) हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ब्लैकआउट (Blackout) में नेगेटिव रोल में दिखे। वहीं सनफ्लावर वेब सीरीज में दारोमदार उनके कंधों पर ही था। सुनील का कहना है कि कलाकार तभी खुद को साबित कर पाएगा, जब उसे अलग तरह का काम ऑफर होगा। उनका मानना है कि उनमें हर तरह के रोल करने का आत्मविश्वास है।

आपको प्रसिद्धी कामेडी से मिली है। वहीं मेकर्स आपको दूसरे रोल में भी मौके दे रहे हैं। जोखिम नहीं लगता है कि दर्शकों की पसंद का काम करूं या मेकर्स के ?

सच कहूं तो मैं कामेडी करके खुश हूं। अगर लोग उम्मीद करते हैं कि मैं उन्हें हंसाऊंगा, तो हंसाना सबसे मुश्किल विधा है। जब कामेडी से अलग दूसरे किरदार निभाने का मौका मिलता है, तो वह कामेडी से एक ब्रेक की तरह होता है। जैसे तांडव वेब सीरीज में मैं नेगेटिव रोल में था। मैंने शो के निर्देशक अली अब्बास जफर से कहा भी था कि सोच लो, क्या मैं इसमें सही लगूंगा।

सुनील ग्रोवर ने कहा कहा कि मैं आश्वस्त हूं। उनकी हां सुनकर अच्छा लगा। हालांकि मुझे पता है कि मैं हर तरह के रोल कर सकता हूं, लेकिन जब दर्शकों ने मुझे अपनाया, तब लगा कि मेरी और दर्शकों की सोच काफी मिलती है। इससे आत्मविश्वास बढ़ गया है।

कामेडी शो में जब स्टेज पर आपकी एंट्री होती है, तो तालियां बजती हैं। क्या दर्शकों का प्यार कभी मन में अंहकार लाता है ?

मुझे तो यह जादू जैसा लगता है कि ऐसा कुछ मेरे साथ हो रहा है। मुझे कभी नहीं लगा कि यह सब मैं कर रहा हूं। यह बस होता चला गया । यही विचार मुझे लोगों के सामने सहज भी कर देता है। जब दिमाग में यह बात आ जाएगी कि सब कुछ मैं कर रहा हूं, तो अंहकार आ जाएगा। जहां तक तालियों की बात है, तो वह हर स्वरूप में अच्छी ही लगती हैं।

फादर्स डे करीब है। आपके पिता सख्त रहे हैं या खुलकर अपनी भावनाएं आपके साथ व्यक्त करते हैं?

वह तो मुझे अब भी डराकर रखते हैं। मैं खुद पिता हूं, लेकिन अब भी उनसे डरता हूं। पिता ऐसे ही होते हैं, वह जब आपको डराते हैं, तो उसका मतलब होता है कि वह आपके बारे में सोच रहे हैं, चिंता कर रहे हैं। बच्चा कितना भी बड़ा हो जाए, पिता तो पिता ही होता है। जब मैं खुद पिता बना, तो समझ आया कि पिता आपके लिए क्या-क्या करते हैं, किस भावना से डांटते हैं।

पापा से डर किस बात का लगता है? अब इस उम्र में तो उनसे मार तो नहीं पड़ती होगी ?

हां, मार तो नहीं पड़ती है। दरअसल, यहां डर से मतलब उनकी इज्जत करने को लेकर है। कई चीजें हम माता- पिता के सामने इसलिए करते हैं, क्योंकि हम उनकी इज्जत करते हैं। उनसे डरना या उनकी इज्जत करना प्यार का ही स्वरूप होता है।

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पिता के तौर पर खुद को अपने पिता से कितना अलग पाते हैं?

मेरे पिता मुझसे बेहतर हैं। अच्छा पिता बनने में मुझे अभी और समय लगेगा। मैं बच्चों को बिगाड़ने वाले पिता में से हूं। मुझे पापा और अपने बेटे से डर लगता है। उन्हें देखकर लगता है कि दोनों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।

सुनने में आया है कि आप जवान फिल्म के बाद फिर से निर्देशक एटली के साथ फिल्म कर रहे हैं?

नहीं, इसमें कोई सच्चाई नहीं है । उनके साथ तो नहीं, लेकिन एक प्रोजेक्ट में काम कर रहा हूं, जिसको लेकर महीने भर में चीजें स्पष्ट हो जाएंगी।

ब्लैकआउट फिल्म में पूरे शहर की बिजली चली जाती है। कभी जीवन में अंधेरा छाया, तो उससे निकलने की प्रक्रिया क्या रही ?

मुझे जीवन में जो मिला है, वह सब कुछ सरप्लस ही लगता है, जरूरत से ज्यादा ही मिला है। केवल मुनाफा हुआ है, नुकसान नहीं। इसलिए मैं कठिन परिस्थितियों में परेशान नहीं होता हूं। मैं छोटे शहर से हूं, जहां बिजली अक्सर रात में चली जाती थी। गर्मियों में जब देर रात दो - तीन बजे बिजली आती थी और पंखा घूमने लगता था, तो दुनिया में उससे बड़ी खुशी वही लगती थी । मुझे सुबह छह बजे स्कूल के लिए उठना होता था।

रात के तीन बजे जब पंखा चल पड़ता था, तो खुशी होती थी कि अब तीन घंटे पंखे की हवा में सोने को मिलेगा। रात में कहीं जाना होता था, तो टार्च लेकर जाते थे। सड़क की लाइटें भी नहीं जलती थीं। मैंने जीवन में रोशनी कम और अंधेरा ज्यादा देखा है। लोगों को बिजली का आ जाना छोटी खुशी लगती होगी, मेरे लिए बहुत बड़ी थी। इसलिए आज जो भी मिला है, उसको लेकर केवल आभार व्यक्त करता हूं।

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