Raghubir Yadav Interview: अभिनय नहीं इस फील्ड में करियर बनाना चाहते थे रघुबीर, इंटरव्यू में किए कई बड़े खुलासे

Raghubir Yadav Interview मैं तो बुंदेलखंडी बोलता था मेरे श और स में फर्क नहीं था। उनको देखकर लगा कि एक्टिंग के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। फिर जिंदगी में जो देखा वो सीखता गया उसी से सारी चीजें धीरे-धीरे समझ आती गई। यह ऐसा सफर है जो कभी खत्म नहीं होता है इसमें आप जितना सीखने की कोशिश करते हैं उतनी ही गहराई में उतरते जाते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Sun, 23 Jul 2023 10:53 PM (IST) Updated:Sun, 23 Jul 2023 10:53 PM (IST)
Raghubir Yadav Interview: अभिनय नहीं इस फील्ड में करियर बनाना चाहते थे रघुबीर, इंटरव्यू में किए कई बड़े खुलासे
Raghubir Yadav Interview: पढ़िए रघुबीर यादव का इंटरव्यू।

HighLights

  • मेरा संबंध तो संगीत से रहा है। मैं तो संगीत सीखने के लिए घर से निकला था। एक्टिंग गले पड़ गई।
  • मैं लीड, छोटा या बड़ा किरदार नहीं मानता हूं, मुझे किरदार की लंबाई से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
  • कई बार छोटा किरदार ही इतना अच्छा होता है कि उसके सामने लीड भी कोई मायने नहीं रखता है।

अभिनेता रघुबीर यादव ने अपने फिल्मी करियर में विविध भूमिकाएं निभाई हैं। इन दिनों वह सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई फिल्म माइनस 31 द नागपुर फाइल्स में एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी की भूमिका में नजर आ रहे हैं। सिनेमा के नजरिए से रघुबीर वर्तमान समय को सबसे बेहतर मानते हैं। उनसे उनकी फिल्म, सिनेमाई सफर तथा सिनेमा जगत के तमाम पहलुओं पर बातचीत।

1. इससे पहले भी क्या कभी पुलिसकर्मी की भूमिका निभाने का अवसर मिला था?

इससे पहले एक शार्ट फिल्म थी भास्कर बेचैन, उसमें मैंने पुलिसकर्मी की भूमिका निभाई थी। बाकी इससे पहले कभी किसी फीचर फिल्म में पुलिसकर्मी की भूमिका नहीं निभाई। मेरी कद काठी पुलिसकर्मियों की तरह अच्छी नहीं है। इसमें भी पुलिस की वर्दी में ज्यादा सीन नहीं है, बस एक-दो सीन हैं, जो फ्लैशबैक में दिखाए गए हैं।

इस फिल्म में दिखाया गया पिता-पुत्री का रिश्ता मुझे बहुत कमाल का लगा। पिता के रिटायर होने के बाद अब बेटी पुलिस में है और दोनों के उसूल बिल्कुल अलग हैं। (मुस्कुराते हुए) पिता पुत्री की नोकझोंक चलती रहती हैं, बाद में बेटी बड़ी खूंखार हो जाती है। वह मेरे लिए मां और बेटी दोनों बनकर लड़ाई करती रहती है। पिता की भी दोहरी जिम्मेदारियां होती हैं।

2. विचारों में मतभेद तो फिल्मों के सेट पर भी होते होंगे, उस स्थिति में कैसे निपटते हैं?

(हंसते हुए) बीच का रास्ता निकाल लेते हैं, सामने वाले की भी सुन लेते हैं और अपनी भी। सामने वाले को पता भी नहीं चलता कि इसने अपनी मन की सुनकर ही काम कर दिया। ये मैंने थिएटर से सीखा है कि सामने वाले पता भी न चले कि मैंने उनकी बातें सुनकर, काम अपनी मर्जी का कर लिया है। ये सारी चीजें अनुभवों के साथ आती हैं।

3. जब आपने थिएटर से एक्टिंग में कदम रखा था, तो क्या सोचा था और अब स्वयं को किस जगह पर पाते हैं?

मेरा संबंध तो संगीत से रहा है। मैं तो संगीत सीखने के लिए घर से निकला था। एक्टिंग गले पड़ गई। जब गले पड़ गई तब समझा कि एक्टर का पेशा क्या है, उसे कैसे करना चाहिए? किरदार का दायरा और कलाकार का अनुशासन समझा। थिएटर में मैंने बड़े-बड़े एक्टरों को देखा उनकी भाषा देखी।

मैं तो बुंदेलखंडी बोलता था, मेरे श और स में फर्क नहीं था। उनको देखकर लगा कि एक्टिंग के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। फिर जिंदगी में जो देखा वो सीखता गया, उसी से सारी चीजें धीरे-धीरे समझ आती गई। यह ऐसा सफर है जो कभी खत्म नहीं होता है, इसमें आप जितना सीखने की कोशिश करते हैं उतनी ही गहराई में उतरते जाते हैं। मुझे अभी भी लगता है कि मैंने तो अभी शुरुआत की है।

4. अब तो हर उम्र और वर्ग के पात्रों को केंद्र में रखकर कहानियां बन रही हैं, क्या आप भी ऐसा कोई प्रोजेक्ट कर रहे हैं?

मेरे पास ऐसे कई प्रोजेक्ट आ रहे हैं। मैं उनमें से कुछ करूंगा भी। दूसरी बात यह कि मैं लीड, छोटा या बड़ा किरदार नहीं मानता हूं, मुझे किरदार की लंबाई से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

कई बार छोटा किरदार ही इतना अच्छा होता है कि उसके सामने लीड भी कोई मायने नहीं रखता है। कभी-कभी तो लीड भूमिकाएं उनको मिल जाती हैं, जो पूरी फिल्म को डुबो देते हैं। बाकी उम्र वगैरह मैं नहीं मानता हूं, आप जिस उम्र के जैसा सोचेगे, आप वैसा बन जाते हैं।

5. कभी कोई ऐसे निर्णय भी रहा है, जिसको लेने के बाद लगा कि गलती कर दी?

एक-दो प्रोजेक्ट होंगे, ऐसे बाकी मैंने ज्यादा ऐसा काम किया नहीं है। मैं नाम नहीं लूंगा, लेकिन उन प्रोजेक्ट्स को करने के बाद ही मुझे पता चल गया था कि नहीं करना चाहिए था। क्योंकि लोगों की प्रतिक्रियाएं आ गई थी। हां, ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं, जिनको करने के बाद वह संतुष्टि नहीं मिली, जो बतौर कलाकार मिलनी चाहिए थी, लगा कि और बेहतर कर सकता था।

6. कई वीडियो में आप बांसुरी बजाते नजर आते हैं, इसके प्रति लगाव कैसे हुआ?

यही मुंबई आकर शुरू किया था। बचपन में तो ऐसा कुछ भी नहीं था, तब तो मेरे पास हारमोनियम के पैसे भी नहीं थे। एक बार मुझे 500 रुपये की स्कालरशिप मिली थी। उसी वक्त हम टूर करने कोलकाता गए थे, तो मैंने वहां उन पैसों से हारमोनियम खरीद लिया था। मेरे सारे पैसे तो अलग-अलग वाद्य यंत्र खरीदने में चले जाते हैं। बस दो वक्त की रोटी और वाद्य यंत्र मिल जाए, तो मैं मजे करने लग जाता हूं। मेरा पूरा घर अलग-अलग वाद्य यंत्रों से भरा हुआ है।

7. पंचायत 3 पर काम कितना आगे बढ़ा है?

उसकी आधी शूटिंग हो गई है और आधी बाकी है, जो बारिश की वजह से रोक दी है। बाकी शूटिंग अक्टूबर में होगी। दिसंबर में शो के आने की उम्मीद है।

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