Haryana News: इस बार क्यों फीकी पड़ गई सफेद सोने की चमक? जानिए सात बड़े कारण, किसान की चिंता को देख सरकार ने लिया अहम फैसला

Haryana News किसानों को कपास की खेती में भारी नुकसाना का सामना करना पड़ा है। लू के चलते फसल काफी खराब हो गई। इसको देखते हुए सात जिलों में कपास की खेती प्रमुखता से की जाएगी। सरकरा ने किसानों की चिंता को देखते हुए अहम फैसला लिया है। इससे सफेद सोने की चमक फिर से वापस लाई जाएगी। इससे आय भी बढ़ेगी।

By Jagran NewsEdited By: Sushil Kumar Publish:Sat, 29 Jun 2024 03:00 PM (IST) Updated:Sat, 29 Jun 2024 03:00 PM (IST)
Haryana News: इस बार क्यों फीकी पड़ गई सफेद सोने की चमक? जानिए सात बड़े कारण, किसान की चिंता को देख सरकार ने लिया अहम फैसला
Haryana News: कपास खेती की चमक पड़ी फीकी, किसान चिंतित।

HighLights

  • 30 प्रतिशत तक कम हुई कपास की बुआई
  • 10 प्रतिशत तक कपास का हिस्सा लू लगने से हो गया खराब
  • महंगे दामों पर मिलता है देसी कपास का बीज

अमित धवन, हिसार। हरियाणा कपास की खेती में देश में अहम पायदान पर हैं। प्रदेश में इस साल पिछले साल के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत कपास की खेती की बुआई कम हुई है। कारण है हर साल हो रहा गुलाबी सुंडी का प्रकोप। इस गुलाबी सुंडी ने किसानों की कमर तोड़ रखी है।

मगर इस साल गुलाबी सुंडी से पहले लू से किसानों को नुकसान हुआ है। लू से कपास की फसल का आठ से दस प्रतिशत का हिस्सा जल गया। यह नुकसान राजस्थान के साथ लगते रेतीले इलाके में उगी कपास की फसल पर हुआ। दूसरी तरफ किसान देसी कपास उगाने की योजना बनाए बैठे तो उनको बीज ही नहीं मिल पाया।

बीज तैयार, टेस्टिंग फेल

कारण था कि बीज कंपनियों ने जो बीज तैयार किया व टेस्टिंग में फेल हो गया। अभी प्रदेश के सिरसा जिले के बाद भिवानी और हिसार में सबसे ज्यादा कपास की बुआई की जा रही है। इन जिलों के अलावा फतेहाबाद, चरखीदादरी, जींद और महेंद्रगढ़ में कपास की मुख्य रूप से फसल होती है। इन जिलों में पिछले साल के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत कम बुआई का अनुमान है।

सही आंकड़ा अगले माह होने वाले सर्वे की रिपोर्ट के बाद आएगा। वहीं, 2022 में हुई भारी वर्षा से करीब एक लाख से ज्यादा किसानों की कपास की फसल तबाह हो गई थी। बीमा कंपनियों ने 500 करोड़ रुपये से ज्यादा किसानों को क्लेम दिया था।

लू से जल गई फसल

कपास की बुआई मई में शुरू हो जाती हैं। इस साल लू चलने के कारण भिवानी, चरखी दादरी और हिसार में कपास की फसल पर इसका सीधा असर पड़ा है। लू के चलने से करीब 10 प्रतिशत फसल जल गई है। किसानों ने भी उस फसल को नष्ट कर दिया। अब किसानों को गुलाबी सुंडी का डर सताने लगा हैं। गुलाबी सुंडी का ज्यादातर असर अगस्त माह में आना शुरू हो जाता हैं।

तीन साल में घट गया रकबा

हरियाणा के आंकड़ों पर नजर डाले तो गुलाबी सुंडी, सफेद मच्छर का प्रकोप कपास पर ज्यादा रहा है। इससे किसानों की कमर टूट गई हैं। पिछले तीन साल में 1.65 लाख हैक्टेयर कपास की रकबा कम हुआ हैं। 2020-21 में 7.40 लाख हैक्टेयर कपास की बुआई हुई थी जो पिछले साल 5.75 लाख हैक्टेयर रह गई थी। इस साल यह और ज्यादा घट गई हैं। इसका मुख्य कारण गुलाबी सुंडी का प्रकोप है, जो किसानों को हर साल नुकसान पहुंचा रही हैं।

इस साल हुई बुआई का अनुमान

जिला हैक्टेयर
सिरसा करीब डेढ़ लाख
हिसार एक लाख
भिवानी 80 हजार
फतेहाबाद करीब 70 हजार
चरखी दादरी करीब 25 हजार

नहीं था देसी कपास का बीज

बीटी काटन: कपास विज्ञानियों की माने तो दो तरह की कपास होती हैं। इसमें एक बीटी काटन है तो दूसरी देसी काटन। बीटी काटन एक तरह से हाईब्रिड बीज होता है। 2001-02 में जब कपास पर हरी सुंडी का असर आया था तो बीटी काटन का किसानों ने प्रयोग किया था। मगर समय के साथ सफेद मच्छर और गुलाबी सुंडी का प्रकोप होने लगा।

देसी कपास: इसके लिए बीज कंपनियां तैयार ही नहीं थी। देसी कपास के बीज की मांग थी लेकिन कंपनियों के पास नहीं था। दो साल पहले जब मांग बढ़ी तो पिछले साल उनकी तरफ से बीज तैयार किया गया। मार्केट में आने से उनकी जांच हुई तो वह कसौटी पर नहीं उतरे और सरकार ने उन पर रोक लगा दी। इससे निजी कंपनियों को नुकसान हुआ। वहीं किसान को देसी कपास की बीज ही नहीं मिल पाया।

किसानों की चिंता के कारण 

लूं में नरमा में नुकसान, सुंडी का प्रकोप। सरकार खरीद नहीं करती। एमएसपी बढ़ाने से कोई नहीं खरीदता। कई बार बीज न मिलने से जमीन खाली रह जाती है या सुंडी के कारण खड़ी फसल नष्ट हो जाती है। गत पांच सालों से अच्छी किस्म का बीज नहीं मिल रहा। देसी बीज तो बंद ही हो गया। दुकानों पर महंगे दामों पर बीज मिलता है। नकली दवा या स्प्रे से फसल सूख जाती है। कपास फसल में उखेड़ा, पत्ता मोड़िया या काला पड़ना, फंगस रोग आने की संभावना। बुआई से लेकर चुगाई तक 20 हजार से ज्यादा खर्चा

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उखेड़ा या फंगस रोग से सुंडी का डर रहता है। कई बार चुगाई कराना भी महंगा साबित होता है। कई बार फसल तैयारी होने को होती है और नकली स्प्रे से खराब हो जाती है। खरपतवार के लिए चार स्प्रे करने पड़ते हैं। 20 रुपये किलो चुगाई का खर्च है और 70 रुपये किलो। नकली दवा व बीज पर रोक लगे। मेले में बीज दिखाते हैं, नकली का पता नहीं चलता। किसानों को अच्छा बीज मुहैया करवाए। वर्षा नहीं आई। इन दिनों पहले वर्षा आ जाती थी।

-सतबीर यादव, बुड़ाक निवासी।

अभी अच्छी पैदावार की किस्म के बीज किसानों को मिलने चाहिए। विश्वविद्यालय कपास पर रिसर्च करें और वो किसानों को उपलब्ध हो। अभी उनको मार्केट में बीज नहीं मिल रहा है। इसके चलते काफी चक्कर काटे। उसके नहीं मिलने के कारण तीन एकड़ जमीन में कोई भी फसल नहीं उगा पाया। पिछले साल भी बेहतर बीज नहीं मिला था। नुकसान उठाना पड़ा था। एक एकड़ में 20 हजार रुपये से ज्यादा का खर्चा आ जाता है। बेहतर बीज पर उनको काम करना चाहिए।

-संदीप सिवाच, ढंढूर, किसान

कपास की बुआई होने के साथ विज्ञानियों की टीम ने नजर बनाई हुई है। कुछ जगह पर लू से फसल को नुकसान हुआ है। किसानों को जागरूक किया जा रहा है। अभी तक हीं भी गुलाबी सुंडी का असर सामने नहीं आया है।

-डॉ. राजबीर सिंह, ढंढूर, डिप्टी डायरेक्टर, कृषि विभाग, हिसार

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