बस स्टैंड हो या रेलवे स्टेशन नहीं बन पा रही रात्रि प्रवास की सुविधा

तपस्वी शर्मा, झज्जर: माल ढुलाई का काम करते है जनाब, सिरसा से यहां रेलवे स्टेशन पर उतरे

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Nov 2018 11:52 PM (IST) Updated:Wed, 28 Nov 2018 11:52 PM (IST)
बस स्टैंड हो या रेलवे स्टेशन नहीं बन पा रही रात्रि प्रवास की सुविधा
बस स्टैंड हो या रेलवे स्टेशन नहीं बन पा रही रात्रि प्रवास की सुविधा

तपस्वी शर्मा, झज्जर: माल ढुलाई का काम करते है जनाब, सिरसा से यहां रेलवे स्टेशन पर उतरे हैं। ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है। रेलवे स्टेशन से बाहर जाकर देखा तो स्थिति ओर भी ज्यादा खराब है। घनघोर अंधेरा छाया हुआ है। हिम्मत जुटा कर सभी साथी बाहर भी गए और आसपास लोगों से पूछताछ भी की, लेकिन रैन बसेरे कहां बना हुआ है। इसके बारे में किसी को नहीं पता है। थक- हारकर वापिस रेलवे स्टेशन पर आ गए है। बरामदे में सो कर ही रात गुजारनी पड़ रही है।

मंगलवार रात को रात का रिपोर्टर अभियान के तहत जब दैनिक जागरण संवाददाता ने देर रात रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर सर्दी के मौसम के दौरान मिलने वाली रैन बसेरे की सुविधा का जायजा लिया तो पाया कि प्रशासनिक स्तर पर रात्रि प्रवास की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। वहीं बस स्टैंड के दोनों बाहरी गेटों पर ताला लगा हुआ मिला। रात साढ़े ग्यारह बजे : मुख्य मार्ग से रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाले करीब सात सौ मीटर क्षेत्र में घनघोर अंधेरा छाया हुआ था। लाइ¨टग की कोई व्यवस्था तक नहीं थी। रेलवे स्टेशन की एंट्री पर टिकट बूथ के सामने बने एक एक व्यक्ति कंबल ओढ़े लेटा हुआ था। अंदर स्टेशन मास्टर कक्ष में कुछ कर्मचारी बैठे हुए थे। वहीं दूसरी ओर बरामदे में करीब 14 से 15 की संख्या में बरामदे में कंबल ओढ कर लोग लेटे हुए थे। स्टेशन मास्टर के कमरे के बाहर बने बरामदे में भी 10 से 12 की संख्या में लोग कंबल ओढ़े कर नीचे फर्श पर लेटे हुए थे। कुछ सो रहे थे तो कुछ म्यूजिक बजाकर समय व्यतीत कर रहे थे। पूछने पर पहले तो कुछ बोले नहीं, फिर एक युवक कहता है कि माल ढुलाई का कार्य करते है। सुरेंद्र और मांगेराम नाम के इन व्यक्तियों ने कहा कि साहब काम तो करना ही है। ठहरने की कोई सुविधा नहीं मिली तो बरामदे में ही सो रहे है। ठंड तो लगती है क्या करें, मजबूरी है। रात 12:00 बजे: शहर के प्रमुख चौक- चौराहों पर होते हुए जब बस स्टैंड पर पहुंचे तो सड़क पर किसी भी तरह का कोई आवागमन दिखाई नहीं दिया। शहर की शांत सड़कों पर बेसहारा पशुओं के अलावा कोइ्र भी दिखाई नहीं दिया। रात 12 बस स्टैंड के दोनों मेन गेट बंद थे। बस स्टैंड के बाहर कोई भी नहीं था। बस स्टैंड के नजदीक ही एक चाय की दुकान खुली हुई थी, वहां पर भी दुकानदार के अलावा कोई बैठा हुआ नहीं था। रात 12:15 बजे: बस स्टैंड के बाद शहर के कच्चा रोहतक रोड से होते हुए बेरी गेट क्षेत्र में पहुंचते हुए पाया कि एक किशोर बालक नाजिम अपनी रेहड़ी पर लेटा हुआ था। पूछने पर बताया कि मूंगफली बेचने का काम करता हूं। रेहड़ी के नीचे ही सारा सामान रखा है। कहीं कोई उठा कर ना ले जाए। इसलिए यहीं पर सो जाता हूं। ठंड तो बहुत लगती है। खुले आसमान के तले रात को कंबल भी ओंस से भीग जाता है। मजबूरी है पेट तो पालना ही है। रात 12:30 बजे: आंबेडकर चौक, सिलानी गेट, दिल्ली गेट, माता गेट, सीताराम गेट क्षेत्र का जायजा लिया गया। भारी वाहनों और पुलिस की गाड़ियों के अलावा सड़कों पर कुछ दिखाई नहीं दिया। ऐसे में एक युवक पैदल आते हुए दिखाई दिया और बस स्टैंड कर पता पूछते हुए आगे निकल गया।

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