राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का सियाचिन ग्लेशियर का दौरा रद्द, लेह में कार्यक्रमों से हिस्सा लेकर लौटीं दिल्ली
देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का सियाचिन दौरा बुधवार को अंतिम समय में रद्द हो गया। लेह में ही सिंधु घाट पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद नई दिल्ली वापस लौट गईं। राष्ट्रपति का सियाचिन दौरा रद होने का कोई आधिकारिक कारण नहीं पता चल पाया है। बता दें कि इससे पहले वर्ष 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने लद्दाख का दौरा पर आए थे।
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HighLights
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का सियाचिन ग्लेशियर का दौरा रद्द
- राष्ट्रपति ने राज्यों की स्थापना दिवस पर दीं शुभकामनाएं
- इसके पहले 2018 में कोविंद लद्दाख दौरे के दौरे पर पहुंचे थे
राज्य ब्यूरो, जम्मू। President Of India Ladakh And Siachen Visit: लद्दाख के दो दिवसीय दौरे पर पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Draupadi Murmu) का बुधवार को सियाचिन दौरा अंतिम समय में टल गया। लेह में ही सिंधु घाट पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद नई दिल्ली वापस लौट गईं।
राष्ट्रपति का सियाचिन दौरा रद्द होने का कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया गया है। बता दें कि इससे पहले वर्ष 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने लद्दाख का दौरा किया था। इसके पहले भी 2018 में कोविंद लद्दाख दौरे के दौरे पर पहुंचे थे, तब वह सियाचिन ग्लेशियर की कुमार पोस्ट पर भी गए थे।
राष्ट्रपति मंगलवार सुबह पहुंची थीं लेह
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु मंगलवार को सुबह लेह पहुंची थीं। उन्होंने यहां लद्दाख के केंद्र शासित प्रद्देश बनने के स्थापना दिवस समारोह में हिस्सा लिया था। 31 अक्टूबर, 2019 को एकीकृत जम्मू कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के तहत लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रद्देश बनाया गया था।
मंगलवार को इसका पांचवां स्थापना दिवस मनाया गया। इस दौरान लेह के सिंधु संस्कृति हाल में आयोजित मुख्य समारोह में राष्ट्रपति ने मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया था।
सियाचिन में जाना था बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने
अपने दो दिवसीय दौरे के दूसरे दिन बुधवार को राष्ट्रपति मुर्मू को सियाचिन में कुमार पोस्ट स्थित आधार शिविर में सियाचिन युद्ध स्मारक पर बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने जाना था। उनके इस कार्यक्रम को सुबह अचानक रद्दद कर दिया गया। दौरा रद्द होने के कारणों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
राष्ट्रपति ने दोपहर को सिंधु घाट में आयोजित कार्यक्रम में लिया हिस्सा
सियाचिन दौरा रद्द होने के बाद राष्ट्रपति ने दोपहर को सिंधु घाट में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम उनके सम्मान में आयोजित किया गया था।
इसके बाद शाम चार बजे वह दिल्ली रवाना हो गई। सिंधु घाट पर कार्यक्रम में राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि लद्दाख में आध्यात्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। इको टूरिज्म व एडवेंचर टूरिज्म लद्दाख को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
इस क्षेत्र के लोग युद्ध में वीरता और बुद्ध में आस्था के लिए जाने जाते हैं। भगवान बुद्ध का अमर और जीवंत संदेश लद्दाख के जरिए दूर-सुदूर देशों में प्रसारित हुआ। लेह का यह क्षेत्र बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है।
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सिंधु नदी में सभी भारतीयों की बसती है आध्यात्मिक चेतना- राष्ट्रपति
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें सिंधु घाट पर आकर बहुत खुशी मिली है। यह सिंधु नदी सभी भारतीयों की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना में बसती है। लद्दाख में जल संरक्षण पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि लद्दाख की सभी नदियों व ग्लेशियर से मिलने वाले पानी का संरक्षण व सदुपयोग बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्हें यह जानकर अच्छा लगा कि पिछले लगभग चार सालों में जल जीवन मिशन की कामयाबी से 80 प्रतिशत से अधिक घरों में पीने का साफ पानी उपलब्ध हो पाया।
राष्ट्रपति ने शिल्पकारों को सराहा
राष्ट्रपति ने कहा कि यह सराहनीय है कि लद्दाख की खुबानी रक्तसे कारपो, पशमीना व लकड़ी पर नक्काशी को जीआइ टैग प्राप्त हुआ है। वर्ष 2022 में पद्मश्री से सम्मानित छीरिंग नामग्याल जैसे शिल्पकारों की कई पीढ़ियों ने यहां की लक्कड़ी पर नक्काशी को आगे बढ़ाया है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति के संदर्भ में उन्होंने लद्दाख की पहली महिला विशेषज्ञ डॉ. छेरिंग लंडोल के 45 वर्षों से महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल में योगदान की सराहना की।
कर्नल सोनम वांगचुक के योगदान को भी सराहा
उन्होंने लद्दाख में कृत्रिम ग्लेशियर बनाने वाले छिवांग नार्फेल व महावीर चक्र जीतने वाले कर्नल सोनम वांगचुक के योगदान की भी सराहना की। लद्दाख में आदिवासी समुदायों की परंपराएं जीवितलद्दाख के जनजातीय समुदायों व स्वयं सहायता समूहों से भेंट का जिक्र करते हुए द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि यह खुशी की बात है कि लद्दाख में कई आदिवासी समुदायों की समृद्ध परंपराएं जीवित हैं।
उन्होंने कहा कि लोग प्रकृति के प्रति स्नेह और सम्मान के बारे में जानते हैं। ऐसा आदिवासी समुदायों की कला, नृत्य, गीत और जीवनशैली में दिखता है। हमें आदिवासी समुदायों की जीवनशैली से पर्यावरण संरक्षण की सीख लेनी चाहिए।
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