मुसलमान युवक धड़ल्‍ले से कर रहे हैं आदिवासी युवतियों संग शादी, प्रेम में फंसाकर बसा रहे हैं घर, उठा रहे फायदा

आदिवासी युवतियों से शादी के कई फायदे हैं लेकिन यह शादी कानूनी रूप से नहीं होती है। बस दोनों साथ में रहना शुरू कर देते हैं। आदिवासियाें में साक्षरता कम होने की वजह से ये आसानी से लोगों की बातों में आ जाते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Mon, 19 Dec 2022 10:32 AM (IST) Updated:Mon, 19 Dec 2022 10:32 AM (IST)
मुसलमान युवक धड़ल्‍ले से कर रहे हैं आदिवासी युवतियों संग शादी, प्रेम में फंसाकर बसा रहे हैं घर, उठा रहे फायदा
आदिवासी युवतियों से शादी कर मुसलमान युवक उठा रहे हैं लाभ

प्रणेश कुमार। साहिबगंज संताल परगना में आदिवासी युवतियों से मुस्लिम युवाओं के प्रेम प्रसंग, दुष्कर्म, प्रेम विवाह के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। मुस्लिम युवाओं में जहां एक से अधिक शादी कर सकते हैं, वहीं आदिवासी भी ऐसी शादियों से परहेज नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि मुस्लिम समुदाय के अनेक युवक आदिवासी युवतियों को प्रेम में फंसाकर शादी भी कर लेते हैं। मगर, यह शादी कोर्ट में विधि विधान से नहीं की जाती, बस दोनों साथ रहने लगते हैं।

एक साल में सौ मुस्लिम युवकों ने रचाई ऐसी शादी

कई ऐसे प्रेम विवाह सामने आए हैं, जिनमें मुस्लिम युवकों ने शादी के बाद आदिवासी युवतियों को चुनाव लड़ाया, उनको जिताकर सत्ता में भी दखल कर लिया। बोरियो इलाके में हाल के एक साल में करीब सौ मुस्लिम युवकों ने आदिवासी युवतियों से प्रेम विवाह किया है।

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आदिवासी युवतियों से शादी के हैं कई फायदे

सूत्रों ने बताया कि इस कथित शादी के कई लाभ हैं। पत्नी को आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम युवक चुनाव लड़ाते हैं। उनकी राजनीतिक शक्ति का उपयोग करते हैं। अधिकतर पहाड़िया आदिवासियों के पास काफी जमीन भी है। शादी के बाद उन जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं और इस तरह से मुस्लिम समुदाय के लोग पहाड़िया गांवों में अपनी पैठ बनाते हैं। वहां के किशोर-किशोरियों को महानगरों में भी ले जाकर बेच देते हैं। मानव तस्करी के ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। इस प्रकार आदिवासी युवतियों को फांसने के कई फायदे मिल जाते हैं।

बातों में जल्‍दी आ जाते हैं आदिवासी समुदाय के लोग

आदिवासी समुदाय में आज भी साक्षरता दर काफी कम है। चकाचौंध में वे फंस जाते हैं। भाषा की समस्या व दुर्गम इलाकों में रहने की वजह से इनके बीच विभिन्न संस्थाओं द्वारा चलाया जाने वाला जागरूकता अभियान बहुत सफल नहीं हो पाता है।

80 प्रतिशत पहाड़िया का हो चुका मतांतरण

पहाड़िया आदिवासियों की 32 जनजातियों में से एक है। यह जनजाति पहाड़ों पर रहती है। पहाड़ों पर एक जगह अधिक से अधिक 20-25 घर होते हैं। ये झरने का पानी पीते हैं। लकड़ी काटकर बाजार में बेचते हैं, उससे दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीदते हैं। कुछ पहाड़िया पहाड़ों पर बरबट्टी की खेती भी करते हैं। जिले में इनकी आबादी 80-85 हजार के करीब है।

पहाड़िया समुदाय की लगातार घट रही है संख्‍या

जानकारों का कहना है कि करीब 80 प्रतिशत पहाड़िया मतांतरण कर ईसाई बन चुके हैं। अब मुस्लिम युवक इन पर नजर लगाए हैं। वे अपने तरीके से इनको अपने समूह में जोड़ रहे। इन जनजाति की संख्या दिन पर दिन घटती जा रही है। संताल परगना की प्रमुख आदिवासी जनजाति संताल से इनकी प्रतिद्वंद्विता है। पहाड़िया समुदाय की एक बड़ी कुरीति शराब का सेवन भी है। बोरियो, बरहेट, तालझारी व पतना प्रखंड में इनकी अच्छी खासी आबादी है।

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