झारखंड: ‘बॉर्डर गर्ल’ बनीं नक्सल प्रभावित कुचाई की कंचन, डेढ़ माह में 3,500 KM का बाइक से तय कर चुकी हैं सफर

झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले का कुचाई क्षेत्र अति नक्सल प्रभावित है। इसी क्षेत्र के छोटे से गांव बिदरी में जन्मीं कंचन उगुरसांडी देश के सबसे ऊंचे 18 दर्रों को पार कर सुर्खियों में छा गई हैं। ‘हो’ आदिवासी समुदाय की कंचन इंटरनेट मीडिया में बार्डर गर्ल के नाम से लोकप्रिय हैं। कंचन ने डेढ़ माह में 3500 किलोमीटर का सफर मोटरसाइकिल से तय किया है।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Mon, 18 Sep 2023 08:05 PM (IST) Updated:Mon, 18 Sep 2023 08:05 PM (IST)
झारखंड: ‘बॉर्डर गर्ल’ बनीं नक्सल प्रभावित कुचाई की कंचन, डेढ़ माह में 3,500 KM का बाइक से तय कर चुकी हैं सफर
नक्सल प्रभावित क्षेत्र कुचाई की कंचन उगुरसांडी बनीं ‘बॉर्डर गर्ल’। जागरण

HighLights

  • झारखंड के हो आदिवासी समुदाय की कंचन बाइक से डेढ़ माह में 3,500 किलोमीटर का तय कर चुकी हैं सफर।
  • लद्दाख के 19,300 फीट ऊंचाई पर स्थित उमलिंगला दर्रा तक पहुंच कर खींचा सबका ध्यान।
  • अब दिल्ली से सिंगापुर का सफर बाइक से करने की कर रहीं तैयारी।
  • दिल्ली नगर निगम में सीनियर फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत हैं कंचन।

गुरदीप राज, सरायकेला: झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले का कुचाई क्षेत्र अति नक्सल प्रभावित है। इसी क्षेत्र के छोटे से गांव बिदरी में जन्मीं कंचन उगुरसांडी देश के सबसे ऊंचे 18 दर्रों को पार कर सुर्खियों में छा गई हैं। ‘हो’ आदिवासी समुदाय की कंचन इंटरनेट मीडिया में बार्डर गर्ल के नाम से लोकप्रिय हैं।

कंचन ने डेढ़ माह में 3,500 किलोमीटर का सफर मोटरसाइकिल से तय किया है। पिछले दिनों वह लद्दाख के 19,300 फीट ऊंचाई पर स्थित उमलिंगला दर्रा तक पहुंची और तिरंगा लहराया। इस क्रम में वह विश्व की शीर्ष 10 ऊंची मोटरेबल सड़क में शामिल मार्सेमिक ला पास के अलावा देमचोक और कई अन्य ऊंची सड़कों से होकर गुजरीं।

कंचन उगुरसांडी।

बचपन से है बाइक चलाने का शौक

कंचन ने बताया कि मुझे बचपन से ही बाइक चलाने का शौक था। जिद करने पर पिता घनश्याम उगुरसांडी अपनी बाइक चलाने के लिए देते थे। पिता ने ही बाइक चलाना सिखाया था। झारखंड में सिर्फ लड़के बाइक चलाते थे, वह इस धारणा को तोड़ना चाहती थीं।

लद्दाख में बाइक चलाती कंचन उगुरसांडी।

लेह-लद्दाख की दुर्गम घाटियों में बाइक से लड़कों के जाने का समाचार देखती-सुनती थीं। इसी से मन में यह विचार आया कि एक दिन मैं भी बाइक से वहां जाकर साबित कर दूंगी कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं। वह अकेले ही बाइक चलाकर लद्दाख जाना चाहती थीं।अंततः उत्साह के साथ ऐसा कर दिखाया।

पहले वेतन से खरीदी अपनी ड्रीम बाइक

कंचन अभी दिल्ली नगर निगम में सीनियर फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत हैं। 2019 में जब उन्हें पहला वेतन मिला तो सबसे पहले सुजुकी बाइक खरीदी। इससे वह दिल्ली की सड़कों पर बाइक चलाने लगीं। जब आत्मविश्वास बढ़ा तो कंचन ने अपनी पहली यात्रा 2019 में उत्तराखंड से शुरू की।

इसके बाद डेढ़ वर्ष पहले उसने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को पत्र लिख कर सोलो राइड के लिए अनुमति मांगी। स्वीकृति मिलने के बाद डेढ़ माह में कंचन देश की सबसे ऊंची सड़क उमलिंगला दर्रे तक पहुंचने के लिए 18 दर्रे पार किए। वहां पहुंच कर कंचन ने राष्ट्रध्वज फहराया। इसके साथ ही कंचन 19,300 फीट ऊंची सड़क तक बाइक से पहुंचने वाली पहली महिला बाइकर बन गईं।

 लद्दाख की सबसे ऊंची सड़क उमलिंगला में कंचन उगुरसांडी।

कंचन ने लद्दाख के अलावा गुजरात के रन आफ कच्छ तथा राजस्थान, पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड तक बाइक से यात्रा कर चुकी हैं। अपनी यात्रा के दौरान कंचन सेना के शिविर में ही विश्राम करती थीं।

अब कंचन दिल्ली से सिंगापुर तक का सफर बाइक से करने की तैयारी कर रही हैं। अगले वर्ष कंचन अपना यह नया अभियान शुरू करेंगी। कंचन ने कहा कि हौसले बुलंद हों तो बड़े से बड़े सपने पूरे हो सकते हैं।

कंचन उगुरसांडी।

खड़गपुर के केंद्रीय विद्यालय से की थी पढ़ाई

कंचन के पिता घनश्याम उगुरसांडी ने बताया कि कंचन का जन्म बिदरी गांव में हुआ। बाद में हमलोग गांव खड़गपुर आ गए। वह यहां रेलवे में पदासीन हैं। कंचन की पढ़ाई खड़गपुर केंद्रीय विद्यालय में ही हुई।

इसके बाद वह डी फार्मा की पढ़ाई करने बेंगलुरु चली गईं। वहां चार वर्ष में पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली लौटीं तो नौकरी नगर निगम में नौकरी मिल गई।

कंचन का भाई कैलाश उगुरसांडी खड़गपुर के यूको बैंक में कार्यरत है। कुचाई के बिदरी गांव स्थित पुश्तैनी मकान में दादी चुपक उगुरसांडी रहती हैं। कंचन की बुआ सुकुरमनी उगुरसांडी भी कुचाई में ही रहती है।

लगातार साझा कर रहीं अनुभव, ट्वीट को लेकर भी चर्चा में

कंचन हाल ही में भारत-चीन सीमा पर बाइक यात्रा के क्रम में अपने अनुभव से संबंधित इंटरनेट मीडिया पोस्ट को लेकर भी चर्चा में रही हैं।

एक पोस्ट में वह लिखती हैं- लद्दाख बार्डर यात्रा के दौरान आखिरी छोर तक गई। मैं लद्दाख में सीमा पर पेंगोंग झील के पीछे आखिरी गावं पोरभांग से करीब 54 किमी और आगे तक गई | जहां सड़क का कार्य चल रहा था।

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