पायलट के बिना ही आग का गोला बन कर उड़ता रहा सुखोई-30 विमान, ग्वालियर से 90 किलोमीटर दूर भरतपुर में जाकर गिरा

ग्वालियर के महाराजपुरा स्थित एयरफोर्स स्टेशन से एक साथ उड़ान भरने वाले दोनों लड़ाकू विमान 48 किलोमीटर दूर मुरैना के पहाड़गढ़ में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। हादसे के दौरान सुखोई-30 बिना पायलट के ही 90 किलोमीटर दूर आग का गोला बन कर उड़ता चला गया।

By Versha SinghEdited By:
Updated: Sun, 29 Jan 2023 10:11 AM (IST)
पायलट के बिना ही आग का गोला बन कर उड़ता रहा सुखोई-30 विमान, ग्वालियर से 90 किलोमीटर दूर भरतपुर में जाकर गिरा
बिना पायलट के ही आग का गोला बन कर उड़ता रहा सुखोई-30 विमान

ग्वालियर (मध्य प्रदेश)। ग्वालियर के महाराजपुरा स्थित एयरफोर्स स्टेशन से एक साथ उड़ान भरने वाले दोनों लड़ाकू विमान 48 किलोमीटर दूर मुरैना के पहाड़गढ़ में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। मिराज-2000 तो पहाड़गढ़ में ही गिर गया, लेकिन सुखोई-30 उस स्थान से 90 किलोमीटर दूर भरतपुर जिले में दुर्घटनाग्रस्त हुआ।

बिना पायलट के ही उड़ता रहा सुखोई-30

हादसे के दौरान पहाड़गढ़ में ही सुखोई-30 के दोनों पायलट इजेक्ट कर गए, इसके बाद सुखोई-30 यहां से 90 किलोमीटर दूर तक बिना पायलट के ही आग का गोला बन कर हवा में उड़ता रहा।

इस बीच मुरैना, धौलपुर जैसे बड़ी आबादी वाले जिले थे, जहां लाखों की आबादी है, अगर सुखोई-30 इस घनी आबादी वाले क्षेत्र में गिरता तो बड़ी अनहोनी हो सकती थी।

गनीमत रही कि भरतपुर में रेलवे स्टेशन के पास पिंगोरा में स्थित एक खेत में यह विमान गिरा। सुखोई-30 को आसमान में आग का गोला बनकर उड़ता देख आस पास के लोग घबरा गए। बता दें कि जहां यह विमान गिरा वहां से कुछ ही दूर पर रेलवे स्टेशन स्थित है। मिराज-2000 और सुखोई-30 ने एक साथ ही उड़ान भरी थी। अभ्यास के दौरान दोनों विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे।

हादसे के दौरान सुखोई को उड़ा रहे स्क्वाड्रन लीडर विजय पाटिल और मिधुल पीएम पहाड़गढ़ में ही इजेक्ट कर उतर गए थे। वहीं, सुखोई-30 विमान बिना पायलट के कैसे 90 किलोमीटर तक उड़ता रहा, इसे लेकर वायुसेना की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

सुखोई-30 की रफ्तार है 2,336 किमी प्रति घंटा

सुखोई-30 एक रूसी लड़ाकू विमान है। इसे अपग्रेड किया जा चुका है। यह भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों में से एक प्रमुख लड़ाकू विमान है। इसे हिंदुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड के सहयोग से बनाया गया है। इसकी उड़ान भरने की रफ्तार 2,336 किमी प्रति घंटे की है।

सुखोई-30 के दोनों पायलट घायल हालत में पड़े रहे

मध्य प्रदेश के मुरैना में हुए हादसे में लड़ाकू विमान मिराज-2000 (वज्र) उड़ा रहे पायलट विंग कमांडर हनुमंत राव का जला शव कई टुकड़ों में बरामद हुआ। वहीं, सुखोई के घायल पायलटों को बचाव दल ने एयरलिफ्ट किया।

प्रत्यक्षदर्शी ने बताई आंखों देखी

पहाड़गढ़ के उप सरपंच प्रत्यक्षदर्शी लालू सिकरवार ने बताया कि आसमान में दो विमान जलते हुए दिखाई दिए थे। एक विमान धमाके के साथ जंगल में गिरा और वहीं, दूसरा विमान जलता हुआ कैलारस की ओर चला गया। हम जंगल में पहुंचे तो दो जगहों से धुआं उठ रहा था। कुछ दूरी पर दो लोग पैराशूट के साथ पेड़ों में फंसे थे। ग्रामीणों की मदद से दोनों को उतारा तो उन्होंने सबसे पहले पूछा कि हमारा तीसरा साथी कैसा है। हमने कहा कि वह भी ठीक हैं, लेकिन बाद में पता चला कि हादसे में उनकी मृत्यु हो गई।

विमानों के आपस में टकराने पर उठ रहे सवाल

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर दोनों विमान आपस में टकराए होते तो एक विमान का हिस्सा लगभग 90 किलोमीटर दूर भरतपुर में नहीं गिरता। दोनों तेज धमाके के साथ एक ही जगह गिरते। अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि पहले किसी एक विमान में कोई खराबी हुई या फिर सुखोई के पायलट जब पैराशूट से कूदे, तब एक विमान का कुछ हिस्सा दूसरे विमान से टकरा गया होगा।

पांच वर्षों में तीनों सेनाओं के विमानों और हेलीकाप्टरों से जुड़े हादसों में 42 रक्षाकर्मियों की मृत्यु हुई है।

इससे पहले भी वायुसेना का जुड़वां सीटों वाला मिग-21 ट्रेनर विमान बाड़मेर के पास एक प्रशिक्षण उड़ान के दौरान बीते जुलाई में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। दो पायलट बलिदान हुए थे।

पहले भी हो चुके हैं कई हादसे

एएलएच-डब्ल्यूएसआइ विमान 3 अगस्त, 2021 को पठानकोट के पास विशाल रंजीत सागर डैम में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसमें सेना के दो पायलट की मृत्यु हुई थी। अक्टूबर 2019 में उत्तरी कमान के तत्कालीन प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह, अन्य अधिकारियों को ले जा रहा सेना का ध्रुव हेलीकाप्टर पुंछ में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। 2014 में श्योपुर जिले में चंबल नदी के किनारे अत्याधुनिक हर्कुलस विमान दुर्घटनाग्रस्त होने से पांच जवान बलिदान हुए थे। 8 दिसंबर, 2021 को कुन्नूर के पास विमान दुर्घटना में तत्कालीन सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका और सशस्त्र बल के 12 जवान अपनी जान गवां बैठे थे।

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