New Criminal Laws: FIR दर्ज समेत जमानत के लिए क्या होंगे नियम? सुप्रीम कोर्ट के वकील ने नए कानून का समझाया पूरा गणित
New Criminal Laws In India In Hindi एक जुलाई से देशभर में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि प्रौद्योगिकी और फॉरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे विकास को देखते हुए ये तीनों कानून जरूरी हैं। तीनों आपराधिक कानून विचार-विमर्श के बाद लाए गए हैं। सरकार का लक्ष्य देश की जनता को न्याय प्रदान करना है।
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HighLights
- एक जुलाई से देश में लागू हुई आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली
- तेज गति से जांच होने से मुकदमों का फैसला भी जल्द होगा
- SMS, वाट्सएप और ईमेल पर भी मिलेगा समन
माला दीक्षित, नई दिल्ली। देश में अपराधों पर कार्रवाई और आपराधिक प्रक्रिया तय करने वाले तीन नए कानून एक जुलाई से लागू हो चुके हैं। ऐसे में एक जुलाई के बाद जो भी अपराध घटित होगा उसकी प्राथमिकी (एफआइआर) पुलिस नए कानून में दर्ज करेगी।
अपराध तो आइपीसी में दर्ज होगा
नए कानून लागू होने के बावजूद जो अपराध कानून लागू होने की तिथि एक जुलाई से पहले घटित हुआ होगा, उसकी प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) में ही दर्ज होगी चाहे प्राथमिकी एक जुलाई के बाद ही क्यों न दर्ज कराई जाए। ऐसे मामलों में अपराध तो आइपीसी में दर्ज होगा, लेकिन केस की जांच और अदालती कार्यवाही में नया कानून ही लागू होगा।
एफआईआर किस कानून में दर्ज होगी?
इस तरह नए कानून लागू होने के बाद भी कुछ समय तक घालमेल बना रहेगा व कानूनीं पेंच भी फंसेंगे जिन्हें अदालतें तय करेंगी और धीरे-धीरे नए कानून स्थिरता ले लेंगे।अपराध के मामले में संवैधानिक व्यवस्था तय है कि अपराध घटित होने की तिथि पर जो कानून लागू था, उसी के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। यानी एफआईआर किस कानून में दर्ज होगी, यह बात अपराध घटित होने की तिथि पर निर्भर करेगी।
अदालती कार्यवाही की प्रक्रिया क्या होगी?
सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक राय और ज्ञानंत सिंह कहते हैं कि जो एफआईआर एक जुलाई के बाद दर्ज होगी, वह भले ही आईपीसी में दर्ज हुई हो, लेकिन प्रोसिजरल ला नया ही लागू होगा। यानी मामले की जांच, चार्जशीट, अदालती कार्यवाही की प्रक्रिया नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रविधानों के मुताबिक होगी।
जमानत के लिए क्या होंगे नियम
उसमें जो प्रक्रिया और डेटलाइन दी गई है, उसी का पालन किया जाएगा। इसके बाद जब आईपीसी में दर्ज मामले में आरोपित की जमानत का मुद्दा कोर्ट पहुंचेगा तो माननीय न्यायाधीश जमानत अर्जी पर विचार करते समय यह देखेंगे कि अभियुक्त जिस अपराध में जमानत मांग रहा है वह अपराध आईपीसी में जमानती है या गैरजमानती, लेकिन उसी वक्त जमानत देने की प्रक्रिया में नया कानून लागू करेंगे।
इस तरह एक ही केस में अलग-अलग स्तर पर नए और पुराने कानून का घालमेल थोड़े दिन चलता रहेगा और यही घालमेल आरोपित एवं अभियोजन दोनों को अपने पक्ष में केस को घुमाने की गुंजाइश देगा।
अदालतें प्रविधानों की व्याख्या
ज्ञानंत समझाते हैं कि बात अभियुक्त की निजी स्वतंत्रता को लेकर आएगी और पुराने सीआरपीसी के प्रविधान ज्यादा लाभकारी दिखेंगे तो वकील निश्चित तौर पर सीआरपीसी के लाभकारी प्रविधान को लागू करने की मांग कर सकते हैं क्योंकि घटना एक जुलाई से पहले की है और उस तिथि पर सीआरपीसी लागू थी। ऐसी स्थिति में अदालतें प्रविधानों की व्याख्या करके कानूनी पेंचीदगियों को तय करेंगी जो कि नजीर बनेंगी।
पुराने लंबित आपराधिक मुकदमे कैसे चलेंगे?
कुछ वर्षों तक ऐसा होगा और धीरे-धीरे नया कानून स्थिरता ले लेगा। नए-पुराने कानूनों के घालमेल के अलावा नए कानूनों का पुराने लंबित मुकदमों पर असर नहीं होगा। पुराने लंबित आपराधिक मुकदमे आईपीसी और सीआरपीसी से ही चलेंगे।
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