शहरी प्रकाश प्रदूषण बना रहा मच्छरों को अधिक घातक, मच्छरों से फैलने वाले रोग बढ़े

एक अध्ययन से पता चला है कि शहरों में बढ़ती रोशनी या प्रकाश प्रदूषण ने मच्छरों को और आक्रामक बना दिया है। दरअसल सर्दियों में मच्छर सुप्तावस्था में चले जाते हैं और कम सक्रिय रहते हैं। लेकिन बढ़ती रोशनी ने इसकी सुप्तावस्था के समय को बेहद कम कर दिया है।

By Anurag Mishra Edited By: Anurag Mishra
Updated: Mon, 01 May 2023 05:31 PM (IST)
शहरी प्रकाश प्रदूषण बना रहा मच्छरों को अधिक घातक,  मच्छरों से फैलने वाले रोग बढ़े
मच्छरों की आक्रामकता रात की रोशनी से बढ़ी है

 नई दिल्ली,अनुराग मिश्र। आपने महसूस किया होगा कि इस साल सर्दियां बढ़ने पर भी मच्छरों में कमी नहीं आ रही है आपकी गाड़ी हो या घर वो हर जगह आपको दिख जाएंगे। हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि शहरों में बढ़ती रोशनी या प्रकाश प्रदूषण ने मच्छरों को और आक्रामक बना दिया है। दरअसल सर्दियों में मच्छर सुप्तावस्था में चले जाते हैं और कम सक्रिय रहते हैं। लेकिन बढ़ती रोशनी ने इसकी सुप्तावस्था के समय को बेहद कम कर दिया है। ऐसे में मच्छर पहले से ज्यादा आक्रामक हो रहे हैं। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि कृत्रिम प्रकाश मच्छरों के व्यवहार पर प्रभाव डालता है।

सामान्य तौर पर मच्छर सर्दियां आने के पहले पौधों के रस जैसे मीठे स्रोतों को वसा में बदल देते हैं। वहीं सर्दियों में निष्क्रियता की अवधि में ये मच्छर गुफाओं, शेड, किसी अंधेरी जगह या ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां बहुत हलचल न हो। जैसे-जैसे सर्दियां कम होती हैं और दिन बड़े होते जाते हैं, मादाएं अंडे देने के लिए खून चूसना शुरू कर देती हैं। इसी प्रक्रिया के तहत ही इंसानों और अन्य जीवों में मच्छरों से अलग अलग तरह के संक्रमण फैलते हैं। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए अध्ययन में पाया गया कि मादा मच्छर रात में ज्यादा रौशनी के संपर्क में आने पर उसकी सप्तावस्था (डाइपॉज ) जल्द खत्म हो गई और वो प्रजनन के लिए तैयार हो गई। रात में कृत्रिम प्रकाश ज्यादा होने से मच्छरों की गतिविधियों के पैटर्न को प्रभावित करता है। वहीं सर्दियों के तापमान को कम करने, मच्छरों के आवश्यक पोषक तत्वों को जमा करने संबंधी फायदों को प्रभावित करने के रूप में देखा गया है।

अध्ययन में पाया गया कि प्रकाश प्रदूषण के संपर्क में आने से पानी में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम हो गई। सामान्य तौर पर मच्छर के शरीर में स्टोर कार्बोहाइड्रेट सर्दियों में उसे पोषण प्रदान करता है। यह मच्छरों द्वारा लंबे और छोटे दिनों दोनों स्थितियों में जमा किया जाता है। स्टडी में देखा गया कि रात में कृत्रिम प्रकाश के संपर्क में आने से शर्करा ग्लाइकोजन के जमा होने के पैटर्न बदल गए थे।

डब्ल्यूएचओ ने भी जारी की चेतावनी

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से मच्छर जनित बीमारियों डेंगू, जीका और चिकनगुनिया का वैश्विक प्रकोप हो सकता है। डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसे अर्बोवायरस के कारण होने वाले संक्रमणों की घटना हाल के दशकों में दुनिया भर में बढ़ी है। रिपोर्ट बताती है कि मच्छरों से लोगों में फैलने वाली ये बीमारियाँ दुनिया भर में प्रकोप की बढ़ती संख्या का कारण बन रही हैं, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और शहरीकरण कुछ प्रमुख जोखिम कारक हैं, जो मच्छरों को नए वातावरण में बेहतर रूप से अनुकूलित करने और भौगोलिक रूप से संक्रमण के जोखिम को फैलाने की अनुमति देते हैं।

डेंगू और जलवायु परिवर्तन में संबंध

लैसेंट की कुछ समय पहले आई रिपोर्ट में सामने आया था कि तापमान बढ़ने से कई बीमारियां, जो पहले कुछ स्थानों पर नहीं पाई जाती थीं वे भी उन स्थानों में फैल सकती हैं जैसे पहले डेंगू फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छर आमतौर पर समुद्र तल से 1005.84 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले जगहों पर नहीं पाए जाते थे पर अब जलवायु परिवर्तन की वजह से कोलम्बिया में 2194.56 मीटर की ऊंचाई पर बसे जगहों में भी पाए जाने लगे हैं।

मौसम बदलेगा तो उन जगहों पर भी बढ़ेंगे मच्छर जहां यह नहीं पाए जाते

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक डॉक्टर हिम्मत सिंह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते पूरी दुनिया में मच्छरों के लिए अनुकूल माहौल बना है। मच्छरों के प्रजनन के लिए अच्छे माहौल वाले इलाके बढ़े हैं। वहीं गर्मी बढ़ने के साथ ही मच्छरों की लाइफ साइकिल तेज हो जाती है। गर्मी बढ़ने से अंडे से एक वयस्क मच्छर बनने के समय में कमी आती है। जिससे मच्छर जल्दी बड़े हो जाते हैं। एक मच्छर के लिए आदर्श तापमान लगभग 25 से 27 डिग्री और आर्द्रता 70 से 80 है। अगर तापमान आधा डिग्री तक बढ़ जाता है तो मच्छरों के पानी मे रहने के समय में कमी आती है और वो जल्दी बड़े हो जाते हैं। ऐसे में आपको उनकी संख्या ज्यादा महसूस होती है। क्लाइमेट चेंज के अगर तापमान बढ़ता है तो हो सकता है देश के कई हिस्से जहां मच्छर नहीं पाए जाते थे या जहां मच्छरों के लिए तापमान अनुकूल नहीं था वहां भी वो पाए जाने लगेंगे। वहीं ज्यादा सामान्य से कहीं ज्यादा तापमान हो जाए तो मच्छर कम भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर राजस्थान के गर्म इलाकों में तापमान और बढ़ता है तो मच्छर कम होंगे। वहीं पहाड़ों के घाटी वाले इलाकों में जहां अभी तक सामान्य तौर पर ज्यादा मच्छर नहीं पाए जाते वहां तापमान बढ़ने पर उनकी संख्या बढ़ सकती है। एक बात और ध्यान देने वाली है एक मच्छर के लारवा को व्यस्क मच्छर बनने में कम से कम 7 से 8 दिन लगते हैं। ऐसे में अगर पानी 7 दिनों से ज्यादा इकट्ठा होता है तो वहां मच्छर पनन सकते हैं। इस साल काफी लम्बे समय तक बारिश के चलते कई जगहों पर इस तरह का माहौल तैयार हुआ।

बेंगलुरु, दिल्ली-एनसीआर और उत्तर प्रदेश समेत देश भर में मच्छरों की तादाद में बढ़ोतरी

बेंगलुरु, दिल्ली-एनसीआर और उत्तर प्रदेश में मच्छरों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है। इसके पीछे बेमौसम बारिश के साथ क्लाइमेट चेंज जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मच्छरों की तादाद बढ़ती जा रही है वहीं इसकी वजह से मच्छर पहले की तुलना में अधिक घातक होते जा रहे हैं वहीं उन पर मच्छर रोधी दवाओं का असर भी कम हुआ है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्ष भर बारिश के साथ-साथ अनियमित तापमान के साथ आर्द्र परिस्थितियों ने शहर और आस-पास के क्षेत्रों को मच्छरों के लिए एक आदर्श प्रजनन स्थल में बदल दिया है।

मच्छरों से फैलने वाले रोग बढ़े

जलवायु परिवर्तन के चलते संक्रामक रोग बढ़े हैं। पिछले 4 दशकों में संयुक्त वैश्विक प्रयासों से दुनिया में मलेरिया के मामले कम हुए हैं, लेकिन अन्य वेक्टर जनित बीमारियों, विशेष रूप से डेंगू से होने वाली मौतें बढ़ी हैं। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य 2019 रिपोर्ट में द लैंसेट ने खुलासा किया था कि पिछले कुछ वर्षों में मच्छरों से होने वाले रोगों (मलेरिया और डेंगू) में वृद्धि हुई है। अध्ययनों से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के ऊंचे पहाड़ों में ज्यादा बारिश और बढ़ते तापमान के चलते संक्रामक बीमारियां तेजी से फैली हैं। ज्यादा बारिश के चलते इन पहाड़ी इलाकों में मच्छरों को प्रजनन में मदद मिली है।

डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि जल जनित और वेक्टर जनित रोग पैदा करने वाले रोगजनक जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। मच्छरों, सैंड फ्लाई, खटमल जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों का विकास और अस्तित्व तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करता है। ये रोग वाहक मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस, कालाजार जैसी बीमारी बहुत तेजी से फैला सकते हैं। आने वाले समय में ये देखा जा सकता है कि कुछ इलाके जहां पर कोई विशेष संक्रामक बीमारी नहीं थी, जलवायु परिवर्तन के चलते अचानक से बीमारी फैलने लगे। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव एक समान नहीं होगा क्योंकि विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग विशेषताएं होती हैं।उदाहरण के लिए, भारत में हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील है क्योंकि तापमान में वृद्धि के कारण ठंडे तापमान वाले क्षेत्र मलेरिया और डेंगू के लिए उपयुक्त हो गए हैं। देश का दक्षिणी भाग कम प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि यह लगभग सभी 12 महीनों के लिए पहले से ही वेक्टर जनित रोगों के लिए जलवायु उपयुक्त है।

ये है समाधान

नेशनल इंटीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक हिम्मत सिंह कहते हैं कि अन्य मच्छरों की तुलना में टाइगर मच्छर में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा बढ़ी है। ये मच्छर अन्य मच्छरों की तुलना में घातक भी है। सामान्य तौर पर किसी मच्छर को मारने के लिए 4 से 5 साल तक कोई एक कैमिकल इस्तेमाल किया जाए तो वो इसके लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। ऐसे में हमें मच्छरों के लिए दो अलग अलग तकनीकों का इस्तेमाल करना चहित। पहली तकनीक जिसमें लम्बे समय तक एक कैमिकल का छिड़काव नहीं किया जाता है। कुछ समय के अंतरराल पर मच्छर मारने के लिए कैमिकल बदल दिए जाते हैं। वहीं दूसरी तकनीक को मोजैक तकनीक कहते हैं जिसमें मच्छरों को मारने के लिए किसी एक कैमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि कई कैमिकलों को मिला कर छिड़काव किया जाता है। इस तरह से मच्छरों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है। व्यस्क एडीज या टाइगर मच्छर को नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में सबसे बेहतर होता है कि इस मच्छर के लारवा को ही खत्म कर दिया जाए।