Jagannath Rath Yatra 2024: कब तक तैयार हो जाएंगे तीनों रथ? उत्साह के बाद ऐसे बनता है प्रभु का प्रसाद; ये है परंपरा

पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा (jagannath puri rath yatra) की तैयारी जोरों पर है। रथ यात्रा 7 जुलाई को निकलने वाली है। परंपरा के अनुसार हर साल रथ यात्रा के लिए तीन नए रथ तैयार किए जाते हैं। वे पूरी तरह से लकड़ी द्वारा निर्मित होते हैं। इस रथ को स्थानीय कलाकार सजाया कारते हैं। निर्माण कार्य लगभग दो महीने तक चलता है।

By AgencyEdited By: Mukul Kumar Publish:Wed, 26 Jun 2024 07:17 PM (IST) Updated:Wed, 26 Jun 2024 07:17 PM (IST)
Jagannath Rath Yatra 2024: कब तक तैयार हो जाएंगे तीनों रथ? उत्साह के बाद ऐसे बनता है प्रभु का प्रसाद; ये है परंपरा
प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

HighLights

  • दो महीने तक चलता है रथ का निर्माण कार्य
  • भगवान जगन्नाथ के रथ में होते हैं 16 पहिये
  • भक्तों को बेचे जाते हैं तीनों रथ के पहिये

एएनआई, पुरी(ओडिशा)। पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा इस साल 7 जुलाई से शुरू हो रही है। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा की शोभायात्रा के लिए रथों का निर्माण तेजी से चल रहा है। 

जब भी यह त्योहार शुरू होता है, इससे पहले हर साल तीन नए रथ बनाए जाते हैं। उन्हें एक खास तरीके से डिजाइन किया जाता है। सभी रथ लकड़ी से बने होते हैं। उन्हें बेहतरीन तरीके से सजाया भी जाता है।

रथ यात्रा के लिए रथों के निर्माण पर काम कर रही टीम के एक सदस्य बाल कृष्ण मोहराणा ने इस संबंध में बताया कि भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए, बलभद्र महाप्रभु के रथ में 14 पहिए और मां सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं। हर साल नयागढ़ के दासपल्ला के जंगलों से इसके निर्माण के लिए नई लकड़ी आती है।

लकड़ियों को जलाकर बनाया जाता है प्रसाद

उन्होंने बताया कि यात्रा के बाद जगन्नाथ मंदिर में हर दिन प्रसाद तैयार करने के लिए रथ की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें जलाकर प्रसाद बनाए जाते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि तीनों रथों के 42 पहिए भक्तों को बेचे जाते हैं। इसका निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से लेकर रथ यात्रा तक यानी कि दो महीने तक चलता है। रथ को बनाने में हाथ का इस्तेमाल होता है, किसी आधुनिक उपकरण या मशीनरी का उपयोग नहीं किया जाता है।

बताया जाता है कि यह उत्सव अक्षय तृतीया (अप्रैल में) के दिन से शुरू होता है और पवित्र त्रिदेवों की श्री मंदिर परिसर में वापसी यात्रा के साथ समाप्त होता है। कई भारतीय शहरों के अलावा, यह उत्सव न्यूजीलैंड से लेकर दक्षिण अफ्रीका और न्यूयॉर्क से लेकर लंदन तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

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