खपरैल के घर में रहता है हॉकी विश्वकप खेल रहे ‘नीलम’ का परिवार, घर में नहीं ट्रॉफी-मेडल तक रखने की जगह

आज खेल को बढ़ावा देने के लिए सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है लेकिन देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी के खिलाड़ियों की हालत आज भी बद्तर है। ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं नीलम संजीप खेस जिनके पास आज भी पक्का घर नहीं है।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Tue, 10 Jan 2023 09:31 AM (IST) Updated:Tue, 10 Jan 2023 09:31 AM (IST)
खपरैल के घर में रहता है हॉकी विश्वकप खेल रहे ‘नीलम’ का परिवार, घर में नहीं ट्रॉफी-मेडल तक रखने की जगह
खपरैल के घर में रहता है हॉकी विश्वकप प्लेयर ‘नीलम’ का परिवार, घर में नहीं ट्रॉफी-मेडल तक रखने की जगह

जागरण संवाददाता, राउरकेला: पुरुष हॉकी विश्वकप मैच में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे नीलम संजीप खेस का परिवार बदहाली में है। नीलम के परिवार के पास न तो पक्का घर है और न ही गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क है। तीन कमरे वाले कच्ची दीवार के खपरैल मकान में पूरा परिवार रहता है। नीलम संजीप खेस को विश्व स्तरीय खिलाड़ी होने के बावजूद सुविधा नहीं मिल पायी है। घर में उनके प्रमाणपत्र, ट्राफी व पदक रखने के लिए जगह नहीं है। एक कमरे में सभी बिखरे हुए हैं। विश्वकप के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है पर सुंदरगढ़ जिले के कुआरमुंडा ब्लाक के कादोबहाल डीपाटोली निवासी नीलम एवं उनके परिवार को कुछ नहीं मिला है। लोगों को गांव तक पहुंचने के लिए दो किलोमीटर कच्ची सड़क पर जाना पड़ता है।

घर में न्यूनतम साधन मौजूद नहीं

नीलम संजीप के रसोई घर में गिनती के कुछ बर्तन हैं। उनके पास फ्रीज, ग्रांइडर, गैस चूल्हा नहीं है। कूलर है पर अधिकतर समय यह बंद रहता है। पांच साल पहले उनके गांव में बिजली लाइन पहुंची है। 2017 में राज्य सरकार के बीजू ग्राम्य ज्योति योजना के तहत संजीप के घर को पहली बार कनेक्शन मिला और रोशनी पहुंची। इससे पहले ढिबरी से ही रात गुजार रहे थे। गांव में अब तक पीने का शुद्ध पानी नहीं है। एक पुराने कुएं से ही लोग पानी भरते हैं। इसी से स्नान एवं रसोई का काम चलता है। पांच साल पहले इस कुएं की मरम्मत की गई है। 28 मई 2017 को संजीप दो दिन के लिए अपने गांव आये थे। बड़े भाई प्रदीप, मौसेरे भाई आशीष, राजकुमार के साथ मिलकर सीमेंट लाए और कुएं के चारों ओर प्लास्टर किया। 2018 में पहली बार शौचालय बना। स्वच्छ भारत योजना में 12 हजार रुपये मिले थे पर सरकारी अनुदान नहीं मिला है। बीपीएल होने के बाद भी सरकारी योजना में आवास स्वीकृत नहीं किया गया।

गांव में नहीं है अच्छा मैदान

कादोबहाल पंचायत के डीपाटोली में खेलने के लिए अच्छा मैदान भी नहीं है। खेत में ही गांव के लड़कों के साथ नीलम संजीप हाकी का अभ्यास करते थे। बड़े भाई के साथ गांव के अन्य साथी उसे हमेशा प्रोत्साहित करते थे। आर्थिक तंगी के कारण उनके पास खेलने के लिए अच्छी हाकी स्टिक भी नहीं थी। बांस व केंदु की लकड़ी से स्टिक तैयार किया जाता था। महुआ व बांस की गांठ को गेंद के रूप में उपयोग करते थे। कभी कभी कच्चे शरीफा से भी काम चलाते थे। नीलम को सुंदरगढ़ साई छात्रावास में निखार मिला। यहां से नीलम ने कभी मुड़कर नहीं देखा।

एक के बाद एक सफलता उन्होंने हासिल की है। गांव के लोग संजीप को लेकर गर्व महसूस करते हैं। टिकट मिलने पर राउरकेला जाकर संजीप का उत्साह बढ़ाने की उनकी इच्छा है। उन्होंने भारतीय हॉकी टीम को शुभकामनाएं दी है। सुंदरगढ़ जिले के कादोबहाल डीपाटोली में सात जनवरी 1998 को जन्मे नीलम संजीप खेस पहली बार 2016 में राष्ट्रीय टीम में शामिल किए गए थे। उन्होंने 2016 में गुवाहाटी में साउथ एशियन गेम्स, 2021 में ढाका में एशियन चैंपियन ट्राफी, 2022 में जकर्ता एशिया कप में भारतीय हाकी टीम का प्रतिनिधित्व किया है। राज्य व राष्ट्रीय स्तर के कई मैच खेले हैं।

लेकिन इतना तेजस्वी होने के बाद भी आलम ये है कि हाकी स्टार संजीप के घर में उन्हीं की मेडल, ट्राफी तक रखने की जगह नहीं है। लोग ट्रॉफी, मेडल व प्रमाणपत्र रखने के लिए आलमारी व शोकेस बनवा लेते हैं पर नीलम संजीप खेस के घर में ऐसा कुछ भी नहीं है। अपने पास जगह नहीं होने के कारण पदक, प्रमाणपत्र व ट्राफी एक बक्से में भर कर अपनी मौसी के घर रख दिए हैं। ऐसे कुछ ट्राफी व पदक तथा प्रमाणपत्र घर के एक कमरे में बिखरे पड़े हैं।

नीलम संजीप खेस डिफेंडर के रूप में पुरुष विश्वकप हॉकी में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इनका गांव आधुनिकता से काफी दूर है। झारखंड सीमावर्ती क्षेत्र में एक खपड़ैल घर में पूरा परिवार रहता है। माता पिता एक कमरे में एवं भाई दूसरे कमरे में रहते हैं। जब नीलम घर आते हैं तब परिवार के दो सदस्य बाहर बरामदे में सोते हैं। घर में गैस नहीं है मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनता है और कुएं से पानी भरकर प्यास बुझती है। पिता विपिन खेस, मां जीरा खेस, दो बड़ी बहनें आश्रिता और विमला की शादी हो चुकी है। बड़े भाई प्रदीप गांव में रहते हैं। उनके परिवार में चार सदस्य हैं। पिता बताते हैं कि 40 साल पहले उधार लेकर मिट्टी का घर बनाया था। सोने के लिए दो कमरे हैं एवं एक रसोई घर है। अपनी जमीन मात्र 45 डिसमिल है जिसमें सब्जी की खेती कर किसी तरह परिवार का गुजारा करते हैं।

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