Herpes Disease: पंजाब के कई जिलों में हर्पीज बीमारी की चपेट में आए घोड़े, गडवासू विशेषज्ञों ने किया अलर्ट

पंजाब में घोड़ों में हर्पीज बीमारी का खतरा बढ़ता जा रहा है। इस बीमारी ने कई घोड़ों को अपनी चपेट में ले लिया है जिससे परेशानी बढ़ गई है। हालांकि राहत की खबर यह है कि अभी तक घोड़ों से इंसानों में बीमारी फैलने के साक्ष्य नहीं मिले हैं।

By Asha Rani Edited By: Publish:Sat, 05 Nov 2022 12:46 PM (IST) Updated:Sat, 05 Nov 2022 12:46 PM (IST)
Herpes Disease: पंजाब के कई जिलों में हर्पीज बीमारी की चपेट में आए घोड़े, गडवासू विशेषज्ञों ने किया अलर्ट
घोड़ों में हर्पीज बीमारी का खतरा बढ़ रहा है। (सांकेतिक)

आशा मेहता, लुधियाना।  कुछ महीने पहले लंपी स्किन बीमारी ने हजारों गायों को अपनी चपेट में लिया था, जिससे पशु पालकों को नुकसान उठाना पड़ा। वहीं अब पंजाब में हर्पीज बीमारी ने घोड़े पालने वाले किसानों व शौकीनों की नींद उड़ा दी है। पंजाब के कई जिलों में यह बीमारी फैल चुकी है और बड़े स्तर पर घोड़े इसकी चपेट में आ चुके हैं। गुरू अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी ने घोड़ा पालकों को आगाह किया है।

उनका कहना है कि अगर समय रहते इस बीमारी को लेकर कदम नहीं उठाए गए, तो यह बड़े स्तर पर फैल सकती है। यूनिवर्सिटी के वेटरनरी मेडिसन विभाग के प्रमुख डा. अश्विनी कुमार ने घोड़ों में हर्पीज विषाणु से होने वाली बीमारी की महामारी फैलने का अंदेशा जताया है। पिछले कुछ समय से यूनिवर्सिटी के अस्पताल में इस बीमारी की चपेट में आए कई घोड़े इलाज के लिए लाए गए हैं। डेढ़ महीने में 35 से 40 घोड़े इलाज को आ चुके हैं।

ज्यादातर घोड़े अच्छी नस्ल के थे और काफी महंगे थे। हालांकि इस बीमारी से पीड़ित घोडे़ पंजाब के अलग-अलग हिस्सों से लाए गए थे। इस दौरान घोड़ों में दिमागी लक्षण सामने आ रहे हैं। यह बीमारी उत्तरी भारत में मौजूद घोड़ों के फार्मों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। ऐसे में जरूरी है कि इस बीमारी से बचाव के लिए घोड़ों को वैक्सीनेटेड किया जाए। उन्होंने बताया कि बीमारी के कारण घोड़ों की पिछली टांगे को लकवा हो जाता है।

घोड़े को उठने में तकलीफ होती है और बीमारी बढ़ने पर मौत हो जाती है। इस बीमारी में घोड़े की भूख पहले की तरह ही होती। उन्होंने कहा कि चिंता की बात यह है कि यह बीमारी एक से दूसरे घोड़े में बड़ी तेजी से फैलती है। ऐसे में इस बीमारी की रोकथाम को लेकर कड़े कदम उठाने की जरूरत हैं।

बचाव के लिए घोड़े पालने वाले एहतियात बरतें

डा. अश्विनी ने कहा कि अगर किसी घोड़े में बीमारी के लक्षण दिखें, तो तत्काल प्रभाव से स्वस्थ वालों को अलग कर दें। बीमार घोड़े को हवादार कमरे में रखें। तबेले में स्वस्थ घोड़ों की आवाजाही कम कर दें। तबेले में आयोडीन या फिनाइल वाली एंटीसेप्टिक दवाओं का छिड़काव करें। ब्रीडिंग फार्मों पर प्रजनन बंद कर दें।

घोड़ों को किसी भी मंडी, मेले या घुड़दौड़ में लेकर न जाए। बीमार घोड़े के नीचे घास, रेत, तूड़ी या पराली बिछाएं। इसके साथ ही बढ़िया खुराक व पानी की उपलब्धता को यकीनी बनाएं। निडाल पड़े घोड़े को छाती के भार बिठाएं और दो से चार घंटे बाद पासा बदलवाएं। सबसे बड़ी बात स्वस्थ घोड़ों को तुरंत वैक्सीन लगवाएं।

घोड़ों से इंसानों में बीमारी फैलने के साक्ष्य नहीं मिले

डाक्टर अश्विनी ने कहा कि यह बीमारी एक से दूसरे घोड़े में फैलती है। अभी तक घोड़ों से इंसानों में बीमारी फैलने के साक्ष्य नहीं मिले हैं। हालांकि इसानों में हर्पीज बीमारी पहले से ही होती है, जिसे जनेउ कहा जाता हैं। इंसानाें में होने वाली बीमारी की स्ट्रेन अलग होता है। डा. अश्विनी ने कहा कि हर्पीज बीमारी को लेकर अगर किसी भी तरह की जानकारी की जरूरत हो तो उनके मोबाइल नंबर पर 94178-08393 पर संपर्क किया जा सकता है।

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