Indian Rupee Fall: रुपया लुढ़कने से पंजाब के इंपाेर्टर के पसीने छूटे, आयातित उत्पाद 15 % तक महंगे
Rupee Hits Record Low डालर के मुकाबले भारतीय मुद्रा लगातार लुढ़कने से ओवरसीज काराेबार प्रभावित हाे रहा है। पंजाब की इंडस्ट्री पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। निर्यातकों को अब विदेशी बाजार में बेचे माल पर अधिक रकम मिल रही है।
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राजीव शर्मा, लुधियाना। Rupee Hits Record Low: डालर के मुकाबले भारतीय मुद्रा लगातार लुढ़कने से पंजाब की इंडस्ट्री प्रभावित हाे रही है। एक डालर की कीमत 80 रुपये को छूकर गिरावट के नए रिकार्ड बना रही है। इसका सीधा असर ओवरसीज कारोबार पर हो रहा है। रुपये में गिरावट से जहां आयातकों के पसीने छूट रहे हैं, वहीं निर्यातक कंफर्ट जोन में आ गए हैं।
आयातकों का तर्क है कि रेडिमेड गारमेंट मशीनरी जो पहले 10 लाख में आयात हो रही थी, उस पर अब साढ़े ग्यारह लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। पिछले माह तक हाई मेलिंटग स्क्रैप का आयात पड़ते में था, लेकिन अब करेंसी में गिरावट के कारण वह भी 2 हजार रुपये प्रति टन महंगा पड़ रहा है।
निर्यातकों काे हाे रहा लाभ
वहीं निर्यातकों को अब विदेशी बाजार में बेचे माल पर अधिक रकम मिल रही है। उधर निर्यातकों का तर्क है कि छोटे निर्यातकों को इसका सीधा लाभ हो रहा है, लेकिन बड़े निर्यातक सेफ साइड के लिए करेंसी की दो तीन माह के लिए हैजिंग या फारवर्ड बुकिंग करते हैं, ऐसे निर्यातकों को फायदा कम हो रहा है।
इसके अलावा विदेशी बायर्स खास कर अमेरिकन कारोबारी करेंसी में कमजोरी के फायदे के रूप में दस प्रतिशत का डिस्काउंट मांग रहे हैं। आयातकों एवं निर्यातकों की सरकार से मांग है कि करेंसी में उतार चढ़ाव को रोक कर इसे स्थिर करने के उपाय किए जाएं, तभी ओवरसीज कारोबार बेहतर ढंग से हो सकता है।
अब तो स्क्रैप आयात महंगा पड़ने लगा है
आल इंडिया इंडक्शन फर्नेस मिल्स एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं आयातक संदीप जैन कहते हैं करेंसी की कमजोरी का बुरा प्रभाव कारोबार पर हो रहा है। पिछले माह एक डालर की कीमत 75-76 रुपये थी। तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्क्रैप का दाम पांच सौ डालर प्रति टन था और पड़ता होने के कारण आयातकों ने स्क्रैप के आर्डर दिए। अब डालर अस्सी रुपये में हो गया तो आयातित स्क्रैप पर दो हजार रुपये प्रति टन का नुकसान हो रहा है। अब पुराने आर्डर के माल का भुगतान नुकसान सह कर भी करना होगा। साथ ही नए आर्डर भी देने बंद कर दिए हैं क्योंकि करेंसी के कारण अब स्क्रैप आयात महंगा पड़ने लगा है। अब करेंसी मजबूत होने के बाद ही आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
ठोस उपाय की जरूरत
फेडरेशन आफ इंडियन एक्सोर्टर्स आर्गेनाइजेशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एससी रल्हन का कहना है कि करेंसी में गिरावट से छोटे निर्यातकों को तो सीधे फायदा हो रहा है। लेकिन बड़े निर्यातक सुरक्षित बिजनेस के लिए करेंसी की फारवर्ड बुकिंग या हैजिंग करके चलते हैं, उनको कम फायदा हो रहा है। क्योंकि उन्होंने करेंसी के रेट की पहले से ही बुकिंग करा रखी है। इसके अलावा निर्यातकों को 40 प्रतिशत तक कच्चा माल, मशीनरी एवं अन्य उत्पादों का आयात भी करना पड़ रहा है, उनको आयात पर चपत लग रही है। दूसरे विदेशी बायर्स अब करेंसी के लाभ के रूप में दस प्रतिशत का डिस्काउंट मांग रहे हैं। उनका कहना है कि करेंसी में उतार चढ़ाव का कारोबार पर विपरीत असर हो रहा है। सरकार को इसे थामने के लिए ठोस उपाय करने होंगे।
मशीन साढ़े ग्यारह लाख में मिल रही
वूल क्लब के चेयरमैन एवं रेज निटवियर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर शाम बांसल ने कहा कि करीब तीन चार माह पहले एक मशीन आयात करने का आर्डर दिया था, तब डालर की कीमत लगभग 72 रुपये थी और मशीन दस लाख रुपये में पड़ रही थी, अब वहीं मशीन साढ़े ग्यारह लाख में मिल रही है। इसके अलावा ब्लेंडेंड यार्न, गारमेंट एक्सेससरीज समेत तमाम आयातित उत्पाद 15 प्रतिशत तक महंगे मिल रहे हैं।