इस मंदिर में अग्नि रूप में दर्शन देते हैं भगवान शिव, जानें मंदिर का हजारों साल पुराना इतिहास
Arunachaleswara Temple सनातन धर्म में सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही सावन सोमवार का व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि सावन सोमवारी का व्रत करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
![इस मंदिर में अग्नि रूप में दर्शन देते हैं भगवान शिव, जानें मंदिर का हजारों साल पुराना इतिहास](https://www.jagranimages.com/images/newimg/27062024/27_06_2024-arunachaleswara_temple_23747898_m.webp)
HighLights
- तंत्र सीखने वाले साधक काल भैरव देव की पूजा करते हैं।
- अरुणाचलेश्वर मंदिर देवों के देव महादेव को समर्पित है।
- अरुणाचलेश्वर मंदिर में स्थित प्रतिमा को अग्नि लिंगम कहा जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Arunachaleswara Temple: भगवान शिव को सोमवार का दिन अति प्रिय है। इस दिन देवों के देव महादेव संग मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही मनोकामना पूर्ति के लिए सोमवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत की महिमा का वर्णन शिव पुराण में निहित है। भगवान शिव के उपासकों को शैव कहा जाता है। सामान्यजन भगवान शिव की पूजा करते हैं। वहीं, तंत्र सीखने वाले साधक भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा करते हैं।
सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव के शरण में रहने वाले साधकों को न केवल मृत्यु लोक में सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म पंडितों की मानें तो भगवान शिव महज फल, फूल और जल अर्पित करने से प्रसन्न हो जाते हैं। इसके लिए भगवान शिव को 'भोलेनाथ' भी कहा जाता है। सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। देशभर में स्थित शिव मंदिरों में देवों के देव महादेव की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां अग्नि रूप में भगवान शिव अवस्थित हैं? आइए जानते हैं
यह भी पढ़ें: कहां है शनिदेव को समर्पित कोकिला वन और क्या है इसका धार्मिक महत्व?
अरुणाचलेश्वर मंदिर कथा
चिरकाल में एक बार जगत के पालनहार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के मध्य श्रेष्ठता को लेकर द्व्न्द यानी मतभेद हो गया। ब्रह्मा जी स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे। वहीं, विष्णु जी स्वयं को श्रेष्ठ मानते थे। उस समय दोनों के मध्य वैचारिक द्व्न्द चलता रहा। यह देख देवी-देवता सभी परेशान हो गए। तब देवी-देवताओं ने देवों के देव महादेव के पास चलने की सलाह दी। देवी-देवताओं की बात मान भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी कैलाश पहुंचे। मामले की गंभीरता को देखते हुए भगवान शिव ने कहा- विषय तो गंभीर है। भगवान विष्णु अपनी जगह पर श्रेष्ठ हैं, तो ब्रह्मा जी अपनी जगह पर श्रेष्ठ हैं। हालांकि, श्रेष्ठता को लेकर द्वन्द का निदान तो करना पड़ेगा। वैचारिक द्वन्द से तो हल निकालना मुश्किल है।
उस समय भगवान शिव ने ब्रह्मा जी और भगवान शिव को सलाह दी कि मेरे तेजोमय शरीर से एक ज्योत का उद्गम होगा। यह ज्योत दोनों तरफ यानी नभ और पाताल की तरफ बढ़ेगा। आप दोनों में जो ज्योत के शीर्ष या शून्य स्तर तक पहुंच जाएंगे। उसे ही श्रेष्ठ घोषित किया जाएगा। एक चीज का ध्यान रखें कि कोई असत्य जानकारी नहीं देंगे। भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने सहमति जताई। उस समय भगवान शिव के तेजोमय शरीर से एक ज्योत का उद्भव हुआ, जो बड़ी तेजी से नभ और पाताल की तरफ बढ़ रहा था। भगवान शिव की अनुमति लेकर ब्रह्मा जी हंस पर आरूढ़ होकर नभ की तरफ बढ़े। वहीं, भगवान विष्णु वराह बन कर आधार की तरफ बढ़े।
हालांकि, दोनों ज्योत के बारे में पता नहीं लगा पाए। कुछ समय बाद दोनों लौट आये। भगवान विष्णु ने पता लगाने में असहमति जताई। भगवान विष्णु ने कहा-हे महादेव! आपकी लीला निराली है। उस लीला को समझना मुश्किल है। इस लीला में अवश्य ही कोई रहस्य निहित है। यह सुन भगवान शिव मुस्कुरा उठे। हालांकि, ब्रह्मा जी ने झूठ यानी असत्य जानकारी दी। उन्होंने कहा कि नभ में ज्योत एक निश्चित बिंदु पर समाप्त है। यह सुन भगवान शिव बोले-आप असत्य जानकारी दे रहे हैं। इसके बाद भगवान शिव ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। यह देख ब्रह्मा जी बोले-आप शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं। इस तरह पक्षपात कर आप गलत कर रहे हैं। आप त्रिलोकीनाथ नहीं हैं। साथ ही उन्होंने भगवान शिव पर कई गंभीर आरोप लगाए। यह सुन भगवान शिव क्रोधित हो उठे। उनके क्रोध से काल भैरव देव का अवतरण हुआ। वर्तमान समय में उसी स्थान पर अरुणाचलेश्वर मंदिर है।
कहां है मंदिर ?
यह मंदिर तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में है। तिरुवन्नामलाई अरुणाचला पहाड़ से घिरा है। इस पहाड़ के तल पर अरुणाचलेश्वर मंदिर है। इसे अन्नामलाईयर मंदिर कहकर भी संबोधित किया जाता है। अन्नामलाईयर मंदिर कहने के पीछे पौराणिक कथा है। यह मंदिर शैव समाज के अनुयायियों के लिए केदारनाथ समतुल्य तीर्थ स्थल है। इस मंदिर में प्रतिमा को अग्नि लिंगम कहा जाता है। इस मंदिर में पंच तत्वों की पूजा की जाती है। इनमें अग्नि की प्रधानता है। यह मंदिर भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। इसकी ऊंचाई 66 मीटर है। इस मंदिर का निर्माण नायकर वंश द्वारा करवाया गया है। मंदिर में 11 मंजिले हैं। अरुणाचलेश्वर मंदिर के हॉल वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। यह हॉल हजारों स्तंभों से निर्मित है। कार्तिगाई दीपम पर मंदिर में भगवान शिव की ज्योत रूप में पूजा की जाती है। इस अवसर पर संध्याकाल में दीये जलाये जाते हैं।
मंदिर कैसे पहुंचे ?
श्रद्धालु देश की राजधानी दिल्ली से वायु मार्ग के जरिए चेन्नई पहुंच सकते हैं। चेन्नई से तिरुवनमलाई 200 किलोमीटर की दूरी पर है। श्रद्धालु सड़क मार्ग के जरिए तिरुवनमलाई जा सकते हैं। मंदिर में आठों प्रहर में 6 बार पूजा आरती की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा और मासिक कार्तिगई दीपम पर्व पर दीपदान किया जाता है।
यह भी पढ़ें: इस मंदिर में शनिदेव की पूजा करने के बाद भक्त मिलते हैं गले
डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेंगी।