Yama Dharmaraja Temple: इन 3 मंदिरों में लगती है यम देवता की कचहरी, इनमें एक है हजार साल पुराना
Yama Dharmaraja Temple धर्मराज का सबसे पुराना मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर में है। यह मंदिर एक हजार साल पुराना है। इस मंदिर में धर्मराज की पूजा होती है। बड़ी संख्या में भक्तगण यम देवता के दर्शन और आशीर्वाद के लिए तंजावुर स्थित यम मंदिर जाते हैं। इस मंदिर में यम देवता की पूजा करने से साधक को अकाल मृत्यु की बाधा से मुक्ति मिलती है।
HighLights
- भगवान विष्णु के शरणागत रहने वाले साधकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भरमौर स्थित धर्मराज मंदिर में यम देवता के दर्शन से साधक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
- अच्छे कर्म करने वाले को मृत्यु बाद स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Yama Dharmaraja Temple History: सनातन धर्म में पुनर्जन्म का विधान है। इसका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका पुनः जन्म होता है। इससे पूर्व मृत्यु उपरांत व्यक्ति को जीवन काल में किए गए अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता है। अच्छे कर्म करने वाले लोगों को मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। वहीं, बुरे कर्म वाले लोगों को नरक का दुख भोगना पड़ता है। एक बार पाप या पुण्य कर्म का फल भोगने के बाद व्यक्ति को नवजीवन प्राप्त होता है।
गरुड़ पुराण में निहित है कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु और महाकाल के शरणागत रहने वाले साधकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे लोगों को मृत्यु लोक में दोबारा नहीं आना पड़ता है। उन्हें बैकुंठ और शिव लोक में स्थान प्राप्त होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों को लेने आते हैं। अतः कृष्ण भक्तों को मृत्यु के समय कोई दर्द या दुख नहीं होता है। वहीं, बुरे कर्मों में लिप्त रहने वाले लोगों को मृत्यु के समय अत्यधिक कष्ट होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में यम के देवता धर्मराज के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं? इन मंदिरों में धर्मराज विराजते हैं। इनमें एक मंदिर हजार साल पुराना है। वहीं, हिमाचल प्रदेश में स्थित मंदिर में यम देवता की कचहरी लगती है। इस मंदिर में ही व्यक्ति को मृत्यु के बाद कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक मिलता है। यह फैसला यम के देवता धर्मराज सुनाते हैं। आइए, इन 03 मंदिरों के बारे में जानते हैं-
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भरमौर धर्मराज मंदिर (Yama Dharmaraja Temple)
हिमाचल प्रदेश अपनी खूबसूरती के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में कई प्रमुख पर्यटन एवं धार्मिक स्थल हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के भरमौर में धर्मराज का प्रमुख मंदिर (Temple in Himachal) है। इस मंदिर में धर्मराज की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के एक अन्य कक्ष में चित्रगुप्त जी विराजमान हैं। स्थानीय लोगों में मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है। बड़ी संख्या में भक्तगण धर्मराज मंदिर दर्शन के लिए आते हैं। हालांकि, श्रद्धालु मंदिर परिसर से ही धर्मराज और चित्रगुप्त जी को प्रणाम करते हैं। मंदिर के गर्भगृह में बहुत कम लोग जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद व्यक्ति को सर्वप्रथम भरमौर स्थित यम मंदिर में हाजिर किया जाता है। इसके बाद यम देवता की कचहरी लगती है। उस समय चित्रगुप्त जी व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा धर्मराज को सुनाते हैं। व्यक्ति को जीवन में किए गए कर्मों के अनुसार उच्च और निम्न लोक भेजा जाता है। धर्मराज के दूत अच्छे कर्म करने वाली जीवात्मा को स्वर्ग लोक ले जाते हैं। वहीं, बुरे कर्म करने वाली जीवात्मा को नरक भेज दिया जाता है।
कैसे पहुंचे धर्मराज मंदिर ?
देश की राजधानी दिल्ली से श्रद्धालु वायु, रेल या सड़क मार्ग के जरिए पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग के जरिए श्रद्धालु सीधे भरमौर पहुंच सकते हैं। हालांकि, वायु मार्ग से जाने पर चंबा का निकटतम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। वहीं, निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। श्रद्धालु अपनी सुविधा अनुसार चंबा पहुंच सकते हैं।
धर्मराज मंदिर (मथुरा)
यम के देवता धर्मराज का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर मथुरा में है। यह मंदिर मथुरा के विश्राम घाट पर स्थित है। इस मंदिर में यम के देवता अपनी बहन यमुना जी के साथ विराजमान हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध के पश्चात इस स्थान पर विश्राम किया था। इसके लिए इसे विश्राम घाट कहा जाता है। विश्राम घाट पर स्थित सरोवर में स्नान कर धर्मराज की पूजा करने से साधक को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु को यमलोक नहीं जाना पड़ता है।
कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में एक बार धर्मराज अपनी बहन यमुना के घर पर भोजन करने पहुंचे थे। पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भैया दूज मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन यमुना जी के निमंत्रण पर यम देवता अपनी बहन यमुना के घर गए थे। मां यमुना ने यम देवता की खूब मेहमाननवाजी की। इससे प्रसन्न होकर यम देवता ने कहा- बहन! आपकी खातिरदारी से मैं बेहद प्रसन्न हूं। आप वर मांगो। आपकी सभी मुराद पूरी होगी। यह सुन मां यमुना ने कहा कि आप ऐसा वरदान दीजिए, जिससे समस्त मानव जगत का कल्याण हो। साथ ही आपके प्रकोप से व्यक्ति बच जाए। उस समय धर्मराज ने कहा कि बहन! कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जो व्यक्ति विश्राम घाट पर स्नान-ध्यान करेगा। उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। साथ ही मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
कैसे पहुंचे मंदिर ?
देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के जगहों से साधक वायु, रेल या सड़क मार्ग के जरिए मथुरा पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग के जरिए साधक बस सेवा से भी मथुरा पहुंच सकते हैं। दिल्ली से मथुरा की दूरी 180 किलोमीटर है। मंदिर संध्याकाल में 04 बजे से 08 बजे तक बंद रहता है।
तंजावुर धर्मराज मंदिर
धर्मराज का सबसे पुराना मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर में है। यह मंदिर एक हजार साल पुराना है। इस मंदिर में धर्मराज की पूजा होती है। इस मंदिर में यमराज भैंसे पर विराजमान हैं। बड़ी संख्या में भक्तगण यम देवता के दर्शन और आशीर्वाद के लिए तंजावुर स्थित यम मंदिर जाते हैं। इस मंदिर में यम देवता की पूजा-उपासना करने से साधक को अकाल मृत्यु की बाधा से मुक्ति मिलती है। साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि एक बार भगवान शिव ध्यान मुद्रा में मग्न थे। उस समय सभी देवता कैलाश पहुंचे। भगवान शिव को ध्यान मुद्रा में देख देवता सोच में पड़ गए कि कब भगवान शिव ध्यान मुद्रा से बाहर आएंगे। यह सोच उन्होंने कामदेव को भगवान शिव का ध्यान भंग करने की सलाह दी। देवताओं की सलाह को मान कामदेव ने भगवान शिव के ध्यान को तोड़ने का असफल प्रयास किया। यह देख भगवान शिव बेहद क्रोधित हुए। उन्होंने तत्क्षण कामदेव को भस्म कर दिया। यह जान रति रोने लगी। उस समय रति ने यम देवता से कामदेव को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया। उस समय धर्मराज ने भगवान शिव से अनुमति लेकर कामदेव को जीवित कर दिया। साथ ही भगवान शिव से जीवनदान का वरदान भी मांगा। भगवान शिव ने यमराज को यह वरदान दिया। इसी स्थान पर यम देवता ने कामदेव को जीवित किया था।
कैसे पहुंचे धर्मराज मंदिर?
साधक वायु मार्ग से त्रिची पहुंच सकते हैं। त्रिची से तंजावुर की दूरी लगभग 55-57 किलोमीटर है। एयरपोर्ट के बाहर से टैक्सी और बस की सुविधा है। वहीं, रेल मार्ग के जरिए भी निकटतम रेलवे स्टेशन त्रिची ही है। साधक अपनी सुविधा के अनुसार त्रिची पहुंच सकते हैं।
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