Pradosh vrat 2024: प्रदोष व्रत पर महादेव को करना है प्रसन्न, तो इस स्तुति का जरूर करें पाठ

प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार प्रदोष व्रत 04 जून को किया जाएगा। इस तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन संध्याकाल में उपासना करने से व्यक्ति को आरोग्य जीवन प्राप्त होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Publish:Sun, 02 Jun 2024 02:05 PM (IST) Updated:Sun, 02 Jun 2024 02:05 PM (IST)
Pradosh vrat 2024: प्रदोष व्रत पर महादेव को करना है प्रसन्न, तो इस स्तुति का जरूर करें पाठ
Pradosh vrat 2024: प्रदोष व्रत पर महादेव को करना है प्रसन्न, तो इस स्तुति का जरूर करें पाठ

HighLights

  • हर माह में 2 बार प्रदोष व्रत किया जाता है।
  • इस बार प्रदोष व्रत 04 जून को है।
  • प्रदोष व्रत पर भगवान शिव की पूजा होती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shiv Stuti Lyrics: देवों के देव महादेव को त्रयोदशी तिथि समर्पित है। प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन संध्याकाल में उपासना करने से व्यक्ति को आरोग्य जीवन प्राप्त होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। साथ ही साधक की लंबी आयु होती है। इस दिन शिव स्तुति मंत्र का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए पढ़ते हैं शिव स्तुति मंत्र।

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शिव स्तुति मंत्र

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।

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