Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान करें शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ, दांपत्य जीवन होगा खुशहाल

धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2024) के दिन भगवान महादेव की उपासना करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है और सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इस दिन पूजा के दौरान शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करना बेहद कल्याणकारी माना गया है। इससे दांपत्य जीवन में खुशियों का आगमन होता है। आइए पढ़ते हैं शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Publish:Sat, 15 Jun 2024 04:37 PM (IST) Updated:Sat, 15 Jun 2024 04:37 PM (IST)
Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान करें शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ, दांपत्य जीवन होगा खुशहाल
Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान करें शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ, दांपत्य जीवन होगा खुशहाल

HighLights

  • हर महीने में 2 बार प्रदोष व्रत किया जाता है।
  • त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है।
  • इस दिन शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Pradosh Vrat 2024 Date: त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा करने का विधान है। साथ ही मुरादें पूरी करने के लिए व्रत भी किया जाता है। हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार ज्येष्ठ माह का दूसरा प्रदोष व्रत 19 जून को है।यह व्रत बुधवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए इसे बुध प्रदोष व्रत भी कह सकते हैं।

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प्रदोष व्रत 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Pradosh Vrat 2024 Date and Shubh Muhurat)

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 19 जून को सुबह 07 बजकर 28 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 20 जून को सुबह 07 बजकर 49 मिनट पर होगा। ऐसे में प्रदोष व्रत 19 जून को मनाया जाएगा।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र (Rudrashtakam Stotram Lyrics in Hindi)

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।1।।

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।

गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।।

करालं महाकालकालं कृपालं ।

गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ।।2।।

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।

मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।।

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।3।।

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।

प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।

प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।4।।

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।।

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।5।।

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।

न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।

भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।7।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।।

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।8।।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।9।।

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