Shani Jayanti 2024: शनि जयंती पर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

सनातन शास्त्रों में निहित है कि ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर शनिदेव का अवतरण हुआ है। अतः हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। इसे शनि अमावस्या भी कहा जाता है। धार्मिक मत है कि न्याय के देवता शनिदेव की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होता है।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Fri, 24 May 2024 01:38 PM (IST) Updated:Fri, 24 May 2024 01:38 PM (IST)
Shani Jayanti 2024: शनि जयंती पर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम
Shani Jayanti 2024: शनि जयंती पर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ

HighLights

  • हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन अमावस्या मनाई जाती है।
  • सनातन शास्त्रों में निहित है कि ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर शनिदेव का अवतरण हुआ है।
  • शनिदेव की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Jayanti 2024: हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन अमावस्या मनाई जाती है। इस वर्ष 06 जून को ज्येष्ठ अमावस्या है। ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर शनि जयंती भी मनाई जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर शनिदेव का अवतरण हुआ है। अतः हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। इसे शनि अमावस्या भी कहा जाता है। धार्मिक मत है कि न्याय के देवता शनिदेव की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होता है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में शनिदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। अगर आप भी न्याय के देवता शनिदेव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो शनि जयंती पर विधि-विधान से मोक्ष प्रदाता की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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शनि वज्र पंजर कवच

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ।

चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः ॥

शृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥

ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः ।

नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कणौं यमानुजः ॥

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।

स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ॥

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु-शुभप्रदः ।

वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ॥

नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा ।

ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥

पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।

अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः ॥

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः ।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥

व्यय-जन्म-द्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा ।

कलत्रस्थो गतो वाऽपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।

कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।

द्वादशाऽष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ।

जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥

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