Chakra Meditation: शरीर में मौजूद इन सात चक्रों पर टिका है मनुष्य का आधार, जानें क्या है इनका महत्व और रूप
Chakra Meditation चक्र साधना को योग का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। हमारे शरीर में सात प्रकार के चक्र होते हैं जिनका अपना-अपना महत्व है। योग एवं तंत्र क्रियाओं के माध्यम से शरीर में मौजूद उर्जा का निहित संचार कर सकते हैं।
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नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Chakra Meditation Benefits and Types: योग को मनुष्य के सरल और सुखद जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। वर्तमान समय की ओर देखा जाए तो हमारी दिनचर्या में तेजी से बदलाव आ रहा है। जिसके कारण व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक रूप से कई प्रकार के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जो उर्जा आप अपने जीवन में अर्जित करते हैं, उसका सारा श्रय शरीर में मौजूद सात चक्रों को जाता है। योग शास्त्र में बताया गया है कि शरीर में मौजूद यह चक्र यदि सही प्रकार से कार्य करते हैं तो व्यक्ति अपना जीवन सरलता से व्यतीत कर पाता है, अन्यथा मानसिक व शारीरिक तनाव शरीर पर हावी होने लगता है।
योग शास्त्र में बताया गया है कि मनुष्य के शरीर में 7 मुख्य चक्र हैं जिनका नाम- मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्त्रार चक्र है। यह सभी चक्र हमारे विचारों, भावनाओं, स्मृतियों, अनुभवों और कर्मों के कारक हैं। एक व्यक्ति हठ योग के माध्यम से इन चक्रों को पूर्णतः जागृत कर सकता है। आइए जानते हैं शरीर में मौजूद 7 मुख्य चक्रों का महत्व और उनका रूप।
मूलाधार चक्र
योग शास्त्र के अनुसार मूलाधार चक्र शरीर में रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचले भाग में मौजूद रहता है। इसे भौम मंडल के नाम से भी जाना जाता है। इस चक्र का रंग लाल होता है और इसका बीज अक्षर 'लं' है। अध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का नेतृत्व करता है। व्यक्ति को भोग या वासना की लालसा और अध्यात्मिक इच्छा इसी चक्र से प्राप्त होती है।
स्वाधिष्ठान चक्र
स्वाधिष्ठान चक्र रीढ़ की हड्डी पर मौजूद होता है और इसका स्वरूप आधा चांद के जैसा होता है। इस चक्र का तत्व जल है और यह सामान्य बुद्धि का आभाव, अविश्वास, सर्वनाश, क्रूरता और अवहेलना जैसी निम्न भावनाओं को नियंत्रित करता है। इस चक्र से काम भावना और उन्नत भाव जन्म लेता है। इस चक्र का बीज अक्षर 'वं' है।
मणिपुर चक्र
योग शास्त्र में बताया गया है कि मणिपुर चक्र नाभि के पीछे और रीढ़ की हड्डी पर मौजूद होता है। इसका आकार त्रिकोण रूपी होता है और यह लाल रंग का होता है। इस चक्र को उर्जा का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी चक्र से उर्जा का प्रसारण शरीर में होता है। इस चक्र का बीज अक्षर 'रं' है और यह दुष्ट भाव, ईर्ष्या, विषाद, तृष्णा, घृणा और भय जैसे भावनाओं को नियंत्रित करता है। बता दें कि इस चक्र का प्रभाव सीधे मन और शरीर पर पड़ता है।
अनाहत चक्र
षठकोण रूपी इस चक्र को सौर मंडल भी कहा जाता है, इस चक्र का रंग हल्का हरा होता है और इसमें 12 पंखुडियां होती हैं। इस चक्र को आशा, चिंता, अहंकार, कपट भाव, अनुताप, दंभ और विवेक इत्यादि जैसी भावनाओं का स्वामी कहा गया है। इस चक्र का बीज अक्षर 'यं' है और इसका संबंध व्यक्ति की भावना और साधना की आंतरिक भावनाओं से है।
विशुद्ध चक्र
शरीर में विशुद्ध चक्र की उपस्थिति कंठ के ठीक नीचे वाले भाग में होती है। इसी चक्र से सभी प्रकार के सिद्धियों की प्राप्ति होती है। बहुरंगी इस चक्र का कोई एक स्वरूप नहीं है। साथ ही यह चक्र भौतिक ज्ञान, कल्याण, कार्य, ईश्वर के प्रति समर्पण, विष एवं अमृत जैसी भावनाओं का नेतृत्व करता है। इस चक्र का बीज अक्षर 'हं' है और इसमें 16 पंखुड़ियां हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यदि यह चक्र ठीक से काम नहीं करता है तो शरीर में थाईराइड और वाणी से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। साथ ही इसका संबंध आकाश तत्व और सभी आठों सिद्धियों से है।
आज्ञा चक्र
आज्ञा चक्र का स्थान आंख के ठीक ऊपर और दोनों भौहों के मध्य में होता है। इस चक्र के दो बीज अक्षर हैं एक 'ह' और दूसरा 'क्ष'। साथ ही इस चक्र में केवल दो पंखुड़ियां ही मौजूद रहती हैं और जिनका रंग भी अलग है। एक पंखुड़ी काले रंग की है तो दूसरे का रंग सफेद है। सफेद रंग की पंखुड़ी ईश्वर की आराधना का नेतृत्व करती है और काला रंग संसारिकता की ओर ले जाती है।
सहस्त्रार चक्र
योग शास्त्र में सहस्त्रार चक्र को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता जाता है। यह मस्तिष्क के उपरी भाग में मौजूद है और यह सहस्त्र पंखुड़ियों वाला होता है। जिनका रंग पूर्णतः सफेद होता है। इस चक्र का कोई बीज अक्षर नहीं है और इसके माध्यम से केवल गुरु का ध्यान किया जाता है। योग शास्त्र में इस चक्र को काशी के स्थान बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब कुंडलिनी इस चक्र तक पहुंचती है तो व्यक्ति को पूर्ण साधना की प्राप्ति हो जाती है और उसके लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सरल हो जाता है।
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