Masik Shivratri 2024: ज्येष्ठ माह की मासिक शिवरात्रि पर पूजा के समय करें ये स्तुति, मिलेगा मनचाहा वर
शिव पुराण में वर्णित है कि शिवरात्रि पर भगवान शिव एवं मां पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे। इस उपलक्ष्य पर हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव संग मां पार्वती विशेष पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। मासिक शिवरात्रि व्रत करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
HighLights
- हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है।
- इस दिन देवों के देव महादेव संग मां पार्वती की पूजा की जाती है।
- भगवान शिव की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Masik Shivratri 2024: हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। यह पर्व देवों के देव भगवान शिव एवं मां पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि मासिक शिवरात्रि व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं, अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी के योग बनते हैं। साथ ही मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। अतः सभी वर्ग के लोग मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव संग मां पार्वती की पूजा करते हैं। अगर आप भी महादेव की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं, तो मासिक शिवरात्रि पर विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय ये स्तुति पाठ अवश्य करें।
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शिवरात्रि स्तुति
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।
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