Guru Stotra: गुरुवार को पूजा के समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार

कुंडली में गुरु मजबूत होने से जातक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में गुरु मजबूत होने से जातक अपने जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल करता है। साथ ही समय के साथ जातक के आय और सौभाग्य में वृद्धि होती रहती है। वहीं कुंडली में गुरु कमजोर होने पर जातक को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Wed, 27 Dec 2023 05:05 PM (IST) Updated:Wed, 27 Dec 2023 05:06 PM (IST)
Guru Stotra: गुरुवार को पूजा के समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार
Guru Stotra: गुरुवार को पूजा के समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार

HighLights

  • सनातन धर्म में गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की पूजा-अर्चना की जाती है।
  • ज्योतिष भी कुंडली में गुरु मजबूत करने हेतु गुरुवार का व्रत करने की सलाह देते हैं।
  • कुंडली में गुरु मजबूत होने से जातक अपने जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल करता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Guru Stotra: सनातन धर्म में गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही गुरुवार का व्रत रखा जाता है। ज्योतिष भी कुंडली में गुरु मजबूत करने हेतु गुरुवार का व्रत करने की सलाह देते हैं। कुंडली में गुरु मजबूत होने से जातक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में गुरु मजबूत होने से जातक अपने जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल करता है। साथ ही समय के साथ जातक के आय और सौभाग्य में वृद्धि होती रहती है। वहीं, कुंडली में गुरु कमजोर होने पर जातक को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत करना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय गुरु स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है।

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बृहस्पति कवच

अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञम् सुर पूजितम् ।

अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥

बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।

कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः ॥

जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः ।

मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः ॥

भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।

स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥

नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।

कटिं पातु जगवंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥

जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा ।

अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।

सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥

गुरु स्तोत्र

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।

आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।

ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,

द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,

भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

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