Shiv Nandi: कौन हैं कैलाश के द्वारपाल नंदी और कैसे बनें देवों के देव महादेव की सवारी?

मान्यता है कि भगवान महादेव की पूजा-अर्चना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव के मंदिर में नंदी विराजमान होते हैं। क्योंकि नंदी भगवान शिव के परम भक्त हैं। आपने देखा होगा कि मंदिर में शिव की प्रतिमा के सामने नंदी की मूर्ति विराजमान होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नंदी भगवान शिव की सवारी कैसे बने? आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Publish:Sun, 23 Jun 2024 02:47 PM (IST) Updated:Sun, 23 Jun 2024 02:47 PM (IST)
Shiv Nandi: कौन हैं कैलाश के द्वारपाल नंदी और कैसे बनें देवों के देव महादेव की सवारी?
Shiv Nandi: कौन हैं कैलाश के द्वारपाल नंदी और कैसे बनें देवों के देव महादेव की सवारी?

HighLights

  • शिव मंदिर में नंदी विराजमान होते हैं।
  • भगवान शिव के वाहन नंदी हैं।
  • यह महादेव के परम भक्त हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shiv Nandi: सनातन धर्म में भगवान शिव को सभी देवी-देवताओं में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है। वैसे तो सप्ताह के सभी दिन भगवान महादेव की पूजा-अर्चना करने का विधान है, लेकिन सोमवार के दिन प्रभु की विशेष उपासना की जाती है। साथ ही जीवन के दुखों से मुक्ति पाने के लिए व्रत भी किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनचाहा वर की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान शिव के मंदिर में लोग दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। 

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ये है मान्यता

भगवान शिव के मंदिर में नंदी विराजमान होते हैं। क्योंकि नंदी भगवान शिव के परम भक्त हैं। शिव मंदिर में नंदी के कान में अपनी मनचाही मनोकामना पूरी करने के लिए बोलते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके पीछे एक मान्यता है कि भगवान शिव तपस्वी हैं। वह सदैव समाधि में रहते हैं। भगवान महादेव की तपस्या में कोई बाधा न आने के लिए नंदी जी प्रभु को मनोकामना पहुंचाते का कार्य करते हैं। ऐसे में उनकी समाधि और तपस्या में कोई विघ्न न आए। इसलिए नंदी ही हमारी मनोकामना शिवजी तक पहुंचाते हैं। इसलिए लोग मंदिर में जाकर अपनी मनोकामना कहते हैं। बता दें कि भगवान शिव का द्वारपाल नंदी को कहा जाता है। भगवान महादेव के दर्शन करने से पहले नंदी के दर्शन होते हैं।

ऐसे बनें शिव की सवारी नंदी

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में शिलाद नाम के ऋषि थे। उन्होंने अपने जीवन में भगवान शिव की अधिक तपस्या कर नंदी को पुत्र रूप में प्राप्त किया। उन्हें  वेद-पुराण का ज्ञान था। एक बार ऋषि के आश्रम में दो संत आए। भगवान शिव के आदेश पर संतों को अधिक सेवा की। इसके बाद संतों ने ऋषि को दीर्घ आयु का वरदान दिया। लेकिन नंदी के लिए एक शब्द भी नहीं बोला।

संतों ने इसका कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि नंदी की आयु कम है। उनके बारे में पिता ऋषि शिलाद बेहद चिंतित हुए। तब नंदी ने उन्हें समझाया कि पिता जी आपने मुझे भगवान महादेव की कृपा से प्राप्त किया है, तो वो ही मेरे जीवन की रक्षा करेंगे। इसके पश्चात शिव जी के लिए नंदी ने अधिक तप किया। इससे महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना वाहन बना लिया।

नंदी को इसलिए चुना अपना वाहन

शिव जी ने कहा कि मेरी सभी ताकतें नंदी के पास मौजूद हैं। मां पार्वती और नंदी की सुरक्षा मेरे साथ है। सनातन धर्म में बैल को बेहद भोला माना गया है, लेकिन काम अधिक करता है। भगवान शिव ने कर्मठ और जटिल होने की वजह से नंदी को बैल के रूप में अपना वाहन बनाया।  

भगवान शंकर की तरफ क्यों होता है नंदी का मुख?

नंदी जी का मुख भगवान शिव की तरफ होता है। उनकी यह मुद्रा महादेव के प्रति अटूट ध्यान और भक्ति का प्रतीक है। उनका ध्यान सिर्फ उनके आराध्य पर केंद्रित रहता है।  

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