Shiv Pujan: सोमवार की सुबह भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए करें ये काम, होंगे चमत्कारी लाभ

सोमवार के दिन भगवान शंकर की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा से अक्षय फलों की प्राप्ति होती। ऐसे में सोमवार के दिन का उपवास श्रद्धा के साथ करें। सुबह पवित्र स्नान के बाद शिव जी की विधि अनुसार पूजा करें। इसके बाद शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम् का पाठ भावपूर्ण करें जो इस प्रकार है -

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Publish:Mon, 24 Jun 2024 07:00 AM (IST) Updated:Mon, 24 Jun 2024 07:00 AM (IST)
Shiv Pujan: सोमवार की सुबह भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए करें ये काम, होंगे चमत्कारी लाभ
Shiv Pujan: शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम् का पाठ -

HighLights

  • हिंदू धर्म में सोमवार का दिन बेहद कल्याणकारी माना गया है।
  • इस दिन भगवान शंकर की पूजा का विधान है।
  • शिव जी की पूजा से सभी परेशानियों का अंत होता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में सोमवार का दिन बेहद कल्याणकारी माना गया है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा का विधान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा से अक्षय फलों की प्राप्ति होती। ऐसे में सोमवार के दिन का उपवास करें। सुबह पवित्र स्नान के बाद शिव जी (Shiv Pujan) की विधि अनुसार पूजा करें।

इसके बाद 'शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम्' का पाठ भाव के साथ करें। पूजा का समापन आरती से करें। इसके साथ ही पूजा में हुई गलती के लिए क्षमा मांगे।

॥ शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम् ॥

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं

शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवंदितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥1॥

पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं

भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥2॥

मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं

पंकजासनपद्मलोचनपूजितांगघ्रिसरोरुहम्।

देवसिद्धतरंगिणी करसिक्तशीतजटाधरं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥3॥

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं

नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

अंधकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥4॥

यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजंगविभूषणं

शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥5॥

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं

दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥6॥

भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं

सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।

भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥7॥

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं

संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमाव्रतं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥8॥

रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥9॥

कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥10॥

नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरूपद्रवम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥11॥

वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥12॥

देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥13॥

अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥14॥

आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥15॥

स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥16॥

॥ इति श्रीपद्मपुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्। ॥

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