राधा-कृष्ण के विवाह का साक्षी है भांडीरवन

मथुरा का भांडीरवन जहां के बारे में पुराणों में लिखा है कि ब्रह्मा जी ने कराया था राधा कृष्ण का विवाह यहां।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 15 Jun 2018 04:14 PM (IST) Updated:Fri, 15 Jun 2018 04:29 PM (IST)
राधा-कृष्ण के विवाह का साक्षी है भांडीरवन
राधा-कृष्ण के विवाह का साक्षी है भांडीरवन

अभय गुप्ता(जागरण संवाददाता): कृष्ण और राधा के कथानक में रस लेने वाले अधिकांश रसिक यही जानते हैं उनकी कभी शादी नहीं हो सकी। मगर, गौड़ीय संप्रदाय में राधा के कृष्ण से विवाह होने का विश्वास किया जाता है। यही कारण हैं गौड़ीय मत से दीक्षित श्रीमती राधा कहते हैं जबकि पूरे ब्रज में श्रीराधा कहने का ही ही चलन है। इन दो मतों के बीच हमेशा ही यह विमर्श कायम रहा कि क्या वाकई कभी कृष्ण और राधा की शादी हुई। बृज का भांडीरवन ऐसा वन है, जहां राधा-कृष्ण के प्रगाढ़ प्रेम के अध्याय का हर आखर साक्षात हो उठता है। स्वयं ब्रह्माजी ने भांडीर वन में आकर राधा-कृष्ण का विवाह कराया ऐसी मान्यता आज भी है।

भांडीर वन आज भी राधा-कृष्ण विवाह की गाथा को जीवंत कर रहा है। ब्रह्मवैवर्त पुराण, गर्ग संहिता और गीत गो¨वद में भी राधा-कृष्ण के भांडीरवन में विवाह का वर्णन किया गया है। मथुरा से करीब तीस किलोमीटर दूर मांट के गांव छांहरी के समीप यमुना किनारे भांडीरवन है। करीब छह एकड़ परिधि में फैले इस वन में कदंब, खंडिहार, हींस आदि के प्राचीन वृक्ष हैं। भांडीरवन में बिहारी जी का सबसे प्राचीन स्थल माना गया है। यहां मंदिर में श्री जी और श्याम की अनूप जोड़ी है। जिसमें कृष्ण का दाहिना हाथ अपनी प्रियतमा राधा की मांग भरने का भाव प्रदर्शित कर रहा है। मंदिर के सामने प्राचीन वट बृक्ष है। जनश्रुति है कि इसी वृक्ष के नीचे राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। वट वृक्ष के नीचे बने मंदिर में राधा-कृष्ण और ब्रह्मा जी विराजमान हैं। भांडीरवन में राधा-माधव एक दूसरे को वरमाला पहना रहे हैं। आज भी वह वृक्ष मौजूद है।

क्या कहती है कथा

पुराणों में वर्णन है कि एक दिन नंदबाबा बालक कृष्ण को गोद में लिए भांडीरवन पहुंच गए तभी भगवान कृष्ण की इच्छा से वन में बहुत तेज तूफान आ गया। यह देखकर नंद बाबा डर गए। वे कृष्ण को गोद में लेकर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। उसी समय वहां पर देवी राधा आ गईं। नंद बाबा कृष्ण और राधा के देव अवतार होने की बात जानते थे। वह देवी राधा को देखकर स्तुति करने लगे और बालरूपी कृष्ण को राधा के हाथों में सौंपकर वहां से चले गए। नंद बाबा के जाने के बाद भगवान कृष्ण ने दिव्य रूप धारण कर लिया। उनकी इच्छा पर ब्रह्माजी आ गए और भांडीर वन में देवी राधा और भगवान कृष्ण का विवाह करवाया।

क्या कहते हैं सेवायत

मंदिर के सेवायत गोपाल बाबा ने बताया कि भांडीरवन में ही भगवान कृष्ण का प्राचीन मंदिर है। इसी स्थान पर राधे-श्याम का विवाह हुआ था। इसके अलावा ग्वाल वालों के संग भोजन करना, वृक्षों की लंबी शाखाओं पर चढ़कर खेलना-कूदना और यमुना पार करने एवं असुरों के वध की लीलाएं भगवान कृष्ण ने भांडीरवन में की हैं। यहां ज्यादा चहल -पहल नहीं है। इस वन में सिर्फ सेवायतों के परिवार रहते हैं।

वेणुकूप में समस्त तीर्थ

कंस द्वारा भेजे गए वत्सासुर का वध करने के बाद माधव ने अष्टसखियों के साथ विराजी राधारानी के कुंज में प्रवेश करना चाहा तो उन्हें रोक दिया। ललिता, विशाखा आदि सखियों ने कहा कि आपने गोवंश का अपराध किया है। संसार के सभी तीर्थों में स्नान से ही प्रायश्चित हो सकता है। तब कृष्ण ने इस कूप का निर्माण कर सारे तीर्थो का आह्वान कर उसमें स्नान किया था। भांडीर वन में यह पौराणिक कूप आज भी विद्यमान हैं। सोमवती अमावस्या के दिन इस कूप पर स्नान एवं आचमन के लिए हजारों श्रद्धालु आते हैं।

कैसे पहुंचे यहां तक

मथुरा से भांडीर वन की दूर करीब 30 किलोमीटर की है। वृंदावन होते हुए मांट पहुंचा जाता है। यहां से राया-नौहझील मार्ग पर मांट से दो किलोमीटर दूर छारी गांव पड़ता है। छारी गांव तक जाने तक बस, टेंपो सहित तमाम स्थान जाते हैं। यहां से एक किलोमीटर दूर भांडीर वन है। निजी वाहन वाले मंदिर तक अपने वाहन से पहुंच सकते हैं, अन्यथा छारी गांव से एक किलोमीटर की दूरी आसानी से तय की जा सकती है।

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