सरल और धैर्यवान थे बाबा योगेंद्र, नानाजी देशमुख से प्रभावित होकर बने थे प्रचारक

संस्कार भारती के संस्थापक पद्मश्री बाबा योगेंद्र के निधन से शहर के सांस्कृतिक सामाजिक क्षेत्र के लोगों में शोक। उनके साथ बिताए समय की याद कर भावुक हो रहे हैं लोग। 1981 में संस्कार भारती की स्थापना उन्होंने यादराम देशमुख श्याम कृष्ण के साथ मिलकर की।

By Tanu GuptaEdited By:
Updated: Fri, 10 Jun 2022 01:38 PM (IST)
सरल और धैर्यवान थे बाबा योगेंद्र, नानाजी देशमुख से प्रभावित होकर बने थे प्रचारक
पद्मश्री बाबा योगेंद्र का शुक्रवार को निधन हो गया है।

आगरा, जागरण संवाददाता। संस्कार भारती के संस्थापक पद्मश्री बाबा योगेंद्र का शुक्रवार को सुबह आठ बजे लखनऊ के लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन की सूचना से आगरा के रंगमंच, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों में शोक का माहौल है। सभी उनके साथ बिताए समय को याद कर रहे हैं।वह बताते हैं कि बाबा योगेंद्र नानाजी देशमुख से प्रभावित होकर प्रचारक बने, सालों तक संघ की सेवा की और बाद में संस्कार भारती संगठन को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अपनी जिंदगी लगा दी।

जानकार बताते हैं कि बाबा योगेंद्र का आगरा आने अक्सर लगा ही रहता था। संघ परिवार में प्रचारक होने के नाते यहां होने वाले शिविर में शामिल होने आते थे। 1980 में विचार परिवार के प्रति वह प्रदर्शनी दिखाकर समर्थन जुटाते थे। 1981 में संस्कार भारती की स्थापना उन्होंने यादराम देशमुख, श्याम कृष्ण के साथ मिलकर की। संस्कार भारती का आगरा से जुड़ाव इसलिए भी अधिक रहा क्योंकि इसका पंजीकृत व प्रमुख केंद्र आगरा ही था। यहां जयपुर हाउस स्थित माधव भवन में इसका कार्यालय बनाया गया।

पद्मश्री बाबा योगेन्द्र का 07 जनवरी 2022 को उनके 99 वें जन्मदिवस पर जयपुर हाउस स्थित माधव भवन में स्थानीय कार्यकर्ता सम्मान करते हुए।

नानाजी को देखकर बने प्रचारक

संस्कार भारती के अखिल भारतीय साहित्य संयोजक रहे राज बहादुर सिंह बताते हैं कि बाबा योगेंद्र को संघ में लाने का श्रेय नानाजी देशमुख को जाता है। वह प्रचारक थे। शुरू में बाबा योगेंद्र जब स्वयंसेवक थे, तब नाना जी प्रचारक थे। करीब 1960 बात की बात है, एक बार बाबा योगेंद्र बीमार पड़े, तो अस्पताल तक ले जाने के लिए आवागमन के साधन नहीं थे, तो नानाजी देशमुख समय न गंवाते हुए उन्हें अपनी पीठ पर लादकर अस्पताल तक इलाज कराने ले गए थे। सेवा का यह निस्वार्थ भाव देखकर वह इतना प्रभावित हुए कि छह बहनों में अकेले भाई होने के बाद भी वह प्रचारक हो गए।

तिरंगे से लिपटा बाबा योगेंद्र का शव। 

पडोसी के यहां रहे छह साल

जानकार बताते हैं कि बलिया निवासी बाबा योगेंद्र घर में इकलौते बेटे थे। उनसे पहले उनके जितने भाई पैदा हुए, सभी खत्म हो गए। इसलिए पिता ने उन्हें बचाने के लिए रीति निभाते हुए पड़ोसी को बेच दिया था, इसलिए उन्होंने अपने पड़ोसी के यहां शुरुआत के पांच-छह साल बिताए।

बहुत धैर्यवान थे बाबा

राज बहादुर सिंह बताते हैं कि मैं उनके सानिध्य में करीब 1985 में आया। यह उस समय की बात है, जब संस्कार भारती का जन्म नहीं हुआ था। उस समय भारत विकास परिषद समूह गान प्रतियोगिता कराती थी। मैं संयोजक भी था। विजय नगर स्थित इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) कार्यालय में प्रतियोगिता कराई जा रही थी, रसिक गुप्ता आयोजन प्रभारी थे। तब बाबा अपने संगठन व कार्यक्रमों की फिल्में दिखाकर लोगों को जागरूक करते थे। प्रतियोगिता खत्म होने के बाद उन्होंने आयोजन में एक फिल्म दिखाने की बात कही, तो पहचान न होने के कारण मैंने बाबा से इसके लिए मना कर दिया। इतनी बड़ी शख्सियत होने के बाद भी वह इतने धैर्यवान थे कि मना करने पर भी वह शांत रहे और उन्होंने अपनी कार्यशैली से मुझे मजबूर कर दिया कि उनकी फिल्म को मैंने कई जगह प्रदर्शित कराया। कमला नगर स्थित शिशु मंदिर में मैं प्रधानाचार्य था, वहां बाल संगम कार्यक्रम में बाबा ने वक्तव्य दिया था, मैं और कार्यक्रम में मौजूद रही लोग उनकी वक्ताशैली से बेहद प्रभावित हुए। इसके बाद हम जो सृजन भारती संगठन चलाते थे, उसे हमने संस्कार भारती बनने के बाद खत्म कर दिया।