जीवनपर्यंत समाज एवं देश के प्रति समर्पित रहे श्रीकृष्ण राय हृदयेश

जासं गाजीपुर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्रीकृष्ण राय हृदयेश ऐसी विभूतियों में एक थे जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के बाद जीवनपर्यंत समाज एवं देश को समर्पित रहे। साहित्य के इस मौन साधक की 13 जून को पुण्यतिथि है और निश्चित रूप से पूरा जनपद इस मौके पर उनके अभाव को महसूस करेगा। जनपद के कठउत गांव में जन्मे ह्रदयेश का व्यक्तित्व इंद्रधनुषी कहा जा सकता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी समाजसेवी पत्रकार और कवि सभी रूप में उन्होंने पूरी दक्षता से अपने व्यक्तित्व की किरणें बिखेरीं।

By JagranEdited By:
Updated: Sat, 13 Jun 2020 06:05 AM (IST)
जीवनपर्यंत समाज एवं देश के प्रति समर्पित रहे श्रीकृष्ण राय हृदयेश
जीवनपर्यंत समाज एवं देश के प्रति समर्पित रहे श्रीकृष्ण राय हृदयेश

स्वतंत्रता आंदोलन में निभाए थे महत्वपूर्ण भूमिका

विरासत में मिला था जीवन में सादगी का गुण

पुण्यतिथि पर विशेष..

फोटो-26सी।

जासं, गाजीपुर: बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्रीकृष्ण राय हृदयेश ऐसी विभूतियों में एक थे जो स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के बाद जीवनपर्यंत समाज एवं देश के प्रति समर्पित रहे। साहित्य के इस मौन साधक की 13 जून को पुण्यतिथि है और निश्चित रूप से पूरा जनपद इस मौके पर उनके अभाव को महसूस करेगा। जनपद के कठउत गांव में जन्मे ह्रदयेश का व्यक्तित्व इंद्रधनुषी कहा जा सकता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजसेवी, पत्रकार और कवि सभी रूप में उन्होंने पूरी दक्षता से अपने व्यक्तित्व की किरणें बिखेरीं।

योग साधना, अध्यात्म, राजनीति धर्म दर्शन सभी में उन्हें समान दक्षता प्राप्त थी। जीवन में सादगी का गुण पिता से विरासत में मिला था। वह आजीवन अपने पराए के द्वंद से दूर मैं और तू से परे रहे। इनका आवास नवांकुर साहित्यकारों व पीड़ित समुदाय के स्वागत के लिए लालायित रहता था। उनके चरणों में बैठकर आज के अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकार साहित्य जगत में स्थान पा चुके हैं। वह व्यक्ति नहीं स्वयं में एक संस्था थे। महात्मा गांधी के न रहने पर उनकी स्मृति में उन्होंने 1949 में लोक सेवक नायक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया जो तीन दशकों तक पूर्वांचल की सर्वश्रेष्ठ साप्ताहिक पत्रिका रही। उसमें राष्ट्रीय विचारधारा चरित्र निर्माण और सामाजिक संस्थाओं का रचनात्मक हल निकालने वाली रचनाएं प्रकाशित होती थीं। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य किया। नेशनल हेराल्ड पायनियर टाइम्स आफ इंडिया स्टेटमेंट अमृत बाजार पत्रिका लीडर जनवार्ता दैनिक जागरण से निरंतर जुड़े रहे। स्थानीय संवाददाता रहे। उन्होंने चौथे व पांचवें दशक में साहित्यिक गतिविधियों को संपादित करने के लिए सभी मंडल तथा गाजीपुर नागरी प्रचारिणी सभा का गठन किया। उस समय आज की तरह गाजीपुर जनपद में इस तरह की कोई संस्था नहीं थी। जीवन के अंतिम ढलान पर जब अधिकांश व्यक्ति माला जपने लगते हैं उन्होंने विशेष पुरस्कार संस्थान एवं शोध संस्थान की स्थापना करके दूर-दराज के ग्रामीण रचनाकारों को पुन: साहित्य सृजन से जोड़ा। साहित्यकार ऋचा राय ने बताया कि 1940 में प्रकाशित उनकी पंक्तियां 'उसने देखी अपनी भरी जवानी उससे पूछो सागर के पेटे में कितना पानी' हैं। उनकी साहित्यिक यात्रा उनके प्रथम काव्य संग्रह युवक से हुई जब उनकी अवस्था मात्र 24 वर्ष की थी। दूसरा काव्य संग्रह हिमांशु 1940, दीप 1950, महाकाव्य सत्य सत्य प्रकाश नवदीप 1992, मैं बनूगां फूलों की घाटी 1984, मेघदूत 1990, गंगा मुझे पुकारे 1983, लहर लहर लहराए गंगा 1989, संजीवनी 1990, शंखपुष्पी 1990, गजल इंद्रधनुषी आदि महत्वपूर्ण कृतियां हैं। गुटबंदी से दूर जीवन यापन करने वाले थे।

-------- जीवन और दर्शन में गांधीवादी दर्शन को किया आत्मसात

दो अक्टूबर 1929 में गांधीजी का आगमन गाजीपुर लंका मैदान में था। हाफ पैंट व कमीज में हाथ में लाठी लेकर मंच पर स्वयंसेवक के रूप में ह्रदयेशजी गांधीजी के साथ मौजूद रहे। रात्रि विश्राम के समय भी इनकी ड्यूटी गांधीजी के ठहरने के स्थान पर लगाई गई। इस दौरान गांधीजी को निकट से देखने एवं वार्तालाप करने का मौका मिला। गांधीजी के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुए कि जीवन और दर्शन में गांधीवादी दर्शन को आत्मसात किया। स्वयंसेवक तैयार करने के लिए गांव-गांव घूमना और स्वयं को गिरफ्तारी से बचाते गिरफ्तार क्रांतिकारियों के परिवार की सहायता करना उनके जीवन में शामिल हो गया। इसमें स्वराज भवन इलाहाबाद पर धावा बोलने वाले जत्थे का नेतृत्व किया था इस सिलसिले में 26 जुलाई को गिरफ्तार हुए।