World Turtle Day 2022: मेरठ के हस्तिनापुर में कछुआ संरक्षण के लिए 'गंगा मित्र' बने किसान, छोड़ी 90 हेक्टेयर जमीन
World Turtle Day 2022 मेरठ के हस्तिनापुर में कछुआ संरक्षण की पहल बनी क्रांति और गंगा मित्र की भूमिका निभा रहे किसान। कुछआ संरक्षण के लिए किसानों ने स्वयं ही लगभग 90 हेक्टेयर जमीन को छोड दिया और खेती नहीं की।
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मेरठ, जागरण संवाददाता। World Turtle Day 2022 पर्यावरण के प्रहरी कछुओं के संरक्षण के लिए एक क्रांति 'क्रांति धरा' के नाम से प्रसिद्ध मेरठ से उठ रही है। वर्ष 2013 में हस्तिनापुर के मखदूमपुर गंगा घाट से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरु हुआ यह अभियान अब वृहद रूप ले चुका है। कछुआ संरक्षण कार्यक्रम मेरठ से शुरु होकर सात जनपदों में अभियान के रूप में किया जा रहा है। जिसमें स्थानीय किसानों का भरपूर सहयोग मिल रहा है।
कछुआ संरक्षण के लिए किए गए प्रयास अब व्यापक रूप लेता जा रहा है। गंगा में कछुओं की चिंताग्रस्त स्थिति को देखते हुए वर्ष 2013 में मेरठ के मखदूमपुर गंगा घाट से 118 कछुओं को संरक्षित किया गया था। जिन स्थानों पर कछुओं के अंडों की बहुलता में पाए जाते थे‚उन स्थानों पर किसानों ने स्वयं ही लगभग 90 हेक्टेयर जमीन को छोड दिया और खेती नहीं की। किसान गंगा मित्र की भूमिका निभा रहे हैं।
गंगा किनारे हैचरी
वन विभाग व विश्व प्रकृति निधि के संयुक्त प्रयास शुरु किए गए इस अभियान को वृहद रूप देने पर विचार किया गया। अब नौ वर्षो बाद यह अभियान एक मुहिम का रूप ले चुका है। वर्तमान में कछुआ संरक्षण कार्यक्रम मेरठ‚बिजनौर‚मुजफ्फरनगर‚बुलंदशहर‚अमरोहा‚हापुड व संभल में संचालित है। जबकि कछुओं के अंडों को संरक्षित करने के लिए मेरठ‚मुजफ्फरनगर‚बिजनौर व बुलंदशहर में गंगा किनारे हैचरी लगाई गई है। 2013 से अब तक लगभग पांच हजार कछुओं को संरक्षित किया जा चुका है।
पर्यावरण में इसका महत्व समझा
क्षेत्रीय वन अधिकारी नवरतन सिंह ने बताया कि परियोजना में गंगा के तटीय ग्रामों के किसानों का भरपूर सहयोग मिल रहा है। जिससे कछुआ संरक्षण में विश्व प्रकृति निधि व वन विभाग का मनोबल बढता है और कछुओं के संरक्षण को भी बल मिल रहा है। एक पहल जो बन गई क्रांति विश्व प्रकृति निधि भारत के वरिष्ठ समन्वयक संजीव यादव ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कछुआ संरक्षण परियोजना अनूठी व अभूतपूर्व है। वह इसलिए है कि गंगा किनारे बसे लोगों को परियोजना से जोड़ा गया है। लोग पर्यावरण में इसका महत्व समझकर इस कार्यक्रम में काफी रूचि भी ले रहे है और कछुओं के संरक्षण में सहयोग कर रहे है। इसलिए उन्हें गंगा मित्र की संज्ञा दी गई है। उन्होंने बताया कि मखदूमपुर गंगा घाट पर यह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 45 किमी क्षेत्र में शुरु किया गया था। जो अब सात जनपदों में 225 किमी तक फैल गया है।
....और किसानों ने छोड दी खेती की जमीन
अभियान के दौरान यह देखने को मिला कि जानकारी के अभाव में खेती के दौरान कछुओं के अंडे नष्ट हो रहे है। इस पर गंगा नदी किनारे जागरूकता अभियान चलाया गया और ग्रामीणों व किसानों को जलीय जीवों के महत्व समझाते हुए उनके संरक्षण के प्रति प्रेरित किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन स्थानों पर कछुओं के अंडों की बहुलता में पाए जाते थे‚उन स्थानों पर किसानों ने स्वयं ही लगभग 90 हेक्टेयर जमीन को छोड दिया और खेती नहीं की। जिसमें मखदूमपुर‚सिरजेपुर व खरकाली घाट शामिल है। 29 प्रजातियों में से 12 गंगा नदी में वैसे तो विश्व में कछुओं की लगभग 300 प्रजातियां बताई जाती है। लेकिन भारत में कछुओं की 29 प्रजातियां पाई जाती है। जिसमें से उत्तर प्रदेश की विभिन्न नदियों में 15 प्रजातियां मिलती है।
संकट से बचाने की मुहिम
खास बात यह है कि अकेली गंगा नदी में ही 12 प्रजातियां पाई जाती है। इनमें से छह प्रजाति संकटग्रस्ट व अति संकटग्रस्त में शामिल है। जिन्हें बचाने की मुहिम चलाई जा रही है। ऐसे करते है कछुओं को संरक्षित सर्द मौसम में कछुओं के अंडे देने के बाद उन्हें स्थानीय किसानों के सहयोग से हैचरी में संरक्षित किया जाता है। नियत समय पर कछुओं के अंडे से शावक निकलने शुरु हो जाते है। गंगा में पानी बढने से पूर्व इन कछुओं के शावकों को हस्तिनापुर के वानिकी प्रशिक्षण केंद्र में बने अत्याधुनिक तालाब में रखा जाता है। जहां शावकों को नदी जैसा वातावरण देकर उनके घर जैसा एहसास कराया जाता है। विशेषज्ञों द्वारा पानी के तापमान‚भोजन व अन्य जरूरतों का विशेष ध्यान रखा जाता है। कछुओं की संकटग्रस्त प्रजातियां कछुओं की बाटागुर ढोंगोंको‚पंगशुरा स्मिथी‚पंगशुरा टेंटोरिया‚फ्लेविएंटर जैसे संकटग्रस्त प्रजातियां के कछुओं को संरक्षित किया जा रहा है।