बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने भारतीयता के अनुरूप बनाई शिक्षा व्यवस्था, काशी विद्यापीठ ही नहीं बीएचयू की स्थापना में भी योगदान

Birth Anniversary हिंदी भाषा के माध्यम से भारतीयता के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था बनाने में राष्ट्ररत्न बाबू शिव प्रसाद गुप्त (जन्म 28 जून 1883 निधन 24 अप्रैल 1944) की भूमिका अग्रणी है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ही नहीं बीएचयू की स्थापना में भी राष्ट्ररत्न का अविस्मरणीय योगदान है।

By Saurabh ChakravartyEdited By:
Updated: Mon, 28 Jun 2021 11:53 AM (IST)
बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने भारतीयता के अनुरूप बनाई शिक्षा व्यवस्था, काशी विद्यापीठ ही नहीं बीएचयू की स्थापना में भी योगदान
भारतीयता के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था बनाने में राष्ट्ररत्न बाबू शिव प्रसाद गुप्त की भूमिका अग्रणी है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। हिंदी भाषा के माध्यम से भारतीयता के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था बनाने में राष्ट्ररत्न बाबू शिव प्रसाद गुप्त (जन्म : 28 जून 1883, निधन : 24 अप्रैल 1944) की भूमिका अग्रणी है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ही नहीं बीएचयू की स्थापना में भी राष्ट्ररत्न का अविस्मरणीय योगदान है। महात्मा गांधी के अनुयायी बाबू शिव प्रसाद ने राष्ट्रीय चेतना भी जगाने का काम बाखूबी किया।

राष्ट्र रत्न बाबू शिव प्रसाद गुप्त का जन्म 28 जून 1883 में काशी में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की। संस्कृत हिंदी, फारसी भाषा के विद्वान थे। बाबू शिव प्रसाद गुप्त वर्ष 1913-13 में जापान यात्रा के दौरान उन्हाेंने स्वाधीन एशिया की राजधानी में उन्होंने एक ऐसी शिक्षण संस्था देखी जो सरकारी सहायता और हस्तक्षेप से मुक्त रहते हुए स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्रदान कर रही थी। उस दौरान काशी में भी ऐसी संस्था स्थापित करने का उनके मन में विचार आया, जो अपनी भाषा में व बिना सरकारी सहायता से युवकों में चरित्र निर्माण करते हुए देश-प्रेम की भावना भरने में समर्थ हो। इस बीच वर्ष 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ। सरकारी नौकरी, सरकारी शिक्षा का बहिष्कार इस आंदोलन का अंग था। अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए बाबू शिव प्रसाद के अनुकूल माहौल मिल गया। राष्ट्रीय शिक्षा की कल्पना को साकार करने के लिए उन्होंने सबसे पहले डा. भगवान दास के पास गए। पहने उन्होंने इंकार कर दिया। इसे देखते हुए उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा की कार्य योजना महात्मा गांधी के समक्ष रखीं। बापू ने शिव प्रसाद के प्रस्ताव को तत्काल स्वीकृति दे दी। यही नहीं उन्होंने इस संबंध में डा. भगवान दास को पत्र भी लिखा। बापू का पत्र मिलने के बाद डा. भगवान दास भी फौरन तैयार हो गए।

भाई की संपत्ति को दिया दान

बापू व डा. भगवान दास की हरी झंडी मिलने के बाद शिव प्रसाद ने अपनी संपत्ति का मूल्यांकन कराया। उस समय उनकी संपत्ति का आकलन करीब बीस लाख रुपये हुआ। उन्होंने अपने छोटे भाई हरप्रसाद के नाम से एक ट्रस्ट बनाया और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ को संचालित करने के लिए दस लाख रुपये जमा कर दिया। दरअसल उनके भाई हर प्रसाद का बाल्यकाल में ही निधन हो गया था। उन्होंने सोचा कि यदि मेरे भाई जिंदा होते तो आधी संपत्ति के हकदार वह होते। ऐसे में उनकी संपत्ति उनके नाम के ट्रस्ट को दान दे दी तकि प्रतिवर्ष उसके चालीस हजार रुपये के ब्याज से संस्था का संचालन हो सके। यही नहीं उन्होंने चौक स्थित कटरे की आय भी समय-समय पर ट्रस्ट को देते रहे। काशी में भारत माता मंदिर बाबू शिव प्रसाद ही देन है। वह पं. मदनमोहन मालवीय को पिता तुल्य मानते थे। उनका निधन 24 अप्रैल 1944 को हुआ।