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Bhopal Gas Tragedy: 38 साल बीत गए, भोपाल गैस त्रासदी से आज भी नहीं भरे लोगों के जख्म

आज दो और तीन दिसंबर की उस भयावह रात को 38 साल हो गए हैं जब दुनिया की सबसे भीषण रासायनिक औद्योगिक आपदा भोपाल गैस त्रासदी 1984 ने कुछ ही घंटों में हजारों लोगों की जान ले ली और हजारों जानवरों और पक्षियों को निगल लिया था।

By Devshanker ChovdharyEdited By: Updated: Sat, 03 Dec 2022 08:19 AM (IST)
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38 साल बीत जाने के बाद भी लोगों को प्रभावित कर रही भोपाल गैस त्रासदी।
भोपाल, आनलाइन डेस्क। दो और तीन दिसंबर की भयावह रात के 38 साल बीत जाने के बाद भी लोगों के मन से वो जख्म नहीं निकल पाए हैं। दुनिया की सबसे भीषण रासायनिक औद्योगिक आपदा 'भोपाल गैस त्रासदी 1984' ने कुछ ही घंटों में हजारों लोगों की जान ले ली और हजारों जानवरों और पक्षियों को निगल लिया था। साथ ही जिसने जन्म तक नहीं लिया था उसके लिए भी कहर बन गया। त्रासदी से प्रभावित हजारों-लाखों लोग आज भी लंबी बीमारी और असाध्य रोगों से पीड़ित होकर अस्पतालों का चक्कर लगा रहे हैं।

कुछ ही घंटों में हजारों लोगों की हो गई थी मौत

घनी झाड़ियों से घिरे मौके पर आम जनता के लिए निषिद्ध क्षेत्र के रूप में एक चेतावनी बोर्ड लगाया गया है। एकमात्र इमारत तीन मंजिला संरचना है, जो यूनियन कार्बाइड कॉपोर्रेशन के वरिष्ठ कर्मचारियों के कार्यालय और निवास के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जो अभी भी बेहतर स्थिति में है। दूसरी इमारतें जर्जर हो चुकी हैं। यहां असामाजिक तत्वों की भी आवाजाही होती रहती है। जानकारी के अनुसार, लोहे के तीन टैंकों में से एक (टैंक- ई 610), जिसकी खराबी के कारण जहरीली एमआईसी गैस का रिसाव हुआ था और रिसाव के कुछ ही घंटों के भीतर लगभग तीन हजार लोगों की मौत हो गई थी, परिसर के भीतर सड़क के किनारे पड़ा हुआ है। हादसे के दौरान भूमिगत टैंक ए 610 में लगभग 42 टन एमआईसी गैस थी।

भोपाल गैस त्रासदी से लोग अभी भी प्रभावित

मध्य प्रदेश सरकार के भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास (BGTRR) के अनुसार, 1,20,000 से अधिक लोग पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं और सैकड़ों लोग कैंसर, फेफड़ों की समस्याओं, गुर्दे की विफलता और प्रतिरक्षा संबंधी क्षति के कारण असामयिक मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। BGTRR भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की देखरेख में काम करता है। रिपोर्टों ने यह भी सुझाव दिया कि हजारों बच्चे जन्म दोष के साथ पैदा हो रहे हैं। शहर के बीचो बीच एक वैश्विक जहरीला हाटस्पाट मौजूद है, जिसने दो लाख से अधिक लोगों के लिए मिट्टी और भूजल को दूषित कर दिया है। 2016-17 में जारी BMHRC की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया कि 1998-2016 के बीच की अवधि में लगभग 50.4 प्रतिशत गैस त्रासदी का शिकार हुए व्यक्ति हृदय संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे और 59.6 प्रतिशत हृदय संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे।

सटीक आंकड़ों की आज भी दरकार

इस गैस त्रासदी से होने वाली मौतों की संख्या में अंतर भी देखने को मिली है। अलग-अलग समय पर एजेंसियों द्वारा किए गए सर्वेक्षणों ने हताहतों का अलग-अलग आंकड़ा दिया है। कुछ पहले की रिपोर्टों ने बताया था कि हताहतों की संख्या 5000-6000 के बीच थी, जबकि कुछ अन्य रिपोर्टों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 15,000 हो गई है। कुछ अन्य रिपोर्टों में दावा किया गया है कि मरने वालों की संख्या एक लाख से अधिक हो सकती है। हालांकि, हताहतों की संख्या के बारे में कोई सटीक डेटा नहीं है। ICMR की रिपोर्ट ने 1984-1993 के बीच किए गए अपने सर्वेक्षण में 1994 तक आपदा के कारण 9,667 मौतों का उल्लेख किया है। 1994 से आगे का सांख्यिकीय अनुमान 2009 तक 23,000 का आंकड़ा बताता है। हालांकि सरकारी आंकड़ों में केवल 3000 लोगों के मारे जाने की बात कही गई।

आज भी जारी है कानूनी लड़ाई

इसके अलावा, न्याय और मुआवजे की तलाश के लिए कानूनी लड़ाई अभी तक जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल सितंबर में केंद्र से अतिरिक्त मुआवजे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। रिपोर्टों के अनुसार, केंद्र ने बताया कि वह गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अमेरिका आधारित यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त धन के रूप में 7,844 करोड़ रुपये की मांग करने वाली अपनी याचिका को आगे बढ़ाएगा। मामले की सुनवाई अब 10 जनवरी, 2023 को होगी।

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