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'जिंदगी तो है... पर जिंदा नहीं', पूर्व पार्षद बोले- कंपनी दे चुकी हर्जाना, भारत सरकार पर करना था केस तो मिलता सही मुआवजा

Bhopal gas tragedy anniversary Special 03 दिसंबर 1984 की वह काली रात आज भी भूलाए नहीं भूलता...उस रात ने सब कुछ छीन लिया...यहां तक कि मेरे शरीर को ही मुझ पर बोझ बना दिया। यह शब्द नहीं दर्द हैं उन लोगों के जिन्होंने 39 साल पहले अपना सब कुछ खो दिया। आज इनके पास कुछ नहीं है। जो शरीर है वह भी किसी काम का नहीं रहा।

By Jagran NewsEdited By: Deepti MishraUpdated: Sat, 02 Dec 2023 08:54 PM (IST)
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Bhopal gas tragedy: पीड़ितों का दर्द- जिंदगी को धुएं ने किया बर्बाद, अब शरीर ही मुझ पर बोझ है
 डिजिटल डेस्‍क, भोपाल। 03 दिसंबर 1984 की वह काली रात आज भी भूलाए नहीं भूलता...उस रात ने सब कुछ छीन लिया...यहां तक कि मेरे शरीर को ही मुझ पर बोझ बना दिया। यह शब्द नहीं दर्द हैं उन लोगों के, जिन्होंने 39 साल पहले अपना सब कुछ खो दिया। अपनी जीती-जागती जिंदगी को धुएं में उड़ता देखा।

आज इनके पास कुछ नहीं है। जो शरीर है, वह भी किसी काम का नहीं रहा। कमरे में टहलने पर भी दम फूलने लगता है। रक्तचाप घटने का नाम नहीं लेता। कभी घबराहट होती है तो कभी आंखों से पानी आने लगता है। इनका दर्द तब और बढ़ जाता है, जब इलाज के लिए भी लंबी लाइन में इंतजार करना पड़ता है। हालांकि, दर्द तब भी खत्म नहीं होता, क्योंकि डॉक्टर भी एक गोली देकर घर भेज देते हैं।

आज यूनियन कार्बाइड कारखाने से चंद कदम की दूरी पर बसे जेपी नगर के सैकड़ों लोग कुछ ऐसी ही जिंदगी जीने को मजबूर हैं। ये सभी जिंदा तो हैं, लेकिन इनकी जिंदगी घिसट रही है।

चार कदम चलना भी मुश्किल

70 साल की नफीसा बी घर में ही छोटी सी दुकान खोलकर खर्च चला रही हैं। जहरीली गैस ने पति मुन्ने खां, बेटे शहजाद, एजाज और बेटी नसीम आरा को लील लिया था। अब चार कदम चलने में ही उनका दम फूलने लगता है। गैस राहत के नाम पर 1000 और वृद्धा पेंशन के 200 रुपए मिलते हैं। इससे घर नहीं चल पता है, इसलिए दुकान खोलकर किसी तरह गुजारा कर रही हैं।

लाशों के ढेर में जिंदा थी भांजी

66 वर्षीय अब्दुल हफीज उर्फ मामू बात करते-करते खांसने लगते हैं। पहले पुताई का काम करते थे। आज हाथ-पैर हिलाना भी मुश्किल हो गया है। उस रात को याद कर बोले कि तब गैस के संपर्क में आकर 14 वर्षीय भांजी नसीम की हालत बिगड़ गई थी। हमीदिया अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था। मैं शवों के ढेर से उसे उठाकर लाया था।

अम्मी-अम्मी कहते हुए गोद में बेटे ने दम तोड़ दिया था

घर में स्टेशनरी की दुकान चलाकर खर्च चला रहीं 60 वर्षीय फरीदाबी आज कई गंभीर बीमारियों से जूझ रही हैं। वह बताती हैं कि 3 दिसंबर को सबसे पहले उनके इकलौते साढ़े आठ साल के बेटे शाहिद की हालत बिगड़ी थी। अम्मी-अम्मी कहते हुए उसने गोद में ही दम तोड़ दिया था।

8 दिसंबर को उनकी सास बिसमिल्लाबी की भी मौत हो गई थी। गैस के असर से उनके पति सलीम खान को भी कैंसर हो गया था। 10 साल पहले उनकी भी मौत हो गई। वह भी कई बीमारियों से जूझ रही हैं।

आसपास के लोग तोड़ चुके थे दम

यहां रहने वाले पूर्व पार्षद नाथूराम सोनी बताते हैं कि उस दिन वे पत्नी और बच्चों को हाथ ठेले पर बिठाकर पीजीबीटी कॉलेज के मैदान तक ले गए थे। उसके बाद वह मुंह पर गीला कपड़ा लपेटकर घर वापस लौटे तो देखा कि आसपास के घरों में रहने वाले लोग गैस की चपेट में आकर दम तोड़ चुके थे।

उन्होंने कहा कि गैस पीड़तों के हक में लड़ने वालों ने यूनियन कार्बाइड के खिलाफ केस लगाया था। कंपनी अपनी हैसियत के हिसाब से मुआवजा दे चुकी है। संगठनों को भारत सरकार के खिलाफ केस लगाना था तो सही न्याय और मुआवजा मिलता।

इलाज के नाम पर भोपाल मेमोरियल अस्पताल तो खोल दिया गया है, लेकिन वहां इलाज के लिए सिर्फ तारीख मिलती है। मजबूरी में लोगों को अन्य अस्पतालों में महंगा इलाज करवाना पड़ रहा है।

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