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भोपाल: अशुद्ध जल भी बनेगा ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का माध्यम, विज्ञानियों ने किया शोध

वर्तमान समय में जब कई राज्य गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं ऐसे में स्वच्छ जल का उपयोग हाइड्रोजन उत्पादन के लिए करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। यूरिया जल प्रदूषण का बड़ा कारण भी बन चुका है। इसी को ध्यान में रखकर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आइसर) के विज्ञानियों ने इसका विकल्प ढूंढ़ लिया है।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Mon, 16 Sep 2024 07:43 PM (IST)
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आईसर के रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. शंकर चाकमा और शोधार्थी प्राची उपाध्याय प्रयोगशाला में शोध करते हुए

अंजली राय, भोपाल। विश्वभर में आज स्वच्छ और सतत ऊर्जा के लिए हाइड्रोजन ऊर्जा को क्रांतिकारी समाधान के रूप में देखा जा रहा है, जिसे "ग्रीन हाइड्रोजन" के नाम से जाना जाता है। हालांकि इसके व्यापक उपयोग में सबसे बड़ी बाधा है स्वच्छ जल, क्योंकि हाइड्रोजन उत्पादन के लिए साफ और स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है।

यहां के रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. शंकर चाकमा और शोधार्थी प्राची उपाध्याय ने एक ऐसी तकनीक की खोज की है, जिससे अशुद्ध जल में मौजूद यूरिया का उपयोग करके हाइड्रोजन गैस का उत्पादन किया जा सकता है। इससे न केवल हमें स्वच्छ ऊर्जा मिलेगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी काम होगा।

दरअसल, इस तकनीक को इसलिए भी और महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि अभी कृषि कार्य से लेकर उद्योगों आदि में यूरिया का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में यह यूरिया जल प्रदूषण का बड़ा कारण भी बन चुका है। अब इस नई तकनीक से ऊर्जा मिलने के साथ हमें इस बड़ी समस्या से भी निजात मिल सकेगी।

ऐसे काम करती है तकनीक

इस तकनीक में यूरिया को एनोड पर सरल अणुओं जैसे नाइट्रोजन (एनटू) और कार्बन डाइआक्साइड (सीओटू) में तोड़ा जाता है, जबकि कैथोड पर हाइड्रोजन (एचटू) गैस उत्पन्न होती है। यह विधि उन इलाकों में विशेष रूप से लाभदायक है, जहां जल संकट बना हुआ है क्योंकि इसमें स्वच्छ पानी की जरूरत नहीं होती।

इस तकनीक में एक विशेष प्रकार के इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट निकेल (एनआइ) और आयरन (एफई) से बने लेयर्ड डबल हाइड्रोक्साइड (एनएफई एलडीएच) का उपयोग किया है, जो अन्य कैटेलिस्ट की तुलना में अधिक प्रभावी और स्थायी है।

आयरन आयन की मौजूदगी चार्ज ट्रांसफर को आसान बनाती है और कैटेलिस्ट की सतह को खराब होने से बचाती है। यह अनुसंधान अंतरराष्ट्रीय जर्नल हाइड्रोजन ऊर्जा पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। इस शोध को पूरा करने में विज्ञानियों को लगभग दो साल का समय लगा।

अब यह कदम जरूरी

डा. चाकमा ने बताया कि सरकार और उद्योगों को इस तकनीक को अपनाने और बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए।अनुसंधान और विकास में निवेश करके इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है। आम जनता को भी स्वच्छ ऊर्जा के महत्व को समझना और उसका समर्थन करना चाहिए।

अशुद्ध जल का सदुपयोग

यह तकनीक विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अशुद्ध जल में मौजूद यूरिया का उपयोग करती है। यूरिया का उपयोग कृषि के लिए व्यापक रूप से किया जाता है और यह कई उद्योगों द्वारा भी उपयोग किया जाता है।इससे न केवल स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन होगा ,बल्कि जल प्रदूषण की समस्या को भी कम किया जा सकेगा।अशुद्ध जल का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है और इस तकनीक से उसका समाधान संभव है। यह ऊर्जा का सस्ता स्रोत भी है।

आम जनता के लिए फायदे

जल संरक्षण: स्वच्छ पानी की आवश्यकता को कम करके यह तकनीक पानी बचाने में सहायक है, जो जलसंकट से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा: यूरिया के उपयोग से हाइड्रोजन उत्पादन सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल है, जिससे आम जनता को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त हो सकती है।

अशुद्ध जल का उपयोग: यूरिया मुख्यतः अपशिष्ट जल में पाया जाता है, जिससे यह तकनीक न केवल जल का सदुपयोग करती है, बल्कि प्रदूषण भी कम करती है।

स्थिरता और दीर्घकालिक समाधान: यह विधि सतत ऊर्जा स्रोतों के विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा सुनिश्चित करेगी।

यह शोध बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन उत्पादन के लिए नए रास्ते खोलती है। जल संकट के इस दौर में स्वच्छ पानी पर निर्भरता कम करने और अशुद्ध जल का सदुपयोग करने की इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया जाना चाहिए। इसके जरिए न केवल स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन संभव होगा, बल्कि जल संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है।

डा. शंकर चाकमा, विभागाध्यक्ष, रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग,आइसर

नवीनीकरण व स्थायी ऊर्जा, बायो फ्यूल, ग्रीन हाइड्रोजन और सोलर एनर्जी को लेकर एक सेंटर खोलने की योजना है। इसके लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। ऊर्जा के अलग-अलग स्त्रोत पर संस्थान के विज्ञानी शोध कर रहे हैं। ग्रीन हाइड्रोजन पर यह शोध काफी कारगर साबित होगा।

प्रो. गोबर्धन दास, डायरेक्टर,आइसर

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