MP Politics: कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में भाजपा कर रही घेराबंदी, कार्यकर्ताओं से बात करने पहुंचे गिरिराज
MP Politics भाजपा हाईकमान छिंदवाड़ा में उन कमजोर कड़ियों का अध्ययन करा रहा है जिससे कमल नाथ को शिकस्त दी जा सके। 25 वर्ष पहले सुंदरलाल पटवा ने यहां कमल खिलाया था उसके बाद भाजपा को जीत नहीं मिल सकी है।
By Sachin Kumar MishraEdited By: Updated: Fri, 19 Aug 2022 09:18 PM (IST)
भोपाल, धनंजय प्रताप सिंह। Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गजों को उनके गढ़ में घेरने की भाजपा (BJP) की रणनीति में अब निशाने पर कमल नाथ (Kamal Nath) हैं। हाईकमान छिंदवाड़ा (Chhindwara) में उन कमजोर कड़ियों का अध्ययन करा रहा है, जिससे कमल नाथ को शिकस्त दी जा सके। 25 वर्ष पहले सुंदरलाल पटवा ने यहां कमल खिलाया था, उसके बाद भाजपा को जीत नहीं मिल सकी है। 2004 के लोकसभा चुनाव में प्रहलाद पटेल ने ताल ठोकी थी, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीटें भाजपा के खाते में गई, लेकिन छिंदवाड़ा कमल नाथ का अभेद्य किला बना रहा। तब उनके बेटे नकुल नाथ ने यहां से जीत दर्ज की थी।
बनी ये रणनीति रणनीति है कि कमल नाथ को 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके गढ़ तक ही सीमित कर दिया जाए, ताकि वे प्रदेश में कांग्रेस के प्रचार के लिए भी वक्त न निकाल पाएं। यही वजह है कि पार्टी ने दो वर्ष पहले से ही लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने देश की 156 ऐसी संसदीय सीटों को चिह्नित किया है, जो बेहद कमजोर हैं और पार्टी लंबे समय से चुनाव नहीं जीत पाई है। इसमें मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट भी शामिल है।
कार्यकर्ताओं से बात करने पहुंचे गिरिराज2019 के चुनाव में भाजपा ने आदिवासी चेहरा नत्थन शाह को टिकट दिया तो हार का अंतर 37 हजार536 पर आया। अब भाजपा यहां की कमजोर कड़ी का अध्ययन कर रही है कि आखिर पराजय का मुख्य कारण क्या है, समस्या कहां है? इन तथ्यों को जानने के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह दो दिनों तक छिंदवाड़ा में कार्यकर्ताओं से बात करेंगे। इसकी रिपोर्ट आने के बाद पार्टी रणनीति बनाएगी। भाजपा ने 2024 में इस सीट को जीतने का लक्ष्य रखा है।
आदिवासी सीटों पर भाजपा की नजर द्रौपदी मुर्मु के राष्ट्रपति बनने के बाद भाजपा को उन राज्यों से उम्मीदें बढ़ गई हैं, जहां आदिवासी सीटों की खासी संख्या है या कह सकते हैं कि जहां कई सीटों पर आदिवासी समुदाय का प्रभाव है। ऐसे राज्यों में मध्य प्रदेश भी शुमार है। 2018 में मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय के मुंह फेर लेने से भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी। अब बदली हुई परिस्थितियों में पार्टी आदिवासी समुदाय का एक तरफा समर्थन हासिल करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
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