Mission Cheetah: 75 साल बाद भारत में चीतों की वापसी, जानें कहां से आया शब्द चीता
Cheetah in MP प्रधानमंत्री शनिवार को अपने 72वें जन्मदिन के अवसर पर कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए जा रहे चीतों को छोड़ेंगे। ग्वालियर चंबल अंचल के लिए यह एक बड़ी सौगात है और यहां के लोग प्रधानमंत्री के आभारी है कि उन्होंने इसके लिए इस स्थान को चुना।
By Babita KashyapEdited By: Updated: Sat, 17 Sep 2022 10:33 AM (IST)
ग्वालियर, बलराम सोनी। Mission Cheetah: देश ने हाल ही में आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया। इसके ठीक एक महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narender Modi) ने 75 साल बाद चीता वापसी के जरिए देशवासियों को गौरवान्वित करने का एक और मौका दिया है। प्रधानमंत्री शनिवार को अपने 72वें जन्मदिन के मौके पर देश के बीचों-बीच स्थित कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए जा रहे चीतों को छोड़ेंगे।
ग्वालियर चंबल अंचल के लिए यह एक बड़ी सौगात है और यहां के लोग प्रधानमंत्री के आभारी है कि उन्होंने इसके लिए इस स्थान को चुना। क्योंकि आज भी यह पूरा इलाका ऊबड़-खाबड़ और डकैतों के नाम से जाना जाता है। चीते न केवल इस क्षेत्र की पहचान बदल देंगे बल्कि आदिवासी बहुल श्योपुर क्षेत्र में रोजगार और पर्यटन उद्योग को नई ऊंचाइयां देंगे।
कैसे हुई चीता शब्द की उत्पत्ति
चीतों की उत्पत्ति को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है, लेकिन चीता शब्द संस्कृत शब्द चित्रक से आया है, जिसका मतलब होता है चित्तीदार। भोपाल और गांधीनगर में नवपाषाणकालीन गुफा चित्रों में भी चीते देखे जाते हैं। द एंड ऑफ ए ट्रेजडी चीता इन इंडिया के अनुसार, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह द्वारा लिखित एक पुस्तक, मुगल सम्राट अकबर, जिन्होंने 1556 से 1605 तक शासन किया था, के पास 1,000 चीते थे।इनका उपयोग काले हिरण और चिंकारा के शिकार के लिए किया जाता था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक, भारतीय चीतों की आबादी सैकड़ों तक गिर गई थी। 1918 और 1945 के बीच लगभग 200 चीतों का आयात किया गया था। भारत में चीतों को आखिरी बार 1947 में देखा गया था। देश तब से उनके वापस आने का इंतजार कर रहा था।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।मानव पर हमले का अब तक कोई प्रमाण नहीं
यह बिल्ली परिवार का एकमात्र सदस्य है जो मनुष्यों के लिए घातक नहीं है। जानकारों के मुताबिक अब तक इंसानों पर चीते के हमले का एक भी मामला सामने नहीं आया है। यही कारण है कि ईरान की खाड़ी देश में इसे पालतू जानवर के रूप में देखा जाता है।इन चीतों के आने से देश में बिल्ली प्रजाति के सभी पांच सदस्य भारत में होंगे। इससे पहले गुजरात एशियाई शेर और मध्य प्रदेश बाघों के लिए जाना जाता था। देश में क्लाउडेड तेंदुआ और बर्फीले क्षेत्र में पाया जाने वाला तेंदुआ पाया जाता है।पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
कुनो नेशनल पार्क में तेंदुओं के आने के बाद श्योपुर, शिवपुरी और राजस्थान में रणथंभौर के रूप में नया टूरिस्ट सर्किट बनकर तैयार हो जाएगा। पर्यटकों को 253 किमी. सर्किट में चीते और बाघ नजर आएंगे, जो पर्यटन उद्योग को नई ऊंचाइयां देंगे।चीतों से जुड़े कुछ तथ्य
- दुनिया में 7,100 चीतों का अनुमान है
- एक स्वस्थ चीता 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है
- 1952 में भारत में चीतों को विलुप्त घोषित किया गया था
- देश में 12,852 तेंदुए हैं जो बिग कैट फैमिली की प्रजातियों में सबसे ज्यादा हैं।
- 1972 में, देश में चीतों को फिर से बसाने के लिए पहला वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम बनाया गया था।
- 1985 में, भारत के वन्यजीवों द्वारा ईरान से चीतों को लाने की कवायद की गई, लेकिन यह परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई।
- चीता परियोजना को 2008 में पुर्नोत्थान किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी