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छिंदवाड़ाः रहस्य-रोमांच संग प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है पातालकोट, जानें कैसे इस आलौकिक पर्यटन स्थल पर पहुंचें

पातालकोट में जनजातीय जीवनशैली से परिचित होने के साथ आप स्थानीय भोजन का लुत्फ भी ले सकते हैं। यहां के सुरम्य गांवों में जनजातीय भोजन का अनुभव ही अलग होता है। गांवों में घूमते समय ग्रामीण आपको घर में बना भोजन भी परोसते हैं।

By Vijay KumarEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2022 06:39 PM (IST)
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ऊंची पहाड़ियों के बीच सूर्योदय और सूर्यास्त देखना भी अद्भुत अनुभूति है।
आशीष मिश्रा, छिंदवाड़ाः कहीं घूमने का इरादा है तो एक बार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के तामिया ब्लाक स्थित पातालकोट की सैर अवश्य करें। रहस्य, रोमांच के साथ यह पर्यटन स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है। इसे लेकर कई मान्यताएं हैं। साहसिक पर्यटन के शौकीन लोग यहां एडवेंचर स्पोर्ट्स भी कर सकते हैं। भारिया और गोंड जनजाति बहुल पातालकोट घाटी 79 किमी क्षेत्र में फैली हुई है। समुद्र तल से 2750-3,250 फीट की औसत ऊंचाई पर बसा यह क्षेत्र छिंदवाड़ा से 78 किलोमीटर दूर स्थित है। गर्मी और मानसून का मौसम आगंतुकों के लिए बेहतर है।

जनजातीय जीवनशैली का अनुभवः

पातालकोट में आकर्षण का केंद्र यहां की जनजातीय जीवन शैली भी है। ये 21 गांवों का समूह है जो ऊपर से नीचे के क्रम में बसे हुए हैं। जैसे- जैसे आप नीचे उतरते हैं, रास्ते में गांव पड़ते हैं। इन गांवों में आप भ्रमण कर जनजातीय जीवनशैली देख सकते हैं। समाजसेवी पवन श्रीवास्तव ने बताया कि कुछ वर्ष पहले तक यह एक ऐसी दुनिया थी जिस पर बाहर का कोई प्रभाव नहीं था। यह ताजगी औऱ जनजातीय जीवन का मूलरूप अब भी महसूस किया जा सकता है। पातालकोट में आखिरी गांव रातेड़ है। यहां को लेकर कई मिथक भी हैं जैसे कि यहां दिन में धूप नहीं आती। हालांकि सत्य यह है कि रातेड़ गांव में पहाड़ी और घने पेड़-पौधे होने के कारण दिन में भी शाम का अहसास होता है। वहीं पातालकोट की गहराई को लेकर भी कई किवदंतियां हैं। एक मान्यता है कि माता सीता इसी स्थान से धरती में समा गई थीं। यह भी मान्यता है कि अहिरावण के चंगुल से भगवान राम और लक्ष्मण को बचाने हनुमान जी इसी रास्ते से पाताललोक गए थे।

लीजिए स्थानीय पकवानों का स्वादः

पातालकोट में जनजातीय जीवनशैली से परिचित होने के साथ आप स्थानीय भोजन का लुत्फ भी ले सकते हैं। यहां के सुरम्य गांवों में जनजातीय भोजन का अनुभव ही अलग होता है। गांवों में घूमते समय ग्रामीण आपको घर में बना भोजन भी परोसते हैं। इसमें कोदू कुटकी की दाल, महुआ की खीर, बाजरे की रोटी, मक्के की खीर और सरसों का साग जैसे व्यंजन हैं जिनका स्थानीय मसालों के साथ स्वाद अलग ही अहसास कराता है। पातालकोट की रसोई में भी यह पकवान उलब्ध रहते हैं।

एडवेंचर स्पोटर्स का भी अवसरः

यहां एडवेंचर स्पोर्ट्स भी होते हैं। राक क्लाइंबिंग, ट्रेकिंग औऱ वाटर स्पोर्ट्स की व्यवस्था यहां रहती है। दिसंबर में यहां उत्सव का आयोजन भी किया जाता रहा है जो दो वर्ष से कोरोना महामारी के कारण बंद है। इस वर्ष इसके आरंभ होने की संभावना है। इसमें पैराग्लाइडिंग और बर्ड वाचिंग भी होती है। वर्ष 2009 में जिला प्रशासन और जिला ओलिंपिक एसोसिएशन के संयुक्त प्रयास से आदिवासी युवाओं को एडवेंचर स्पोटर्स से जोड़कर रोजगार दिलाने का काम शुरू हुआ। जिसमें 3,000 जनजातीय युवाओं को पैराग्लाइडिंग, राक क्लाइंबिंग, ट्रेकिंग, पक्षी देखने और वाटर स्पोर्ट्स जैसी साहसिक गतिविधियों में प्रशिक्षित किया गया था।

व्यू प्वाइंट से देखिए सूर्यादय और सूर्यास्तः

यहां आने वाले पर्यटकों के लिए ऊंची पहाड़ियों के बीच सूर्योदय और सूर्यास्त देखना भी अद्भुत अनुभूति है। व्यू प्वाइंट नामक स्थान से सूर्य की लालिमा जब पहाड़ियों पर पड़ती है तो अलग ही दृश्य बनता है। यहां रुकने के लिए होटल हैं। सरकारी गेस्ट हाउस भी है। अभी यहां होम स्टे की संस्कृति नहीं विकसित हुई है।

कैसे पहुंचें पातालकोटः

सड़क या रेल मार्ग द्वारा छिंदवाड़ा पहुंचा जा सकता है। यहां से निकटतम हवाई अड्डा नागपुर में है। छिंदवाड़ा से नागपुर की दूरी 125 किलोमीटर है। जबलपुर (दूरी 215 किलोमीटर) और भोपाल (दूरी 286 किलोमीटर) से सड़क मार्ग से भी छिंदवाड़ा और वहां से पातालकोट पहुंचा जा सकता है। इन शहरों से टैक्सियां और बसें भी आसानी से उपलब्ध हैं।

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