Move to Jagran APP

'समानता की बातें करने से कुछ नहीं होता', MP हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा- अब तक SC-ST वर्ग से कोई नहीं बना जज

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने एक अहम मुद्दे की ओर सबका ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि कोर्ट के गठन के 68 वर्ष में एससी या एसटी वर्ग का कोई व्यक्ति न्यायाधीश नहीं बन सका। उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों हुआ यह मुझे नहीं पता जबकि ऐसे व्यक्ति थे जो न्यायाधीश बन सकते थे लेकिन नहीं बने।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Sat, 16 Nov 2024 11:27 PM (IST)
Hero Image
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कई व्यक्ति योग्य थे, फिर भी जज नहीं बन पाए। (File Image)
जेएनएन, विदिशा। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने शनिवार को कहा कि प्रदेश में हाईकोर्ट का गठन वर्ष 1956 में हुआ था। 68 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन अब तक यहां एससी या एसटी वर्ग का कोई व्यक्ति न्यायाधीश नहीं बन सका।

उन्होंने कहा, 'ऐसा क्यों हुआ, यह मुझे नहीं पता, जबकि ऐसे व्यक्ति थे, जो न्यायाधीश बन सकते थे, लेकिन नहीं बने तो कोई वजह होगी। आज जब हम समानता की बात करते हैं तो हमें फिर सोचने को जरूरत है कि ऐसा क्यों हो रहा है।' अधिवक्ता स्व. राजकुमार जैन की स्मृति में आयोजित सेमिनार में सामाजिक न्याय विषय पर बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केवल समानता की बातें करने से कुछ नहीं होगा। समानता के साथ बंधुत्व की भावना भी जरूरी है।

'न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति में नियम सख्त'

उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में आज भी न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति में कुछ नियम इतने सख्त हैं कि उन्हें पूरा करना कई लोगों के लिए मुश्किल होता है। इसी के चलते प्रदेश में जजों के एसटी वर्ग के 109 पद रिक्त पड़े हैं। इस वर्ग के विद्यार्थी कड़े नियमों को पूरा नहीं कर पाते हैं। इन स्थितियों को दूर करने के लिए यदि हम उनकी सहायता करेंगे तो वे भी आगे बढ़ पाएंगे।

शिक्षा की कमी है अपराध का बड़ा कारण

उन्होंने यह भी कहा कि अपराध घटित होने के पीछे सबसे बड़ा कारण शिक्षा का न होना है। जैसे-जैसे शिक्षा मिलनी शुरू होगी, वैसे-वैसे अपराध कम होते जाएंगे। इसी आयोजन में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधिपति जेके माहेश्वरी ने कहा कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की संख्या में वृद्धि हुई है। इन अपराधों से बचने के लिए महिलाओं को शिक्षित और आर्थिक रूप से मजबूत बनना पड़ेगा। हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति क्या होनी चाहिए थी और क्या हो गई है, ये किसी से छिपी नहीं है। यह सब हमारी विचार प्रक्रिया में भेदभाव आने के कारण हुआ।

उन्होंने संविधान के विभिन्न आर्टिकल का उदाहरण देते कहा कि स्वतंत्रता और सम्मान महिलाओं का अधिकार है। वे महिलाओं के संबंध में न्याय प्रक्रिया को चार भागों में बांटते हैं, जिनमें प्रगतिशील, सुरक्षात्मक, दंडात्मक और पुनर्वास शामिल है। इन चारों क्षेत्रों में समान रूप से काम करने की जरूरत है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।