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इस शिव मंदिर को लेकर जो प्रमाण मौजूद हैं उससे यह दुनिया का अनूठा स्मारक बना हुआ है

आस्था के कारण यहां वर्षभर श्रद्धालु शिवलिंग का पूजन करने आते हैं। महाशिवरात्रि व मकर संक्रांति पर विशेष मेला लगता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने उमड़ते हैं। पुरातत्वीय प्रमाणों के अनुसार मालवा के शासक परमारवंशीय राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया था।

By Priti JhaEdited By: Updated: Mon, 28 Feb 2022 04:09 PM (IST)
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भोजपुर शिव मंदिर के इन प्रमाणों के कारण यह है दुनिया का अनूठा स्मारक

रायसेन, जेएनएन । मप्र की राजधानी भोपाल से 30 किमी दूर स्थापित भोजपुर शिव मंदिर को लेकर जो प्रमाण मौजूद हैं उससे यह दुनिया का अनूठा स्मारक बना हुआ है। यह राष्ट्रीय महत्व का पुरातत्व संरक्षित स्मारक है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित चमकदार बलुआ पत्थर से निर्मित 2.03 मीटर ऊंचा शिवलिंग है जो विश्व में 11वीं शताब्दी की प्राचीनता में कहीं नहीं है। इसे विश्व धरोहर में शामिल करने मप्र पुरातत्व विभाग ने यूनेस्को को प्रस्ताव भेजा है। मंदिर के बाहर लगे पुरातत्त्व विभाग के शिलालेख अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मंदिरों में सबसे ऊंचा एवं विशालतम शिवलिंग है। इस मन्दिर का प्रवेशद्वार भी किसी हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है।

मालूम हो कि विश्व संरक्षित धरोहर में शामिल करने के लिए यूनेस्को के पास प्रस्ताव विचाराधीन है। आस्था के कारण यहां वर्षभर श्रद्धालु शिवलिंग का पूजन करने आते हैं। महाशिवरात्रि व मकर संक्रांति पर विशेष मेला लगता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने उमड़ते हैं। पुरातत्वीय प्रमाणों के अनुसार मालवा के शासक परमारवंशीय राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया था। किन्ही कारणों से शिखर निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। लेकिन मंदिर निर्माण की अद्भुत कला के कारण यह दुनिया का अजूबा स्मारक माना जाता है।

जानकारी के अनुसार मंदिर निर्माण को लेकर यहां चट्टानों पर रेखाचित्र बने हुए हैं जो कि दुनिया के किसी भी प्राचीन मंदिरों में नहीं हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि निर्माण के निर्माणकर्ता राजा भोज कुशल वास्तुशिल्पी थे। रेखाचित्रों के माध्यम से मंदिर में उपयोग होने वाले पत्थरों की कटाई व जोड़ इत्यादि बनाए गए हैं। इसके निर्माण में करीब 1200 कारीगर लगे थे। 1010 से 1055 ईसवी के बीच मंदिर का निर्माण हुआ है। मंदिर निर्माण करने वाले मुख्य कारीगर अनंत ध्वज का नाम पत्थर में उकेरा गया है। यहां पांच विशाल मंदिर बनाने की योजना थी। जिसमें से तीन भोजपुर शिव मंदिर, पीछे जैन मंदिर, मेंदुआ मंदिर का निर्माण किया और अन्य दो मंदिरों के निर्माण की योजना रेखाचित्रों में मिलती है।

जानकारी के अनुसार मंदिर का निर्माण 106 फीट लंबे, 77 फीट चौड़े, 17 फीट ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर निर्मित है। मंदिर का अपूर्ण शिखर 40 फीट ऊंचे पूर्ण स्तंभों व 12 अधूरे अद्ध स्तभों पर बना हुआ है। मंदिर के पिछले भाग में अब भी रपटा के अवशेष है। इस रपटा से 35 गुणा, पांच गुणा, पांच फीट तक के लगभग 70 टन वजनी पत्थरों को शिखर तक पहुंचाया गया था। इस प्रकार के मंदिर निर्माण की योजना को पुरातत्व विभाग दुनिया में अनूठा मानता है।

मालूम हो कि शिवलिंग की स्थापना को लेकर किवदंती है कि साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व महाभारत काल में माता कुंती के कहने पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की मूल स्थापना की थी। माता कुंती के पिता का नाम भी भोज था। इस कारण यह भोजपुर कहलाया। कहा जाता है कि राजा भोज ने शिवलिंग नहीं, बल्कि मंदिर का निर्माण कराया है। माता कुंती द्वारा भगवान शिव की पूजा करने के लिए पांडवों ने इस मन्दिर के निर्माण का एक रात्रि में ही पूरा करने का संकल्प लिया जो पूरा नहीं हो सका। इस प्रकार यह मंदिर आज तक अधूरा है।

भोजपुर मंदिर व शिवलिंग निर्माण की कला अद्भभुत है। यह मंदिर पुरात्वीय दृष्टि से विश्व का इकलौता है। वरिष्ठ पुरातत्वविद के अनुसार शिवलिंग का ऊपरी भाग गोल, बीच का अष्टकोण व नीचे का चतुरकोण है। धार्मिक मान्यता है कि चतुरकोण ब्रह्माजी, अष्टकोण विष्णुजी व गोलाकार शिवजी का प्रतीक हैं।

मालूम हो कि जलाशयों व बांधों के अवशेष के मुताबिक यहां करीब 365 वर्ग किमी क्षेत्र में तीन नदियों बेतवा, कोलार व कोलांस को मिलाकर विशाल जल संरक्षण किया गया था। भोजपुर, मेंदुआ, भोपाल में इसके अवशेष अब भी मौजूद हैं। राजा भोज को इतने विशाल जल संरक्षण कार्य में करीब 30 वर्ष लगे थे। राजा भोज ने पत्थर व बालू के तीन बांध बनवाए। इनमें से पहला बांध बेतवा नदी पर बना था जो जल को रोके रखता था एवं शेष तीन ओर से उस घाटी में पहाड़ियां थीं। दूसरा बांध वर्तमान मेंदुआ ग्राम के निकट दो पहाड़ियों के बीच के स्थान को जोड़कर जल का निकास रोक कर रखता था। तीसरा बांध आज के भोपाल शहर के स्थान पर बना था जो एक छोटी मौसमी नदी कालियासोत के जल को मोड़ कर इस बेतवा सरोवर को दे देता था। ये कृत्रिम जलाशय 15वी शताब्दी तक बने रहे थे। सीहोर से लेकर भोपाल, भीमबैठका, भोजपुर तक जलाशय का भराव क्षेत्र था। मंडीदीप टापू होने के कारण वहां बसाहट हो गई। वर्तमान में भोपाल का बड़ा तालाब इसी का भाग है। आक्रमककारी होशंग शाह ने मंदिर को क्षतिग्रस्त करने के साथ ही यहां के बांधों व जलाशयों को तोड़ा था। शाह को जलाशयों व बांधों को नष्ट करने में तीस साल लगे और इतने ही वर्षों में जलाशयों का पानी खाली होने में लगा था।

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