यहां के क्षेत्रवासी इसे शिवजी का हलमा (सामाजिक सहकार) कहते हैं। दरअसल आदिवासी समुदाय में सामूहिक सहकार की भावना होती है। समाज का कोई भी व्यक्ति जब किसी संकट में होता है तो समाजजन मिलकर उसकी मदद करते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Thu, 23 Mar 2023 06:11 PM (IST)
यशवंतसिंह पंवार, झाबुआ। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में पर्यावरण और जलसंरक्षण की अनूठी परंपरा की अगुआ बन चुकी है नारी शक्ति।
यहां हर वर्ष जिले के सैकड़ों गांवों के हजारों लोग तय दिन जुटते हैं और सामूहिक श्रम के माध्यम से क्षेत्र में जल संरचनाएं बनाते हैं। उद्देश्य एक ही होता है- जलसंकट से जूझते क्षेत्र की तस्वीर बदल जाए और यहां भी वर्षभर परंपरागत फसलें लेने के साथ ही लोगों को पहाड़ी क्षेत्र में भी भरपूर जल मिले।
क्षेत्र को हरा-भरा रखने के लिए सहकार के इस विशाल अभियान के दौरान बड़ी संख्या में पौधे भी लगाए जाते हैं।बीते डेढ़ दशक से हो रहे इस सामूहिक श्रमदान का ही परिणाम है कि पहाड़ियों पर दो लाख से ज्यादा छोटी-छोटी जलसरंचनाएं और 100 बड़े तालाब बनाए जा चुके हैं।
ताकि वर्षा जल बहने के बजाय जमीन के भीतर पहुंच सके। माता वन का निर्माण करते हुए डेढ़ लाख पौधे अब तक रोपे जा चुके हैं, जिनमें से कई वृक्ष बन चुके हैं।
जुटे 40 हजार से अधिक लोग
क्षेत्रवासी इसे शिवजी का हलमा (सामाजिक सहकार) कहते हैं। दरअसल, आदिवासी समुदाय में सामूहिक सहकार की भावना होती है।समाज का कोई भी व्यक्ति जब किसी संकट में होता है तो समाजजन मिलकर उसकी मदद करते हैं। इस वर्ष भी फरवरी के अंतिम सप्ताह में झाबुआ के विभिन्न गांवों के 40 हजार से ज्यादा लोग इस अभियान में जुटे जिनमें 60 प्रतिशत से अधिक आदिवासी महिलाएं थीं।
इन सबने हाथीपावा पहाड़ी क्षेत्र में करीब 35 हजार छोटी-छोटी जल संरचनाएं बनाईं। इस बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल मंगूभाई पटेल भी सामूहिक श्रमदान करने पहुंचे।
मिसाल बन चुका है प्रयास
पद्मश्री महेश शर्मा ने वर्ष 2004 में जब झाबुआ क्षेत्र में वनवासियों के सहायतार्थ काम शुरू किया तो यहां सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी के रूप में सामने आई।
इस कमी को दूर करने के लिए सामूहिक श्रम के माध्यम से क्षेत्र का भूजल स्तर बेहतर करने और तालाब-पोखर आदि बनाने का लक्ष्य रखा गया।शिवगंगा अभियान के माध्यम से वर्ष 2006 में शिवलिंग की स्थापना करते हुए गांव-गांव में शिव जटा बनाने का कार्य शुरू हुआ तो युवा काफी उत्साह से आगे आए।तब विचार बना कि पानी व पर्यावरण संरक्षण के लिए हलमा प्रथा का अनुसरण करते हुए जन अभियान चलाना चाहिए। तीन वर्ष गांव-गांव संपर्क के बाद परमार्थ व स्वालंबन की यह परंपरा 2009 से हर वर्ष दिखने लगी।
इसे आदिवासी महिलाओं का विशेष साथ मिला। लोग न केवल जल सरंचना बनाने लगे बल्कि धरती माता की सेवा की भावना से वे गांव-गांव में भी हलमा करने लगे।
इस तरह जुटते हैं लोग
हलमा की तिथि तय होने के बाद गांव-गांव में सामूहिक श्रमदान के लिए न्यौता दिया जाता है। संदेश मिलते ही गांव की महिलाएं, युवा और बुजुर्ग नियत समय पर पहुंचकर श्रमदान करते हैं।इसमें पौधे लगाना, तालाब बनाना और पहाड़ी क्षेत्रों में जल संरचनाएं बनाना शामिल होता है। पहले कृषि यहां वर्षा के पानी पर ही निर्भर रहती थी।
लेकिन तालाब बन जाने के बाद अब आदिवासी परंपरागत फसलों के अलावा भी फसलें करने लगे हैं। पेयजल में भी सुगमता हुई है।
दो लाख से ज्यादा जल संरचनाएं, सौ से ज्यादा तालाब
शिवगंगा अभियान से जुड़े राजाराम कटारा का कहना है कि परोपकार के भाव ने इतिहास रचा है। अब तक हाथीपावा की पहाड़ी पर जल सरंचनाएं बनाई जा चुकी हैं।बगैर सरकारी सहयोग के अब तक 100 तालाब बनाए गए हैं। 4,500 जल स्रोतों को रिचार्ज किया गया है। इंदौर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में गांवों के 900 युवकों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया है।
कृषि और पेयजल दोनों में लाभ
झाबुआ क्षेत्र में पहाड़ी इलाका और दूर-दूर तक टोल-मजरे (छोटे छोटे समूहों में आदिवासी यहां रहते हैं) में बसी आबादी के लिए हलमा की वजह से पानी की उपलब्धता आसान हुई है।पहले कृषि यहां वर्षा के पानी पर ही निर्भर रहती थी लेकिन तालाब बन जाने के बाद अब आदिवासी कृषक परंपरागत फसलों के अलावा भी फसलें लेने लगे हैं। पेयजल में भी सुगमता हुई है।
हलमा यानि सामाजिक सहकार की भावना
आदिवासी समुदाय में सामूहिक सहकार की भावना होती है। समाज का कोई भी व्यक्ति जब किसी संकट में होता है तो समाजजन मिलकर उसकी मदद करते हैं।मकान बनाना हो या चाहे खेती का कोई महत्वपूर्ण कार्य करना हो। पैसे व संसाधन नहीं है तो भी कोई परेशानी नहीं होती।केवल वह व्यक्ति अपने समुदाय से आह्वान कर दे तो सभी ग्रामवासी निस्वार्थ भाव से महीनों का काम दिनों में पूरा कर देते हैं।
जनजातीय समुदाय के इसी हलमा को शिवगंगा अभियान के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और जनचेतना से भी जोड़ा गया। समाज की प्रगति और जलसंरक्षण के क्षेत्र में भी इसी के माध्यम से काफी काम हुआ।
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