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उज्जैन में शिप्रा मां के तटों पर स्नान-ध्यान, पूजन-अर्चन, आचमन-आनंद का पौराणिक काल लौटे

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने संकेत दिया है कि शिप्रा के लिए सरकार जल्द ही कुछ करेगी पर सबकी चाहत है कि बात आश्वासन से आगे बढ़े ताकि उज्जैन में शिप्रा मां के तटों पर स्नान-ध्यान पूजन-अर्चन आचमन-आनंद का पौराणिक काल लौटे।

By JagranEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Thu, 29 Sep 2022 11:00 AM (IST)
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शिप्रा मां की पुकार बेटों तक पहुंच रही
सद्गुरु शरण। यह विश्वास करना कठिन है कि इस डायरी में संलग्न तस्वीर उज्जैन की पौराणिक शिप्रा नदी की ही है जिसकी महत्ता स्कंद पुराण में इस तरह वर्णित है। नास्ति वत्स महीपृष्ठे शिप्राया: सदृशी नदी, यस्यास्तीरे क्षणान्मुक्ति: किंचिरात्सेवनतेन वै। भावार्थ : इस पृथ्वी पर शिप्रा के समान कोई दूसरी नदी नहीं है। शिप्रा के तट पर बिताया हुआ एक क्षण भी मुक्तिदायक है। यदि चिरकाल तक शिप्रा किनारे रहने का सौभाग्य मिले तो उसका आनंद अप्रतिम है।

महर्षि वशिष्ठ ने उज्जयिनी, शिप्रा और महाकाल की वंदना इस तरह की है। महाकाल श्री शिप्रा गतिश्चैव सुनिर्मला, उज्जयिन्यां विशालाक्षि वास: कस्य न रोचते। स्नानं कृत्वा नरो यस्तु महान घामहि दुर्लभम्, महाकालं नमस्कृत्यम नरो मृत्युं न शोचते। भावार्थ : भगवान महाकाल के समीप शिप्रा मंथर गति में बहती हैं। वह अत्यंत निर्मल हैं। शिप्रा के तीरे उज्जयिनी में वास करना किसे रुचिकर नहीं लगेगा। शिप्रा में स्नान करने का सौभाग्य मिलना दुर्लभ पुण्य है। गंगा की ही भांति मोक्षदायिनी नदी के रूप में प्रतिष्ठित शिप्रा वर्षाकाल में कुछ महीने छोड़ शेष समय इस तस्वीर में दिख रहे हालात भोगती है। जैसे-जैसे 11 अक्टूबर की तिथि निकट आ रही, शिप्रा मां संकोच में सिमटती जा रही हैं। महाकाल का बहुप्रतीक्षित दिव्य-भव्य लोक तो सज गया, पर शिप्रा का शृंगार शेष है।

प्रधानमंत्री नवनिर्मित महाकाल लोक का लोकार्पण करने 11 अक्टूबर को उज्जैन आ रहे हैं। इस समारोह के लिए स्वाभाविक रूप से व्यापक तैयारी चल रही है। इस आयोजन के प्रति अपनी सरकार की प्राथमिकता रेखांकित करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपनी पूरी मंत्रिपरिषद के साथ उज्जैन पहुंचे और महाकाल की तस्वीर के सामने बैठकर कैबिनेट मीटिंग की। इसमें तय किया गया कि समाज और सरकार मिलकर उज्जैन नगरी को सजाएंगे। स्वाभाविक रूप से तमाम श्रद्धालु भी आएंगे और परंपरानुसार महाकाल दर्शन से पहले या बाद में शिप्रा का दर्शन-पूजन करने भी पहुंचेंगे। यही पल शिप्रा को संकोच में डालेंगे, क्योंकि उनकी वर्तमान स्थिति न तो महाकाल लोक की दिव्यता-भव्यता से मेल खाती है और न काशी की गंगा से। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ वर्ष पहले काशी में गंगा तट पर खड़े होकर कहा था कि मां गंगा ने बुलाया, इसलिए काशी आया हूं। पता नहीं, शिप्रा मां की पुकार बेटों तक पहुंच रही या नहीं? काशी और उज्जैन सनातन धर्म के महात्म्य के ज्योति-स्तंभ हैं।

काशी विश्वनाथ और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग इसलिए पूर्ण हैं, क्योंकि उन्हें अपने तटों पर क्रमश: गंगा मां और शिप्रा मां का सान्निध्य प्राप्त है। जैसे काशी में गंगा, वैसे ही उज्जैन में शिप्रा। बहरहाल, काशी में गंगा सदानीरा और व्यापक तौर पर स्वच्छ हैं तो शिप्रा अपने प्रवाह के लिए मानसून और अधिकारियों की मर्जी से मिलने वाले नर्मदा जल पर आश्रित हैं। इस साल अच्छी बारिश हुई तो कुछ दिन शिप्रा प्रवाहमान रहेंगी, पर कितने दिन? कुछ दिन में घाटों से पानी सिमट जाएगा और वहां गंदगी एवं प्रदूषण का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। शिप्रा का यह प्रारब्ध श्रद्धालुओं को दुखी करता है। सब चाहते हैं कि शिप्रा की प्रतीक्षा अब समाप्त हो। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार को महाकाल के प्रति अपनी श्रद्धा का विस्तार अविरल-निर्मल शिप्रा के अनुष्ठान के रूप में करना पड़ेगा। वैसे उज्जैन को लेकर शिवराज सिंह सरकार की प्राथमिकता असंदिग्ध है।

सरकार करीब 700 करोड़ रुपये खर्च कर महाकाल मंदिर के पास चरणबद्ध ढंग से न केवल दिव्य प्रांगण बनवा रही है, बल्कि उज्जैन नगरी के विकास के लिए भी कई प्रयास चल रहे हैं। इसके बावजूद शिप्रा को सतत प्रवाहमान एवं प्रदूषण मुक्त रखने की कोई ठोस योजना धरातल पर नहीं उतर सकी। निसंदेह श्रद्धालुओं के साथ खुद शिप्रा को भी ऐसी पहल का इंतजार है। इसके लिए केवल उसी तरह मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की अपेक्षा है, जैसी काशी में गंगाजल को आचमन लायक बनाने के लिए व्यक्त हुई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने संकेत दिया है कि शिप्रा के लिए सरकार जल्द ही कुछ करेगी, पर सबकी चाहत है कि बात आश्वासन से आगे बढ़े, ताकि उज्जैन में शिप्रा मां के तटों पर स्नान-ध्यान, पूजन-अर्चन, आचमन-आनंद का पौराणिक काल लौटे।

[संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़]

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