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MP News: सबसे पहले बना बेटियों को सैनेटरी पैड के पैसे देने वाला राज्य बना मध्य प्रदेश, UNICEF ने भी इस प्रयास को सराहा

पीरियड्स में पेड का अभाव सिर्फ बेटियों के स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करता है बल्कि इसका असर बेटियों की शिक्षा पर भी पड़ता है। सुनने में भले यह बात अजीब लगे लेकिन यह बिल्कुल सत्य है। एक सामाजिक संस्था दसरा ने बताया कि वर्ष 2019 में माहवारी के कारण स्कूल छोड़ देने वाली लड़कियों को लेकर उन्होंने एक रिपोर्ट दी थी।

By Jagran News Edited By: Amit Singh Updated: Sun, 25 Aug 2024 11:10 PM (IST)
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मध्य प्रदेश नें थोड़ी ही सही लेकिन बदल रही है यह तस्वीर अब बेटियों के हित में हैं।
डॉ. सर्जना चतुर्वेदी: चीनी दार्शनिक लाओ त्जु का छठवीं शताब्दी का यह कथन हर उस बेहतर पहल या निर्णय पर सटीक बैठता है जो किसी एक व्यक्ति या किसी एक संस्था द्वारा किसी व्यक्ति, समूह या समाज के हित में लिया गया हो। हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा 11 अगस्त को सैनेटरी पेड खरीदने के लिए 57.18 करोड़ रुपए की राशि छात्राओं के खातों में सिंगल क्लिक के जरिए ट्रांसफर की गई थी। प्रति छात्रा यह राशि 300-300 रुपए दी गई है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 19 लाख 6 हजार 137 छात्राओं के खातों में पैसे भेजे हैं।

2.3 करोड़ लड़कियां माहवारी के दौरान स्कूल छोड़ देती हैं

पीरियड्स में पेड का अभाव सिर्फ बेटियों के स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करता है बल्कि इसका असर बेटियों की शिक्षा पर भी पड़ता है। सुनने में भले यह बात अजीब लगे लेकिन यह बिल्कुल सत्य है। एक सामाजिक संस्था दसरा ने वर्ष 2019 में माहवारी के कारण स्कूल छोड़ देने वाली लड़कियों पर एक रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 2.3 करोड़ लड़कियां माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए जरूरी सुविधाएं न होने के चलते भारत में स्कूल छोड़ देती हैं। मुफ्त सैनेटरी पैड, सुरक्षा और स्वच्छता मिलने से स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या में न सिर्फ कमी होगी बल्कि यह समस्या पूरी तरह खत्म भी हो सकती है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सैनेटरी पेड के लिए पैसे देने के कदम की सराहना करते हुए राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल की प्रोफेसर डॉ. विनीता यादव कहती हैं कि यह कदम मुख्यमंत्री की दूरदर्शिता और संवेदनशीलता को दिखाता है, क्योंकि किशोर बेटियां सेनेटरी पेड के अभाव में जब स्कूल छोड़ती हैं तो यह न सिर्फ उनके बल्कि पूरे समाज के लिए दुर्भाग्य की बात है क्योंकि जब बेटी पढ़ती है तो सिर्फ वह नहीं बल्कि पूरा परिवार शिक्षित होता है साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलता है। महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कार्य करने वाली शिक्षाविद् प्रोफेसर आशा शुक्ला कहती हैं कि जेंडर संवेदनशीलता के क्षेत्र में यह उल्लेखनीय कदम है। निश्चित ही इससे बेटियों के स्वास्थ्य को लेकर बेहतर दूरगामी नतीजे सामने आएंगे और उनकी शिक्षा भी बेहतर होगी। पैड जीजी व पैड वुमेन के नाम से पहचानी जाने वाली माया विश्वकर्मा सुकर्मा फाउंडेशन के जरिए समाजसेविका के तौर पर कार्य करती हैं। महिलाओं को मासिक धर्म, हाइजीन और स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करने के लिए वह कार्य करती हैं। गांवों और कस्बों में जाकर गरीब बस्तियों की महिलाओं को माहवारी के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में जागरूक करती हैं। उन्होंने भी मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के इस कदम को बेटियों के हित में बताया है।

कैंसर तक के लिए जिम्मेदार है सैनेटरी पैड का अभाव

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार मासिक धर्म के दौरान देश में 15-24 आयु वर्ग की 50 प्रतिशत लड़कियां/महिलाएं अब भी कपड़े का उपयोग करने को मजबूर हैं। वहीं मध्यप्रदेश में यह संख्या 60 फीसदी सामने आई थी। पीरियड्स के दौरान पेड्स का इस्तेमाल ना करना न सिर्फ संक्रमण के लिए जिम्मेदार है बल्कि यह कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वजह भी बन सकता है। होशंगाबाद में रहने वाली 50 वर्षीय रचना कुमारी (परिवर्तित नाम) जुलाई के दूसरे हफ्ते में सीवियर पेट दर्द की शिकायत लेकर पहुंची। गायनाकोलॉजिस्ट ने जांच की तो यूट्रस में स्टेज-4 के सर्वाइकल कैंसर का खुलासा हुआ। बीमारी का कारण जब महिला से पूछा तो उसने बताया कि वह पीरियड को पारंपरिक तरीके से मैनेज करती थी। सेनेटरी नैपकिन का उपयोग कभी नहीं किया। इसकी वजह ग्रामीण परिवेश में रहने के कारण महिला को नैपकिन आसानी से उपलब्ध नहीं होना सामने आई। पेल्विक इन्फ्लेमेट्री डिसीज (पीआईडी) की वजह से भी महिलाओं के जेनाइटल ऑर्गंस में संक्रमण हो जाता है। इससे यूट्रस में सीवियर इन्फेक्शन हो सकता है, जिसकी वजह से महिलाएं मां बनने के सुख से भी वंचित हो सकती हैं।

यूनिसेफ ने भी की तारीफ

महिलाओं एवं बेटियों के हित में सरकार द्वारा समय-समय पर हर देश हर राज्य में कार्य किए जाते हैं लेकिन पीरियड्स में सैनेटरी पेड की सुविधा को लंबे समय तक विलासिता या आराम की सुविधा के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय में इस क्षेत्र में आई जागरूकता बेटियों के जीवन की बेहतरी की ओर आशा की किरण सी प्रतीत होती है। कॉलेजों में सैनेटरी पेड की मशीन को लगाना, मुफ्ट पैड देना या फिर इस विषय पर फिल्मों का बनना यह सभी इस दिशा में हुए बेहतर कार्य है। इसलिए जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए कक्षा 7वीं से 12वीं तक की बेटियों के खातों में सैनेटरी पेड के लिए पैसे ट्रांसफर किए तो ऐसा कदम उठाने वाला मध्यप्रदेश न केवल देश में पहला राज्य बन गया बल्कि इसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई। मोहन यादव की इस योजना की यूनिसेफ ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर कैरीकेचर के माध्यम से तारीफ की है। यूनिसेफ मध्य प्रदेश के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी ने कहा कि, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सराहना यूनिसेफ द्वारा की गई है, निश्चित ही यह योजना बड़ा परिवर्तन लाएगी।

मीडिया ने भी की सराहना : 11 अगस्त को मध्यप्रदेश सरकार ने बेटियों के संग संवाद कार्यक्रम में सैनेटरी पैड के लिए राशि देने का निर्णय लिया था। मीडिया में जैसे-जैसे यह समाचार पहुंचा इसकी सराहना हर तरफ हुई। दैनिक भास्कर ने अपने समाचार पत्र में इसे देश में सबसे पहला कदम उठाने वाला राज्य बताया। द हिंदू ने यूनिसेफ द्वारा मध्यप्रदेश सरकार के स्कूली छात्राओं को सैनेटरी पेड के लिए पैसे देने के लिए सराहने वाली खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। इकोनॉमिक टाइम्स, दैनिक भास्कर, पत्रिका, द प्रिंट, अमर उजाला, रिपब्लिक, नवभारत टाइम्स समेत सभी मीडिया हाउस ने इस समाचार को प्रमुखता से जगह दी है।

माहवारी, पीरियड्स् या मैन्स्ट्रुअल साइकिल नाम कुछ भी दें लड़कियों के जीवनचक्र का बहुत बड़ा भाग न सिर्फ इसके संग बीतता है बल्कि एक स्त्री के स्त्रीत्च की पहचान है लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि लोगों ने न सिर्फ इसे छुआछूत से जोड़े रखा बल्कि इसे शर्म लिहाज का विषय बनाकर इसके बारे में बात करना भी जरूरी नहीं समझा। जबकि हम सभी जानते हैं कि सृष्टि के आगे बढ़ने का आधार भी यही है। इसी रक्त को सींचकर एक बच्चा इस दुनिया में आता है और जीवन चक्र को आगे बढ़ाता है।

अच्छा लग रहा है अब बेटियों के जीवन में धीरे-धीरे बदलाव आ रहे हैं। उम्मीद की रौशनी की किरणें नजर आ रही हैं कि अब बेटियों के स्वास्थ्य, शिक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर सरकारें विचार करके फैसले लेना शुरू कर रहीं है। यह नहीं कहूंगी कि बहुत सुधार हो चुका है लेकिन यह जरूर है कि तस्वीर अब बदल रही है आहिस्ता ही सही...

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